कुण्डलिया छंद
!! श्री!!
सोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश।
वैभव से सम्पन्न था, इसमें झूँँठ न लेश ।।
इसमें झूँठ न लेश, लोग सम्पन्न सभी थे।
आतुर थे आक्रांत, लूटने बहुत कभी थे ।।
लूट ले गये दुष्ट, दुखद गाथा खोने की।
कहलाता था देश, कभी चिड़िया सोने की।।
***
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा।
🌷🌷🌷