#तेवरी- (देसी ग़ज़ल)-
#तेवरी- (देसी ग़ज़ल)-
■।रोज़ अंधेरे उजियारों को।
【प्रणय प्रभात】
*थूक-थूक कर चाट रहे हैं।
बेचारे, दिन काट रहे हैं।।
*बिस्तर देने का वादा कर।
आज खड़ी कर खाट रहे हैं।।
*सक्रिय जेबतराश अदब में।
रोज़ विचार उचाट रहे हैं।।
*गहरी खाई खोदने वाले।
अब गड्ढों को पाट रहे हैं।।
*आज जहां ये मॉल खड़े हैं।
इसी जगह कल हाट रहे हैं।।
*रोज़ अंधेरे उजियारों को।
बिना बात के डांट रहे हैं।।
*बरगद रोज़ दिखाता आंखें।
हम शाखाएं छांट रहे हैं।।
*थोथी अकड़ दिखाते ऐसे।
मानो पुरखे लाट रहे हैं।।
*हमें किनारा मत बतलाना।
हम नदियों के घाट रहे हैं।।
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-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज़ (मप्र)