बरखा गीत
गीत
बरखा!
झूम झूम कर बरसो.. बरखा
पात गात पर बरसो.. बरखा
तेरी ऊंची तान रे
तेरी ऊंची शान रे
आते बादल, ओढ ओढ़नी
दुल्हन की देह सागर
छुई मुई सी मन को भाए
जीवन की नेह गागर
बूंद बूंद को तरसी बरखा
अम्बर से अवसान रे
तेरी ऊंची तान रे।।
आता हमको याद बहुत है
खुला खुला वो आँगन
छप छप छप जिसमें करता था
रंग तरंगित सावन
फूंक मारते उड़ते बादल
अब न कोई निशान रे
तेरी ऊंची तान रे
बदले सजना -सजनी बदली
मौसम की अंगड़ाई
चली आज लो घर आंगन में
पश्चिम की तरुणाई
नई सभ्यता जाने कैसे
क्या बरखा का गान रे
तेरी ऊंची तान रे..
हर दुख हँस के सहना बरखा
आते जाते रहना बरखा
लेकर इक मुस्कान रे..
कैसी मीठी तान रे…
15.07.2025
सूर्यकांत