"मेरे पापा"
“मेरे पापा”
चलाते थे हाथ पकड़ के वो हमको।
सोचके यह, गिर न जाए किसी मोड़ पे ।
चलना जब सीख गए लड़खड़ा के।
खुद चलने को छोड़ गए हमको ।
गिरना मंजूर था उनको अब हमारा।
पर दूसरो के सहारे चलना नही।
…………✍️योगेन्द्र चतुर्वेदी