#अर्थ_का_अनर्थ_न_हो
#अर्थ_का_अनर्थ_न_हो
◆हम सबका संयुक्त कर्त्तव्य◆
【प्रणय प्रभात 】
एक सज्जन उपदेश देते हुए एक प्राचीन दोहे का बार-बार उपयोग कर रहे थे-
“रूठे स्वजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।”
अंततः मुझे हस्तक्षेप करते हुए उन्हें बताना पड़ा कि इस दोहे में “स्वजन” नहीं बल्कि “सुजन” शब्द का उपयोग किया गया है। जिसका अभिप्राय “रिश्तेदार” नहीं अपितु “अच्छे लोग” हैं। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो अर्थ के अनर्थ की उक्ति को बरसों से चरितार्थ करते आ रहे हैं। सत्यान्वेषण व सत्योदघाटन आपका हमारा सभी का साझा दायित्व है। ताकि साहित्य व सृजन का संदेश सही आशय के साथ समाज तक जाए।
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