तेरी झील-सी आँखें
तेरी झील-सी आँखों में डूब जाऊँ; इस कदर,
फ़िज़ाओं में समा जाती है खुशबू; बनकर सुरूर
करूँ निकलने की कोशिशें; करता ही रहूँ,
उतना ही डूबता जाऊँ इस समंदर की गहराइयों में; बहुत दूर
दूँ सुकूं या बन जाऊँ तेरी आँखों की किरकिरी,
करोगे न याद; जब चला जाऊँ तेरी दुनियाँ से; बहुत दूर
मौलिक व स्वरचित
डॉ० श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)