चतुर कन्हाई है
ग्वाल बाल संग लेके,जबरन राह रोके।
छीन दूध दधि खाए, पकड़े कलाई है।
जाऊँ जब पनघट, दौड़ आता झटपट।
फोड़ मटकी उदक,देता न दिखाई है।
छिप तरूवर ओट,करता कंकड़ चोट।
चुरा लेता वस्त्र सभी,करता ढिठाई है।
मात यशोदा का लाल, चले नित नव चाल।
लूटने को दधि घर,करता चढ़ाई है।।
होने वाली शीघ्र रात,नारि बैठीं लगा घात।
रंगे हाथ धरने की,योजना बनाई है।
लेके ग्वाल बाल संग,करता है नित तंग।
आज धर रंगे हाथ,करनी ठुकाई है।
दधि का तो दधि खाए, फोड़ मटकी गिराए।
रोज-रोज तंग बहु,करता सौदाई है।
टूट गेह ताले गए, घुस घर ग्वाले गए।
लूट दधि सारा गया,चतुर कन्हाई है।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)