क्या कभी कुछ न कर पाने की झुंझलाहट हुई है ....? मन रुक ही न
क्या कभी कुछ न कर पाने की झुंझलाहट हुई है ….? मन रुक ही न रहा हो चेतना वहां से हट ही नहीं रही हो ..
परन्तु परिस्थितियों के हवाले भी सबकुछ छोड़ा नहीं जा सकता आखिर परिस्थितियों को भी तो हमने ही बनाया है …
हमारे चुप रहने ने हमारे शिथिल पड़े रहने ने वरना इतनी क्या ही दिक्कत होती
और होती तो सुलझाई जा सकती थी ..
पर शायद नहीं गर समस्याएं इतनी जल्दी हल होने लगे तो वो बस एक क्रिया बचेगी
जिसे किसी प्रक्रिया द्वारा हल कर लिया जाएगा … समस्या उससे ऊपर की होती है
जहां मानव नीचे होता है और
ख़ुद से डर रहा होता है
कही अगर समस्या को सुलझाने गए तो यह हमें न परेशान करने लग जाए ..
चुप हूं क्योंकि मानव हूं