डॉ. सुनील चौरसिया सावन की छात्रा अंशवी चौरसिया की रचना
गौरव की जड़ें
गौरव केवल किसी व्यक्ति या समुदाय की बाहरी सफलता का प्रतीक नहीं होता, बल्कि यह उनके इतिहास, परंपराओं और संस्कारों से जुड़ी होती है। जब हम अपने गौरव की बातें करते हैं, तो यह हमसे जुड़ी हुई उन जड़ों को मान्यता देने जैसा है, जिन्होंने हमें उस स्थिति में पहुंचाया है, जहाँ हम आज खड़े हैं।
गौरव की जड़ें हमारे पूर्वजों के संघर्षों, उनकी मेहनत और बलिदान में छिपी होती हैं। यह हमारी संस्कृति, हमारे आदर्शों और हमारे देश की महानता में निहित होती है। जब हम भारतीय संस्कृति की गौरवमयी परंपराओं को याद करते हैं, तो हमें यह समझ में आता है कि हमें अपने इतिहास से सीखने की आवश्यकता है। हमारे महापुरुषों ने जिन सिद्धांतों और आदर्शों को अपनाया, वे हमें आज भी मार्गदर्शन देते हैं।
हर राष्ट्र की पहचान उसकी जड़ों से जुड़ी होती है। वही जड़ें हमें अपनी पहचान, अपने मूल्यों और अपने उद्देश्य को समझने में मदद करती हैं। जब हम अपने गौरव की जड़ों से जुड़े रहते हैं, तो हम न केवल अपने इतिहास का सम्मान करते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मजबूत नींव तैयार करते हैं।
गौरव की जड़ें हमेशा हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाएं और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें। यह हमें अपने भविष्य को संवारने की दिशा में एक मजबूत आधार प्रदान करती हैं। इसलिए, गौरव की जड़ें केवल बाहरी आभूषण नहीं, बल्कि एक ठोस नींव होती हैं, जो हमें आत्मविश्वास और दिशा देती हैं।
और इनके अलावा हमारे जीवन के दो और महत्वपूर्ण जड़ है वह हैं – हमारे माता और पिता। हमारे माता-पिता ने हमारे जीवन को अच्छा बनाने के लिए क्या कुछ नहीं किया है और अब हमारी बारी है उनके जीवन को और अच्छा बनाने की। और हमारी मां, वह तो जब तक हम जग रहे हैं तब तक जगी रहती है, जब तक हम सोए ना उसे भी नींद नहीं आती है। जब तक हम खाना ना खाएं तब तक हमारी मां भी भूखी रहती है और जब मैं यह लेख को लिख रही हूं तब मुझे कवि डॉ. सुनील चौरसिया ‘सावन’ जी की दो पंक्तियां याद आईं कि-
मेरी प्यारी मां
धरती से बड़ी है
छोटा है आसमान
मेरी प्यारी मां।
मां ममता के अमृत से जीवन को सींचे।
मेरी ज़िन्दगी है पापा के पांवों के नीचे।।
और इनके अलावा हमारे जीवन में एक और बहुत ही महत्वपूर्ण जड़ है, वह हैं हमारे गुरु। हमारे गुरु हमारे लिए दिन और रात मेहनत करते हैं ताकि हमारा भविष्य उज्ज्वल बनें।
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ज्ञान के दीप सावन सर
सावन सर! आप हैं अनुपम, हिन्दी के हैं ज्ञानी।
आपसे रोशन होती कक्षा, जैसे दीप-ज्योति कहानी।।
नज़रों में है अपनापन और मन में ममता की क्यारी।
आपसे मिलती प्रेरणा, जैसे ऋषियों की वाणी प्यारी।।
मीठे-मीठे शब्दों से, समझाने का ढंग है निराला।
बिना डांटे सिखा देते, हर बच्चा बनता है लाला।।
कविता, कहानी और व्याकरण, सब कुछ सरल बनाते।
हमें न डर लगता हिंदी से, सहजता से सब समझाते।।
नियम,अनुशासन और प्रेम, तीनों का मेल सिखाया।
ज्ञान का बीज हमारे मन में, आपने ही तो उगाया।।
हमारे प्यारे सुनील सर, आपका हृदय से धन्यवाद।
आपके आशीर्वाद से होती, सद्गुणों की बरसात।।
अंशवी चौरसिया
कक्षा- 10वीं
पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय गांगरानी, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश।
प्यारी परी सुप्रीति
गुरुजी के आंगन में छिटकी है रोशनी।
नाम है सुप्रीति मानो कविता बनी।।
ज्ञानदाता के आँगन में खिली है जो कली।
उसके खिलने से ज़िन्दगी हुई है मखमली।।
मन्द-मन्द मुस्कान संग मीठी-मीठी बातें।
झिलमिल सितारों वाली खिलखिलाती रातें।।
उसके क़दमों की छुअन में है खुशियों की बहार।
झलके चांद से चेहरे पर समझदारी का संसार।।
शब्दों के जादूगर की गोद में जब दिखती है।
खिलखिलाकर खुद एक नई कहानी लिखती है।।
वह गुरु जी का गर्व है और माँ की है दुआ।
उसकी हरकत से जीवन में बरकत हुआ।।
प्यारी परी सुप्रीति! तुम हँसती रहो सदा।
मधुर-मधुर मुस्कान पर है कौन नहीं फ़िदा।।
तुम बड़ी होकर जहां में जहां कहीं भी जाना।
माता-पिता का नाम रोशन करके दिखाना।।
अंशवी चौरसिया
कक्षा –10वी
पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय गांगरानी, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश।