शीर्षक : - बात आमने-सामने की राजस्थान :- बदहाल शिक्षा : प्रोफेसर बनाम विधायक
शीर्षक : – बात आमने-सामने की
राजस्थान :- बदहाल शिक्षा : प्रोफेसर बनाम विधायक
विधा – आलेख
परिचय – डॉ. ज्ञानीचोर
स्वतंत्र विचारक व साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़,सीकर राज.
पिन – 332027
मो. 9001321438
कहते है कि एक क्रूर शासक सबसे पहले शिक्षक को मारता है और फिर पढ़े लिखे लोगों को। इतिहास में ऐसी अनेक घटनायें मिलती है और शासक इनकों चरितार्थ भी करते रहे है?
अंधी और लंगड़ी प्रजा ही शासकों के सिंहासन को सिर पर लादे रख सकती है।
दरअसल! बात वर्तमान परिप्रेक्ष्यों से पूर्ण मेल खाती है। 2047 विकसित भारत का सपना, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना, रोजगार पैदा करना, राष्ट्रवाद, आतंकवाद, युद्ध, सीमा सुरक्षा, आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया इत्यादि कितने मुद्दे है जिस पर भारत का आंकड़ो वाला विकास टिका हुआ है।
नई शिक्षा नीति 2020 से उज्ज्वल भारत का सपना साकार और उन्नत कौशल विकसित युवा शक्ति।
क्या ये भारत की जनता को बताने लिए और विकास के लिए काफी है?
जहाँ एक और राजस्थान की सरकार रोजगार की गारंटी दे रही है और धड़ाधड़ रिक्त पदों पर भर्ती की विज्ञप्ति जारी कर रही है। वहीं दूसरी और उच्च शिक्षा को तहस-नहस का गुजरात मॉडल लागू कर रही है।
दरहक़ीक़त! सरकार प्रशासनिक रूप से असफल रही है। शिक्षा के क्षेत्र में बिल्कुल शून्य पर आऊट हो गई।
इसके दो पक्ष समाने है प्रोफेसर और विधायक।
पहला पक्ष :- पिछली अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार ने उच्च शिक्षा की पहुँच को निचले तबके और ग्रामीण क्षेत्र को ध्यान में रखकर उपतहसील, पंचायत समिति, और बहुल आबादी वालों ग्रामीण क्षेत्रों में महाविद्यालय खोले। प्रोफेसरों की कमी दूर करने के लिए तत्काल प्रभाव से विद्यासंबल योजना लागू की। शिक्षकों को प्रति सप्ताह 14 घंटे के आधार पर प्रति घंटा 800 ₹ मानदेय तय किया। एक सत्र के लिए नियुक्ति दी थी। सेमेस्टर प्रणाली लागू होने पर वर्तमान सरकार ने नियुक्ति सेमेस्टर आधारित कर दी।
विश्वविद्यालय इससे एक कदम आगे निकल गये और पाठ्यक्रम के शिक्षण घंटे निर्धारित कर दिये।
मेजर सब्जेक्ट 60 घंटे और माईनर सब्जेक्ट 30 घंटे में पूर्ण करवाने है। विश्वविद्यालय को कौन समझाये की आपकी निर्धारित घंटा प्रणाली अध्यापन कक्ष और व्यवहारिक शैक्षणिक परिस्थितियों से तालमेल नहीं खाती। कक्षा-कक्ष में विषय विस्तार होता है। आपने विषय सहायक आचार्य को कोचिंग प्रणाली से बाध्य कर दिया। घंटों की निर्धारित प्रणाली कोचिंग संस्थानों के लिए उचित है। विद्वानों को घंटों बांधकर सामयिक बंधुआ मजदूरी करा रहे है। इस प्रणाली से एक सहायक आचार्य को 90 घंटे से अधिक समय का रोजगार नहीं मिलता। 90 घंटे साढ़े तीन महिनें में पूरे हो जाते है। इतने समय में पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं होता।
पाठ्यक्रम पूर्ण करने की समय सीमा तय कर दी लेकिन विश्वविद्यालयों के पास समय पर परीक्षा कराने की कोई बाध्यता नहीं है।
वर्तमान राजस्थान सरकार विद्यासंबल संबल योजना को हटाकर नई योजना से सहायक आचार्य लगायेगी नई योजना गुजरात मॉडल पर है। सहायक आचार्य 28500₹ मासिक पर पाँच साल के लिए लगायेगी।
जबकि यूजीसी के नियमानुसार 1500 प्रति घंटा, मासिक वेतन 50000 से कम नहीं। और संविदा सहायक आचार्य को 57000₹ से कम वेतन नहीं दिया सकता।
सहायक आचार्यों की ऐसी दुर्दशा किसी राज्य सरकार ने नहीं की। हरियाणा मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश सरकार यूजीसी का अनुसरण कर रही है। लेकिन राजस्थान सरकार गुजरात मॉडल का अनुसरण कर रही है।
ये गुजरात मॉडल का आईडिया किसने दिया?
कहीं ये तो नहीं की अमितशाह ने राजस्थान दौरे पर मुख्यमंत्री भजनलाल सरकार के कानों में मंत्र फूँक दिया। भारत को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का जिम्मा भजनलाल सरकार को सौंप दिया हो इसके चलते ये वेतन कटौती वाला गुजरात मॉडल लागू कर रहे हो।
गहलोत मॉडल में कौनसी खामी थी? शिक्षकों के पेट में छूरा घोपने से कौनसा लाभ आज तक सत्ता को मिला है?
