कार्यशाला का एक दिन
कल जब कार्यशाला के खत्म होने पर मैं घर गई अकस्मात ही एक स्मृति मेरे दिमाग को कौंधने लगी। यह क्या हो गया? और मैने ऐसा क्यों किया , दिन भर की घटनाएं मेरे मन मस्तिष्क पर चित्रपट की भांति क्रमानुसार चलने लगे, उन सभी चित्रों में एक चित्र ऐसा था जिसे देखकर मुझे अकस्मात ही ग्लानि महसूस होने लगी ।
मैं बार-बार उस घटनाक्रम को जोड़ती और अपने द्वारा हुई उस भूल का एहसास करने लगती। किसी कार्य में मन नहीं लग रहा था । विद्यार्थी पढ़ने के लिए घर आ गए थे, किंतु बार-बार मेरा मस्तिष्क उसी घटना की ओर मुझे लेकर चला जाता था जब मैं रात्रि का भोजन बना रही थी तब मैं अपने द्वारा किए गए उसे कार्य को सोच-सोच कर कभी हंसती तो कभी ग्लानि तो कभी शर्म से पानी पानी हो जाती। समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा गलत काम मैने क्यों कर दिया? यह भूल मुझसे कैसे हुई ? क्यों हुई ? क्या जरूरत थी मुझे ऐसा करने की? संभवतः यह मानव मस्तिष्क का जटिलताओं को समझना आसान नहीं होता । क्या यही मानव प्रवृत्ति है कि यदि उसे कोई वस्तु एक से ज्यादा मिले तो वह खुश हो जाता है और उससे भी ज्यादा वह तब खुश हो जाता है जब उसे दूसरों से ज्यादा मिले और यह प्रवृत्ति मेरी भी बन गई। इसीलिए शायद अनजाने में ही मैंने यह गलती कर दी हो?
अब ज्यादा पहेलियां नहीं बुझाऊंगी मुद्दे पर आती हूं, हुआ कुछ यू कि कल की कार्यशाला में दोपहर के समय चाय के साथ हम सभी शिक्षकों को बिस्किट के पैकेट दिए जाते हैं, मेरे टेबल पर दो चाय के कप थे और दो बिस्कुट का डिब्बा था। मैंने अपना चाय और बिस्किट दोनों ही खत्म करके खाली पैकेट को डस्टबिन में फेंक दिया तभी कुछ देर के उपरांत मेरी साथी शिक्षिका मुझे निर्देश देते हुए बोली कि “यह रखा हुआ चाय और यह बिस्किट नहीं लेंगे”? मेरे मन में आया कि शायद आज गलती से मुझे दो चाय और दो बिस्कुट के डिब्बे मिल गए । मैं खुश होकर दूसरी चाय भी पी गई और बिस्किट के उस पैकेट अपने बैग में रख लिया । यह मैने क्यों किया ? थकान के कारण चाय जैसे किसी अमृत से कम न लगी किंतु जब मैं घर पहुंची तभी रात्रि का भोजन करते समय अचानक ही एहसास हुआ कि वह ना तो चाय मेरी थी और ना ही वह बिस्किट मेरी थी । शायद गलती से मैने किसी और के हिस्से की बिस्किट और चाय ले ली थी ।अब ये विचार मुझे इस तरह कौंध रहे थे कि मैंने सोचा कुछ तो ऐसा उपाय करना होगा अन्यथा इन विचारों के समंदर में यूं ही गोते लगाती रह जाऊंगी । पूरी रात नींद नहीं आई, बेचैनी महसूस हो रही थी, सोच रही थी कि मैने जिसका हिस्सा खा लिया वो मेरे बारे में क्या क्या सोच रही होगी। इसलिए दूसरे दिन पश्चाताप स्वरूप मैं सबके लिए गरमा गरम कचौड़ी लेकर गई और सबके समक्ष इस बात को भी उजागर किया । सभी बोले कि छोटी सी बात पर इतनी व्यग्रता की कोई आवश्यकता नहीं थी।
वैसे मेरे विचार से गलती छोटी सी हो या बड़ी किंतु यदि उसे समय पर सुधार लिया जाए तो आजीवन आप उस ग्लानि से खुद को निकाल पाते हैं, और आप एक आजादी सा महसूस कर पाते है ।