Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
29 Aug 2025 · 1 min read

#तेवरी- (देसी ग़ज़ल)-

#तेवरी- (देसी ग़ज़ल)-
■।रोज़ अंधेरे उजियारों को।
【प्रणय प्रभात】

*थूक-थूक कर चाट रहे हैं।
बेचारे, दिन काट रहे हैं।।

*बिस्तर देने का वादा कर।
आज खड़ी कर खाट रहे हैं।।

*सक्रिय जेबतराश अदब में।
रोज़ विचार उचाट रहे हैं।।

*गहरी खाई खोदने वाले।
अब गड्ढों को पाट रहे हैं।।

*आज जहां ये मॉल खड़े हैं।
इसी जगह कल हाट रहे हैं।।

*रोज़ अंधेरे उजियारों को।
बिना बात के डांट रहे हैं।।

*बरगद रोज़ दिखाता आंखें।
हम शाखाएं छांट रहे हैं।।

*थोथी अकड़ दिखाते ऐसे।
मानो पुरखे लाट रहे हैं।।

*हमें किनारा मत बतलाना।
हम नदियों के घाट रहे हैं।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज़ (मप्र)

Loading...