हनुमानबोध सार
परमात्मा कबीर कहते हैं धर्मदास त्रेता युग में मैंने हनुमान को ज्ञान सुनाया जब सेतुबन्ध के समय मैं रामेश्वर गया और मुनीन्द्र नाम से जाना गया ।।
साखी:-सेतु बन्द में जायके, देखा हनुमत वीर।
बहुत कला है तासुकी, सबहि बजर शरीर।।
परमात्मा ने कहा हनुमान तुम अभिमान को त्याग कर सत्य सनातन पुरूष की कथा सुनो जिसके बारे में तुम नहीं जानते जो परमात्मा सब के हृदय में विराजमान है। रामचन्द्र जैसे तो कई बार अवतार ले कर बार बार मृत्यु को प्राप्त होते हैं ।
साखी:- सेवत होवतुम कौन को, करो कौंबको जाप ।
सो मोको बतलावहू, कौंन तुम्हारो बाप ।।दोहा:-
वेद उदधि बिन गुरू मुख लखे,लागत लौन समान।
बादर गुरूमुख द्वार होय, अमृत सो अधिकान ।।
वेद ज्ञान गुरूमुखी न हो तो नमक के समान खारा लगता है और गुरूमखी होने पर अमृत से भी अधिक मीठा लगता है।
हनुमान जी कहते हैं मेरी कला को सभी जानते हैं मेरे समान कोई बलशाली नहीं है । इस संसार में बावन बीर है लेकिन मेरे समान किसी का भी पराक्रम नहीं है मैं सबका सिरमौर हूँ । जो मुझे इष्टरूप में पूजता है उसके सभी कार्य मे सिद्ध करता हूँ। मुझे सभी सांसारिक जानते हैं,तुम्हे कोई नहीं जानता है।
साखी:-सुनो मुनीन्द्र मोरी गति,मोसम और न देव ।
चाहे सो कारज करूं, दृढ़ कै साधे सेव ।।
मुनीन्द्र वचन :-हनुमान अपनी तारीफ़ करना अच्छी बात नहीं है जिसने भी शक्ति का अभिमान किया है वह सब नष्ट हो गये। समरथ परमात्मा तो कोई ओर है तुम अभिमान त्यागो तो तुम्हें समरथ का ज्ञान बताऊँ ।
बावन वीर काल की अगुवानी करते हैं इन सभी को काल खाता है। चौसठ योगिन बावन वीरा । काल पुरूष के शरीर मे निवास करते हैं । तुम अपने इष्ट राम की प्रशंसा करते हो समरथ के बारे में तुम्हे ज्ञान नहीं है । प्रभुता संसार मे स्थिर नहीं रहती है शाश्वत स्थान को कोई नहीं जानता तुम हमारा कहना मानों तो समरथ को सकते हो ।।
साखी:-समरथ गति अति निर्मल,प्रभुता अहै मलिन ।
जिनकी तुम सेवा करो, सोउ न पावैं चीन।।
तुम जिसकी सेवा करते हो वह भी उसे नहीं पहचान पाया है।
हनुमान वचन:- रामचन्द जी के समान कोई दूसरा नहीं है वे तीन लोक के स्वामी है ।उन्होंने सागर पर पत्थर तिराय मैं अपना पौरुष बल को जानता हूँ ।मुझे यह संसार यति नाम से जानता है । तुमने मेरे पिता के बारे में पूछा है मैं पिता और माता दोनों के बारे में बताता हूँ । महादेव जिनको सारा संसार पूजता है। मेरा शरीर बिंद से नहीं बना है । साधुरूप (भगवान शिव )को प्यास लगी तो माता अंजनी पानी पिलाना चाहा तो भगवान ने कहा हम निगुरी का जल नहीं पीते । माता अंजनी ने कहा गुरू को कैसे पांऊ तब साधु रूप में शिव बोले हम साधु है समसे दीक्षा लो ।सिंगी नाद रहे शिव पासा ।फूक्यों कान रही तब आशा।। छल करी बीज दीन्ह तब डारी ।तासों उपजी देह हमारी।।
कान रहा लीन्हा अवतारा। पवन पुत्र जाने संसारा ।।
दशरथ घर लीन्हा अवतारा। उनकी गति है अगम अपारा। बड़े बडे उन कारज कीन्हा। तुम मुनीन्द्र भेद नहीं चीन्हा ।।
साखी:- सुनो मुनीन्द्र मोर गति,रामनाम है आदि।
सो दशरथ घर औतरे,उनका माता अगादि ।।
क्रमशः
💐मधुप बैरागी’