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17 Jul 2025 · 1 min read

भोर का सौंदर्य

चलते-चलते चाँद थक गया,
जब शयन की बेला आई।
सूर्य रश्मियों ने दस्तक दी,
तब भोर ने ली अँगड़ाई।।

चहक उठे खग डालों पर,
और फूल लगे मुस्काने।
सारा उपवन झूम उठा,
भौंरे भी हुए दीवाने।।

मंद – मंद बहती पुरवाई,
तन – मन खिलता जाये।
मयूर बागों में लगे नाचने,
जब दबे पाँव रवि आये।।

मनभावन सौंदर्य भोर का,
लगता कितना सुखदाई।
शंखध्वनि मंदिर में गूँजे,
ज्यों कान बजे शहनाई।।

सरोज खिलने लगे सरोवर,
नवल प्रभात जब आये।
शबनम मोती ओढ़े धरती,
सबके मन हरषाये।।

भोर हुआ और कृषक चले,
अपने खेतों की ओर।
मधुर राग बैलों की घंटी,
मन में भरे हिलोर।।

गौरैया भी बड़ी सयानी,
आँगन चीं चीं करती शोर।
जाग जाओ प्यारे बच्चों अब,
कैसा सुखद हुआ है भोर।।

रंग बिरंगी उड़ें तितलियाँ,
इधर उधर मँडरायें।
पुष्प पराग रसपान करें,
पर छूते ही उड़ जायें।।

#डा. राम नरेश त्रिपाठी ‘मयूर’
कानपुर – 208002, उ.प्र.

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