भाखा नैना के
ले जा मयारू, संगे-संग अपन,
बांध ले मोला अंचरा के कोर।
तोर सोनहा चिरई जस नैना म,
गड़ी अरझ गे मोर जी के डोर।
मोर हिरदे हावे घठौंदा कस,
बन जा नदिया के तय हिलोर।
मन-भंवरा इतराय, गुनगुनाय,
पा के मया-पिरीत के झकोर l
तोर हँसी मया के पुरवाई कस,
सोनहा गहना हे हिरदे के मोर l
मया संकरी म बांध के रखिबे,
कर दे अपन मया म सराबोर।
हो जाहूं मंय आवारा बदरा कस,
जब नइ मिलही ठाँव, दिल म तोर।
मन अउ दिल के गोठ समझ जाबे,
ये गड़ी पढ़ के भाखा नैना के मोर l
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल