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2 Jul 2025 · 2 min read

*सखी री ओ री सखी*

डॉ अरुण कुमार शास्त्री , एक अबोध बालक , अरुण अतृप्त

सखी री ओ री सखी

घृणा तुम्हारी कुछ काम न आएगी ।
जिन्दगी को तो वो छू भी न पाएगी ।
खून का घूंट पी – पी के जो जी रहे हो ।
यही सोच अब जी का जंजाल बन जाएगी ।
दर्द में रहते हो दर्द का ही बिछोना है ।
देखना एक दिन यहीं कब्रगाह भी बन जाएगी ।
सबक सीखो , नजर डालो , अपने आस पास ।
अपने दोस्तों से क्षमा प्रेम , सहानुभूति ,
अपननत्व का पाठ सीखो और रट डालो ।
आखिर को यही सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा बन कर ,
प्रभु की राह में काम आएगी ।
सलाह है , मानो , या न मानो , सखी
सलाह है , मानो , या न मानो , सखी
बिना इन सब के तो तू मेरी सखी कभी ,
मुस्कुरा भी न पाएगी ।
नेमतें हैं खुद का करम हैं , जिसने मानी दिल से,
तो मालिक का बेहतरीन धरम है ।
चल आज तुझको एक नई दुनिया दिखा के लाता हूँ ,
घृणा का चश्मा उतार , वो जन्नत दिखा के लाता हूँ ,
व्हाट्स एप में एक चेहरा आया है उस से मिलवा के लाता हूँ ।
नाम अबोध बालक है । काम लिखने का और छापने का ,
जिंदगी देखने का और दिखाने का ,
दुनिया घूमने का और ईश्वर भजन करने का ।
कभी जुड़ी उस से , तो सीधा जिंदगी से जुड़ जाएगी ।
घृणा तुम्हारी कुछ काम न आएगी ।
जिन्दगी को तो वो छू भी न पाएगी ।
खून का घूंट पी – पी के जो जी रहे हो ।
यही सोच अब जी का जंजाल बन जाएगी ।

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