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16 Aug 2025 · 1 min read

जिनको थोड़ी-सी बारिश लगे सनसनी

ग़ज़ल

हाय! मासूम को कुछ पता ही नहीं
जैसे गुण्डों में सालों रहा ही नहीं

पूरे कुनबे ने दी सालों बीमारियां
फिर भी दरबार को कुछ दिखा ही नहीं

झूठ जिस दिन से लोगों में खुलने लगा
चिकने चेहरों से फिर कुछ हुआ ही नहीं

भीड़ के दम पे ही जो उछलते रहे
भीड़ ने अबके रस्ता दिया ही नहीं

झूठ आंखों में झोंके जो सदियों तलक
ऐसा परदा कहीं पर बना ही नहीं

कोई मशहूर है उसका मैं क्या करुं
जिसकी फ़ितरत को सच का पता ही नहीं

उसके गुण्डों की कोशिश मुसलसल रही
अबके मासूम चेहरा बना ही नहीं

जिनको थोड़ी-सी बारिश लगे सनसनी
उनको सैलाब का कुछ पता ही नहीं

-संजय ग्रोवर

( कुनबा=गुट, दल, परिवार,
मुसलसल=लगातार )

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