काव्य साधना पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा ” काव्य साधना ”
एकल काव्य संग्रह
पुस्तक रचियता :- कवि अरविन्द कुमार उन्नाव
प्रकाशक :- वैदिक प्रकाशन हरिद्वार उत्तराखंड
समीक्षक :- डॉ अमित कुमार बिजनौरी उ०प्र०
पुस्तक से पहले चर्चा कवि महोदय के बारे में आपको संक्षिप्त बता हूँ कवि एक पेशे से शिक्षक है जो सरल सहज व्यक्तित्व के धनी है । उनका यह पहला एकल काव्य संग्रह है उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से सुधि पाठकों तक पहुंचती रहती है । अब बात करते है उनके “काव्य साधना ” पुस्तक की जो एक बेजोड़ काव्य संग्रह है, जो शुधि पाठकों के जीवन को विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। इस पुस्तक में कविताएं विभिन्न विषयों पर हैं, जैसे कि प्रेम, प्रकृति, और जीवन के मूल्य। कविताओं की शैली और भाषा सरल और समझने योग्य है, जो पाठकों को अपनी और आकर्षित करती है।”
यह पुस्तक 100 पेज की कवर सहित है । पुस्तक का मुख पृष्ठ काफी रोचक है । मुख पृष्ठ पर जो चित्र है वह मनुष्य को यही प्ररेणा दे रहा है कि पुस्तक का मानवीय जीवन मे कितना योगदान है ।
इसी पृष्ठ के पीछे प्रकाशक का पता और कापी राइट सम्बंधी सामग्री को स्थान दिया गया है जो एक पुस्तक के लिए जरूरी है ।
अगले पेज पर ज्ञान की देवी सरस्वती माँ की तस्वीर अपनी हिय में अमिट धरोहर लिए प्रकट है । इस पुस्तक को प्रकाशित कराने में कवि को जिनका सहयोग प्राप्त हुआ वह श्री आशीष कुमार जो पेशे से शिक्षक है। उनका भी इस पुस्तक में विस्तार से जीवन परिचय का उल्लेख किया गया है ।
पेज संख्या 09 पर स्वयं कवि महोदय अरविन्द कुमार का जीवन परिचय ओर समस्त जीवन की उपलब्धियों के समावेश को रखा गया है ।
अनुक्रमणिका पेज संख्या 11 से 13 तक है जिसमे कौन सी रचना किसी पेज पर है एक क्रमनुसार साथ मे कविता का शीर्षक दिया गया है ताकि शुधि पाठकों को पुस्तक पढ़ने में आसानी हो सके ।
पुस्तक को सरल सहज शब्दो के माध्यम से कवि ने अपने भावों को अभिव्यक्ति किया है । जो बेमिसाल और बेश कीमती शब्दो का ताना बाबा बना गया है । कवि की बुद्धि की परख का पता यही से चल जाता है कि कवि अपनी पकड़ में अपने मन के भावो को बांध कर सहज ही कविता का रूप प्रदान करता है , और आम बोल चाल को अपनी अभिव्यक्ति को इस प्रकार रच देता है ।
” योग जो कोई हर दिन करता ।
आलस को वो अपने हारता ।।”
दूसरी कविता के भाव में …
माना कि मैं चाय बेचने वाला हूँ ।
तन से थोड़ा ढीला ढाला हूँ ।।
फिक्र नहीं कल की मुझे
मैं इंसा बड़ा मतवाला हूँ ।।
फिक्र नहीं बस चिन्ता छोड़ ओर चाह छोड़ दे जो वर्तमान में मिला है ईश्वर से बस तू उस को जी लें ।
कुछ इस तरह फिर कवि महोदय जिक्र कर रहे है ।
निकल पड़े है हम घर से,
एक नया जहाँ बसाने को ।
भटके हुए जो राहो से ,
