हिमकिरीट पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा :- हिमकिरीट
एकल काव्य संग्रह
रचियता :- भूपेश प्रताप सिंह
प्रकाशन :- वैदिक प्रकाशन हरिद्वार
उत्तराखंड
मैंने सबसे पहले पुस्तक के नाम की चर्चा करना चाहूँगा क्योंकि पुस्तक का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है ।
“हिम” शब्द का अर्थ है (बर्फ) और “किरीट” का मतलब (मुकुट) से जिसका शाब्दिक अर्थ है बर्फ का मुकुट. अक्सर, यह शब्द हिमालय पर्वत या अन्य ऊंचे पहाड़ों पर जमी हुई बर्फ के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन यहाँ कवि ने अपनी रचनाओं का सिरमौर गुलदस्ता तैयार किया है । वास्तव में कवि की बहुत ही गहरी सोच को प्रदर्शित करता है ।
“हिमकिरीट पुस्तक एक अद्वितीय और रोचक पुस्तक है, जिसमे कवि ने अपने अनुभवों को अभिव्यक्ति के रूप में उजागर किया है । पुस्तक की भाषा शैली और संरचना अद्वितीय है और पाठकों को पुस्तक अपनी ओर आकर्षित करती है।”
पुस्तक में कुल मिलाकर 177 पेज है ।
कवि ने पुस्तक को आपने माता पिता को समर्पित भाव से उनके चरणों मे शब्दों के पुष्प अर्पित किए है । उन दोनों दैवीय आत्माओ को नमन वंदन और मनमोहक चित्र पुस्तक का गौरव बड़ा दिया ।
प्रकाशकीय ने भी लेखक और प्रकाशक के बीच के संबन्ध को विस्तार देते अपने शब्दों की माला को पुस्तक की गरिमा को बढ़ा दिया है ।
कवि का जीवन परिचय अपने कई गौरव लिए हुए है जो कवि की उपलब्धि को सुशोभित कर रहा है ।
कवि किस विचार धारा के है उन्होंने अपनी पुस्तक की भूमिका स्वयं लिखी जो काबिले तारीफ है ।
पुस्तक की वीथिका को सहज सरल और स्पष्ट तरीके से श्री अशोक मिश्र जी ने उत्कृष्ट लेख लिखा ।
शुभाशंसा श्री हंसराज सिंह हंस ने बड़े मार्मिक ढंग से प्रदान किया ।
हिमाद्री गौरव के रूप में डॉ रामकरन साहू सजल ने व्यक्त किया है उनका यह लेख पुस्तक की विशेषता की ओर प्रकाश डालता है ।
भावनात्मक दृष्टि कोण से देख तो बहुत ही सारगर्भित ओर मार्मिक रचनाओं का हिमकिरीट का गुलदस्ता है ।पुस्तक की एक कविता की कुछ पंक्तियों से अंदाजा लगाया जा सकता है ।
हो राष्ट्र की आराधना ।
शुभ भाव की हो वंदना ।
सरिता का निर्मल नीर हो ।
हिय पर व्यथा की पीर हो ।।
कविता के शब्दो मे इतनी गहराई छिपी है जैसे जीवंत कहा जा रहा हो और मानो मन मस्तिष्क में भावो का सुमंदर ही आ गया हो ।
आगे दूसरी कविता को देखिए
आसमान से चुपके से उतर रही है ।
पावस की शाम दबे पाँव
धान के हर भरे खेत …..
और कविता को लेते है देखिए किस तरह से चित्रण किया आप भी समझिए
मैं लेबर चौहराया हूँ
मुझे कुछ दिख रहे बच्चे
खड़े है जो फ़टे गन्दे कपड़ो में
इस उम्मीद में कोई उन्हें ले जाए ।
कवि ने अपने भावों में दुःख भरी व्यथा का वर्णन भी साथ साथ किया है । कवि ने कविताओं में यथार्थ को वर्णात्मक शैली का भी प्रयोग बड़ी चतुराई से कर दिया ।
किस ओर कविता को समझे की कितने भावो को जन्म दिए
मन के कोमल भावों को
मृदु शब्दों के जाल न् समझो
मिलन विरह के गीतों को
मधुऋतु पतझड़ के गीत समझो ।।
कवि ने कविता में शब्दों की जादूगरी इस तरह बेख़री की पुस्तक को पढ़ते पढ़ते मन नहीं भरा एक ओर रचना में किस तरह से कहा
मोतियों की धार झरी सफल धरा हरी भरी
मन्द मन्द पवन चली फूल उठी कली कली
महक रही गली गली वसुंधरा खिली खिली
गगन से झड़ी लगी मोतियाँ की धार झरी ।।
यह कवि की सोच का ही प्रतिफल है कि इतने सुंदर स्वच्छ भावों को बांध दिया ।
कवि जो थक गए सो गए और अपने जीवन को निराश के भंवर में डुबकी लगा रहे है वहाँ भी कवि की सोच कैसे भाव प्रकट करती है गौर करें ।
मत कहो मुझसे न् होगा
गलत है अपनी शक्ति नकारना
अन्याय है उसके साथ ….