दुर्योधन आततायी था किंतु उसने भी गुरू द्रोणाचार्य को ऐसा सबक नहीं दिया। सम्राट अशोक ने भी ऐसा नहीं किया था। विग्रहराज ने ऐसा नहीं किया था। मुस्लिम आक्रांताओं ने यहाँ के शिक्षा केंद्रों को नष्ट किया और शिक्षकों को पलायन करना पड़ा।
ऐसी आक्रांत नीति के बल पर ही ये सरकार चल रही है। जिस साम्राज्य में शिक्षकों की दुर्दशा और अपमान हुआ वो साम्राज्य समाप्त हो गया। घनानंद का मगध साम्राज्य इसका आज भी ज्वलंत उदाहरण है। कौटिल्य आचार्यों व सत्ता के लिए के आज भी अनुकरणीय है।
दूसरा पक्ष :- एक और राजस्थान सरकार सहायक आचार्यों का वेतन घटा रही है दूसरी राजस्थान की भाजपा सरकार विधायकों के वेतन-भत्तें 10 प्रतिशत बढ़ा रही है। अभी विधायकों को वेतन और भत्तें के नाम पर एक लाख सैतालीस हजार मिल रहे है। और बढ़ा रहे है विद्यासंबल में लगे सहायक आचार्यों के वेतन काटकर? राजसेस के माध्यम से लगभग 4000 हजार सहायक आचार्य लगे है। इनके वेतन को काटकर 200 विधायकों का वेतन बढ़ा रहे है। ये किस खुशी में कर रहे या किस तर्क पर?
शिक्षा की भूमिका संकट में है और नेताओं की थाली में भोग सज रहे है। सभी नेता-विधायकों ने गुरू की महत्ता भूला दी। जिन गुरू चरणों में बैठकर इतने बड़े बन गये उनकी दुर्दशा करके विधानसभा में ठहाकों से कह रहे है हमने विकास कर दिया। विकास में काश! शब्द ही गुरू को सोचने लिए बाध्य कर रहा है। काश! उसे पढ़ाता नहीं,दिशा नहीं देता तो आज ये न होता। विकास के काश! को बड़ा भयानक दर्दनाक बना दिया इस सरकार ने।
जिस गुरू ने उसे सत्ता पर पहुँचाया वही गुरू समाज उनकों होठों पर उभरी पपड़ी से लाचारी से नेताओं के मुँह को सिर्फ ताकता रह जाता है।
समाज और देश में पारिवारिक सम्बंधों से परे गुरू बड़ा कोई पद नहीं होता।
राजस्थान में शैक्षणिक आधारभूत बुनियादी ढाँचा बिखर रहा है। भवन नहीं है, बच्चें टपकती छतों,सीलन घुटन भरे कमरों में बैठने को मजबूर। हाल ही में झालावाड़ जिले के पिपलौदा गाँव की प्राथमिक स्कूल का कमरा ढह जाने से सारे बच्चें दब गये। 8 की मौत और कई घायल हो गये। दिल दहलाने वाली इस सनसनीखेज घटना ने शिक्षा पर पर कई ज्वलंत सवालिया निशान छोड़ दिये।
सरकार विधायकों की चिंता में पलक-पावड़े बिछा रही है और शिक्षकों के सम्मान से जीवनयापन करने का हक छीन रही है। वैश्विक व्यापार की समस्या से राजस्व की कमी को वेतन काटकर कर पूरा करने का यह अनूठा प्रयोग गुजरात मॉडल की देन है? ये सरकार गुजरात मॉडल के नाम किसे खुश रही है? गुजरात मॉडल हर क्षेत्र में रामबाण है तो क्यों IAS, RAS संविदा पर नहीं रख लेते। क्यों संविधान गुजरात मॉडल की तर्ज पर विकसित नहीं कर लेते? क्यों विधायक गुजरात मॉडल पर नहीं रख लेते? विकास राजस्थान और देश का करना है नकि गुजरात मॉडल का विकास? सहायक आचार्य को अस्सिटेंट टीचर की उपाधि से नवाज रहे है। ऐसा तो इतिहास में कभी
किसी सम्राट ने गुरू के सम्मान में नहीं किया।
आश्चर्य की बात है शैक्षिक सम्मेलन में गुरूवृंद समाज को विधायक,मंत्री मंत्र देता है, जिस गुरूपथ पर चल आज वे जहाँ पहुँचे उन्हीं गुरूपथ को दिशा देना क्या शोभनीय कार्य है? इतिहास में कभी किसी सम्राट ने गुरूजनों को उपदेश या सलाह नहीं दी। राजसभा में गुरू से सलाह ली जाती थी। विकास के नाम पर अयोग्य विधायक प्रोफेसर पर भारी पड़े रहे है। यह स्वस्थ विकसित मार्ग नहीं है। सबसे बड़ी देश निर्माण की जिम्मेदारी गुरू के कंधों पर होती है । शिक्षक का वेतन किसी पदवेतन से अधिक होना चाहिए। लेकिन उपेक्षित शिक्षा से भारत आजादी के 78 वर्षों बाद कहीं नहीं पहुंचा। ये नैतिक पतनता नहीं वरन प्रशासनिक पतनता है। 78 वर्षों में भारत में चौथी पीढ़ी युवा बन रही है लेकिन अभी तक शिक्षा और शिक्षक समाज उपेक्षित है।