उन्हें नई राह दिखाने को ।।
यानी कि जीवन की मंजिल उन्हे मिलती है जो मंजिल की तलाश में बांध लक्ष्य निकल पड़ते है और परवा नहीं करते ।
बहुत रो चुके अब तक ।
बहुत रो चुके अब तक ।
अब न आगे रोना होगा ।
भूल अतीत के सपनो को, अब
कुछ ने सपनो को गढ़ना होगा ।।
कवि का ऐसा हिय है कि वह हमेशा एक जगह नही ठहरता है वह पवन के हवा के झोंके की तरह कभी धीरे धीरे कभी तूफान बनकर कभी स्लो स्लो बहता है फिर कोई नए भावो को मीठी यादों को गढ़ता है ।
जैसे
माँ की दुआ से बड़ी कोई मन्नत नही होती
माँ की गोद से सुंदर कोई जन्नत नहीं होती ।।
कितने श्रेष्ठ विचारो का चित्रण कर देता है उसे स्वयं को यकीन नहीं होता क्या यह मैंने लिखा है ।
फिर से गहरी सोच में एक नए चिंतन में डूब जाता है और समुद्र की गहराई में जैसे कोई गोताखोर डुबकी निकालकर मोती चुनता है वैसे ही कवि नई रचना का सृजन लेकर हाजिर हो जाता है ।
सफर जिंदगी का यूँ आज आसान नहीं है ।
लक्ष्य बिना जिंदगी का कोई मान नहीं है
यूँ तो आज किताबो का अम्बर है, पर
इंसान को क्यों आज जीने का ज्ञान नहीं है ।।
कवि हिय की बात कोई कवि ही समझ सकता है कवि अपनी सोच को कहाँ कहाँ ले जाता है । उसका अंदाज लगाना एक मुश्किल काम है ।
प्रभु को जाने जो प्रभु को माने
दुनिया के नहीं करे वो बहाने ।
कवि का यही कहना है ईश्वर की भक्ति में कोई बहाना नही चलता है वह निरंतर ईश्वर की लीलाओं को अपने जीवन से जोड़कर देखता है और निरंतर गतिमान रहता है और दूसरों को यही सीख देते हुए आगे बढ़ता जाता है ।
हर पल हर क्षण मेरी नजरे देखे तेरी ओर,
जैसे चाँद को ताके एक चाँद चकोर ।
तेरी बातें तेरी यादे मुझे खिंचे तेरी ओर
अजब निराली मुझे लगे तेरी प्रीत की डोर ।
इस उम्मीद में कवि के लफ़्ज़ों में सहजता है । दृण इच्छाशक्ति को स्वीकार कर सहनशीलता धारण कर लेता है ।
जीवन के होते कई पड़ाव
जिनमे आते कई उतार चढ़ाव
पर रखे हर दशा में सम स्वभाव,
उसी के अंदर होता सहनशीलता का भाव ।।
फिर मन मे भाईचारा सद्भाव एकत्त्व का स्वयं भाव इस तरह प्रकट हो जाता है ।
“इंसान हो इंसान की कद्र कर लो ।”
यदि कहि दूर किसी ऐसे शख्स पर नजर चली गयी उसके दर्द को उसकी पीड़ा को लिख बैठता ।
“मैं मजदूर हूँ पर मजबूर नहीं
जीता हूँ हर हाल में पर
मुझेमें कोई गरूर नहीं ।।”
ओर किस तरह से स्वयं को पिता की देह मानकर पिता के चरित्र का चित्रण कर देता है ।
“आज मैं एक पिता हूँ
इसलिए
पिता के हर स्वभाव के भाव को समझने लगा हूँ ।
पिता केवल एक रिश्ते का नाम नही ,
वह तो कई रिश्तों का प्रतिरूप है ।”
लेकिन जीवन मे आस्था का बहुत महत्त है लेकिन आस्था अंधी नही होनी चाहिए । तर्क शील आस्था हमेशा सुखदाई होती है ।
कवि महोदय ऐसा कह रहे है
“आस्था की पराकाष्ठा ही जन्म देती है ।
पाखण्ड ओर अंधविश्वास को ।
जिसमे बड़े बड़े बाबा
पहुँच जाते है दीर्घ कारावास को ।।”
यूँ ही नहीं कवि हिय कहा जाता सब के हित की बात करे
हमेशा कवि ईश्वर की सुंदर सृष्टि से अथाह प्रेम करता है और कवि ह्रदय बोल उठता है ।
“वन उपवन का कर सृजन
है ! मानव तू कर मानव भजन ।
बहुमूल्य रत्न ये जो हमे मिले ,
निर्जन पथ पर भी फूल खिले । ”
कवि हिय को आराम कहाँ मिलता है ,दुनिया सोती है ।कवि जजागता है , और राजनैतिक चिंतन से भी कहाँ कवि अछूता नहीं रह पाता है ।
“चुनाव का त्यौहार फिर से आ रहा है
इसलिए
हरेक नेता अपना नामांकन करवा रहा है ।”
वह संसार के भंवर में गोता लगता है फिर कोई
“मेरा एक सवाल है
बीते हुए कल ओर आज से
सुशिक्षित और प्रतिष्ठित समाज से
इंसान बना इतना दीन हीन ? ”
ओर फिर वह सोचता है स्वच्छ मन से ..।
लोग पूछते है जब मुझसे कि
मैंने क्यों मुस्कराना छोड़ दिया ।
अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ कि
मेरे अपनों ने ही मेरा दिल तोड़ दिया ।।
आपके विचार यहाँ पर भी स्थिर नही हुए और मन के कोने से एक ओर आवाज गूँज उठी
एलोपैथ हो या आयुर्वेद
जब दोनों ही है अभेद
तो भला क्यों हुआ ? दोनों में मतभेद
ओर मन मंदिर मेघ को देखकर उनको कागज पर लिखने को मजबूर हो चला
मेघो की क्या बात कहें ?
मेघ बड़े मतवाले है ।
बरसे जो धरती पर मेघ,
मेघ बड़े दिलवाले है ।
लेकिन ये सब सरल और आसान हुआ गुरू कृपा से
इसलिए दो शब्द गुरू के श्रीचरणों में समर्पित
गुरू की महिमा कर पंस नहीं होता यूँ आसान,
शिष्य की समर्थ नहीं जो कर सके गुरु बखान ।।
फिर कवि हिय सब धर्म समभाव की ओर मचल उठता है और एकत्त्व कि डोर पकड़ कर विश्वबंधु की के सपने संजोने लगता है कुछ इस तरह
समझो तो जगत में हर कोई हमारा है ।
न समझो तो हमें हर किसी ने धिक्कारा है ।।
पुस्तक में लिखी गई रचनाएं अपनी ओर को आकर्षित करती जाती है । और पुस्तक को बार बार पढ़ने को मन ललायित होता है ।
अंत मे मैं तो यही अनुभूति की है कि लेखक ने अपने अनुभव और अपनी कार्यशील के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ देना का भरपूर प्रयास किया है । मैं उन सभी सुधिपाठको से कहना चाहूँगा जो साहित्य में रूचि रखते है या यूं कहूँ जो लेखन अभी अभी लिखना प्रारंभ कर रहे है उन सभी को यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए । पुस्तक की कैसी भाषा शैली है कवि की कैसी सोच है । कवि आपने भावो को कैसे व्यक्त करता है । और क्या कहना चाहता है । अवश्य पढ़ें और साहित्य की बारीकी सीखे । वैसे तो इस पुस्तक में सभी अगुतंक कविताएं है । लेकिन भाव पक्ष के दृष्टि कोण से बहुत ही मार्मिक सृजन है । मैं आशा और उम्मीद करता है सभी सुधिपाठको को यह पुस्तक पसंद आएगी ।
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समीक्षक
डॉ अमित कुमार बिजनौरी
कदराबाद खुर्द स्योहारा
बिजनौर उत्तर प्रदेश