सभी जगह
कुण्डलिया
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सभी जगह है चल रहा, कठपुतली का खेल।
किन्तु कहीं है बेसुरा, ताल सुरों का मेल
ताल सुरों का मेल, सही जब बैठ न पाता।
कोशिश कर लें लाख, खलल है पड़ता जाता।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, जाननी सही वजह है।
कर लें शीघ्र सुधार, न्यूनता सभी जगह है।
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रूप मनोरम सौम्य है, लंबोदर भगवान।
प्रथम पधारें हर जगह, सभी करें गुणगान।
सभी करें गुणगान, बुद्धि विद्या के स्वामी।
दूर करें हर कष्ट, कहाते अन्तर्यामी।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, सनातन धारा अनुपम।
गणपति का अति भव्य, देखिए रूप मनोरम।
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रिश्तों में आए नहीं, कोई कहीं दरार।
आपस में बढ़ता रहे, खूब अहर्निश प्यार।
खूब अहर्निश प्यार, स्नेह संबंध बढ़ाएं।
जीवन का हर छोर, खूब मिलकर महकाएं।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, मधुरता हो बातों में।
लाएं नहीं खटास, कभी अपने रिश्तों में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी, हि.प्र.