" अर्जन करे वही तो "
विधा – दिग्पाल छंद
मापनी – 2212 122 2212 122
गीत
अर्जन करे वही तो , पुरुषार्थ जानता है ।
जो लक्ष्य साध लेता , यह जग बखानता है ।।
उपलब्धियाँ मनुज की , यह शक्ति भीतरी है ।
जुड़ती विवेक से है , बल बुद्धि से घिरी है ।
रक्षा करें हितों की ,परिणाम ठानता है ।।
अर्जन करे वही तो , पुरुषार्थ जानता है ।।
पहलू कई दिखे हैं , यह ‘काम’ से जुड़ा है ।
जब कामना पले तो , पथ उस तरफ मुड़ा है ।
रज में कनक छिपी है , श्रम साध्य मानता है ।।
अर्जन करे वही तो , पुरुषार्थ जानता है ।।
जो धर्म है हमारा , जीवन रहा सिखाता ।
हैं कर्म साधना क्या , वह मार्ग है दिखाता ।
तन मन रहें सधे से , परिणाम छानता है ।।
अर्जन करे वही तो , पुरुषार्थ जानता है ।।
तन से विलग कहाँ मन , नित चाह , राह पाए ।
जब योग कर्म जुड़ता , तब मोक्ष साध पाए ।
जब ज्ञान हाथ छूटा , छूटी समानता है ।।
अर्जन करे वही तो , पुरुषार्थ जानता है ।।
हो सत्य साथ साहस , हमको सफल बनाते ।
हम शून्य से खरब तक , जो लक्ष्य हैं बनाते ।
औकात भिन्न ठहरी , हासिल प्रधानता है ।।
अर्जन करे वही तो , पुरुषार्थ जानता है ।।
स्वरचित / रचियता –
बृज व्यास
शाजापुर मध्यप्रदेश