यह वही भाव है जो मनुष्य के निराश जीवन को फिर से ऊर्जा देने के लिए काफी है ।
जब प्रेम के सागर में कवि उतरता है तो वहां कवि ने कैसे भाव प्रकट किए ।
क्या जगत को बांध लेंगे प्रेम के धागे तुम्हारे ।
क्या इसे पागल पन कहे या कवि का जगत के प्रति प्रेम तभी तो आगे फिर कहा
हम कम देख पाते है
धुआँ धुआँ हथेलियाँ की रेखाएं
उसे याद दिलाती है ।
उन वादों को जो हमने किये थे ।
यहाँ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कवि अपने वचन और वादों के प्रति कितनी वफादारी रखता है और जीवन के वास्तविक मूल्यों को कितनी अमियत देनी चाहिए ।
कोई भी हो उसके जीवन की गतिविधियाँ भिन्न होती है ।लेकिन जीवन के प्रति हम संवेदनशील है कवि ने अपनी कविताओं में संवेदनाओं को जिक्र वाख़ूबी किया ।
जीवन की गति अलग अलग है फिर भी संग निभाते है ।
अलग अलग भूखण्डों पर सब समान मुस्कराते है ।।
एक दूसरे से परस्पर प्रेम को उजागर कर अलग ही तरह का संश्लेषण किया हैं ।
समय की रफ्तार को किसी अंदाज में कवि ने अपने शब्दों में संजीदा के साथ पिरोया है ।
कब रूका सूरज रूका कब चाँद
क्या कभी था रुका नाद
आज उसका ह्दय तल
कर रहा जयघोष !
स्वयं कवि जगा है और दूसरों को किस तरह चेतनता की प्रेरणा दे रहा है ।
तुम जगे क्या जग उठा संसार
जग उठे हर प्राण
यदि हम कवि के राष्ट्र प्रेम की बात करें तो राष्ट्र प्रेम मानो कूट कूट कर भरा हो
हे! भारत माता के सपूत
हे! निज जननी के लाल
सीमा पर हलचल काफी है
उठ रही ज्वाला की माल
हाल मैं कैसे कह दूँ ।
किसी के दर्द की कितनी पीड़ा कवि का ह्रदय वियाकुल हो उठता है ।
बता कोकिल
क्यों जला तेरा गाल
मौन साधे स्वर छिपाएं ।
वेदनाओं से हिय पर जाता है और गला सुख जाता है मुख से रोने की आवाज भी नहीं निकलती है नीर आंखों में जैसे सुख गया हो ।
और सृष्टि के कण कण से वनस्पति और जीव जन्तुओं के प्रति अथा प्रेम देखिए इस कविता में
हमे लगाव होता है
धन से जमीन से पशु पक्षियों से
बचपन तो अनोखा होता है ।
दूसरे के दुःख की पीड़ा को देख कवि कितना निराश हो जाता है और उस पीड़ा को शब्दों से बांध कर कविता के रूप में ढ़ाल देता है ।
वे निराश है
दम निकल रहा है
बच्चे युवा बूढे
पढ़े अनपढ़े गढ़े अनपढ़े
गर्भवती महिलाएँ, बीमार अपाहिज
छोड़ रहें है आशियाने …
ओर किस तरह आँसू के मोती कर देता है कवि यह काम जो कि किसी के बसकी बात नहीं है ।
सीप सी आँखों में उसके अश्रु मोती बन गए
दबी जो चिर वेदना थी आज उसको कह गए ।।
अंत मे मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ पुस्तक में भाषा शैली का भाव पक्ष कला पक्ष आज के मनुष्य जीवन को कुरेती हुई मानव संवेदनाओं को उकेरती हुई दिल को झकझोर देने वाली ओर आत्मचिंतन को अवलोकन करती हुई ।जिंदगी के मायनो को नापती हुई। प्ररेणा से भर देने वाली रचनाओं का हरा भरा एक गुलतस्ता है । मुझे दो यह बेहद पसंद आया।उम्मीद करता हूँ यदि आप भी पड़ेंगे तो आपको जरूर पसंद आएगा । मैं पाठकगणों से कहना चाहूंगा और उन नवांकुरों से कहना चाहूँगा जो साहित्य की परख रखते है जरूर पढ़ें ।और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे ।
सप्रेम भेंट
डॉ अमित कुमार बिजनौरी
कदराबाद खुर्द स्योहारा
बिजनौर उत्तर प्रदेश