" रोग भगाए योग सदा ही "
विधा – कुकुभ छंद
गीत
रोग भगाए योग सदा ही , मिटता मन का अँधियारा ।
ब्रम्ह नाद की गूंज हुई तो , जागे हृद का गलियारा ।।
स्वास्थ लाभ के साथ साथ ही , नाड़ी शोधन हम पाते ।
बिन औषध ही रोग बहुत से , आसानी से कट जाते ।
भीतर , बाहर की पीड़ा से , मिल जाता है छुटकारा ।।
रोग भगाए योग सदा ही , मिटता मन का अँधियारा ।।
श्वांस श्वांस पर सधे नियंत्रण , उम्र लगे है बढ़ जाती ।
हँसी , खुशी मुठ्ठी में होती , आनन पर जो चढ़ जाती ।
मिले चुनौती जीवन में जो , संयम करता हल सारा ।।
रोग भगाए योग सदा ही , मिटता मन का अँधियारा ।
छिपा हृदय में है प्रकाश जो , दरस उसी का तब पाते ।
ध्यान , धारणा , समाधिस्थ हों , नया जागरण कर पाते ।
हर पल में आनंद बसे जब , बाजे मन में इकतारा ।।
रोग भगाए योग सदा ही , मिटता मन का अँधियारा ।
खुली हवा कुदरत से जुड़ते , अधरों बसती सद वाणी ।
मिलने से बढ़ता अपनापा , हृद से जुड़ते हर प्राणी ।
सम्मुख देश खड़ा हो संकट , मिल जुल कर है ललकारा ।।
रोग भगाए योग सदा ही , मिटता मन का अँधियारा ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )