रूह उलझन में है बदन के साथ
वज़्न – 2122 1212 221/1121
ग़ज़ल
रूह उलझन में है बदन के साथ
दिल की बनती नहीं है मन के साथ
वाहवाही तो बाद की है बात
पहले होती घुटन सुख़न¹ के साथ
ज़ख़्म पर तुम नमक मलो कुछ और
आ रहा है मज़ा जलन के साथ
घर पे आकर वो टाँग देता रोज़
अपना किरदार² पैरहन³ के साथ
है बहुत तेज़ लोभ की रफ़्तार
कितना दौड़ोगे तुम हिरन के साथ
आ ही जाता है पद को पा के ग़ुरूर
आ भी जाते फ़ितूर धन के साथ
जो न माँ-बाप का हुआ हो ‘अनीस’
क्या करेगा वफ़ा वतन के साथ
– अनीस शाह ‘अनीस’
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