आंतरिक सफलता की ओर। ~ रविकेश झा।
यहां हर कोई सफलता हासिल करना चाहता है चाहे उसे सफलता का अर्थ पता हो या नहीं लेकिन बनना है। कुछ बनना है ही उन्हें ताकि सफल व्यक्ति के श्रेणी में उन्हें रखा जाए और बाहरी खुशी हाथ लग जाए। जब व्यक्ति कुछ बनना चाहता है इसका अर्थ है कि वह कुछ पहले से है नहीं उसके पास कोई उपलब्धि नहीं है इसीलिए वह दौड़ में शामिल होना चाहता है। लेकिन अगर उसे अगर अचानक पता चलता है कि वह पूर्व जन्म के बहुत सफल था बहुत बड़ी कार थी बहुत पद प्रतिष्ठा नाम धन यश था, लेकिन एक दिन मृत्यु सब पर पानी फेर दिया सब मिट्टी मिट्टी में ही रह गया कुछ साथ नहीं गया। यह सच भी है मैं यहां दो बात को रखता हूं, पहली बात यह कि आप कितने जन्म जी चुके हैं कितने भौतिक देह बदल चुके हैं आप और यह अभी जी रहे हैं यह जन्म इस मां पिता के कारण हुआ है और भी जन्म हुए हैं लेकिन आपको याद नहीं स्मरण नहीं होता। होगा भी नहीं क्योंकि हमारे मन उतना ही चीज याद रखती है जिसकी जितनी आवश्यकता होती है बाकी दूसरे रूम मे रख दिया जाता है। जैसे हमारे घर में एक कमरा होता है जिसमें हम बाकी वस्तु को रखते हैं वैसे ही हमारा मन है। हमें जिस वस्तु की ज़रूरत होती है उतना हम पास में रखते हैं बाकी घर के कोई कोने में पड़ा रहता है। ऐसा ही पूर्व जन्म का खेल है कुछ प्रक्रिया है और हम जान भी सकते हैं कि हम पूर्व जन्म में किस योनि में थे और बाकी कितने जन्म से भटक रहे हैं। लेकिन हमें कैसे पता चलेगा कि जन्म का क्या खेल है उसके लिए तो ध्यान और जागरूकता में डुबकी लगाना होगा साहब। अचेतन अवचेतन और चेतन तीनों मन के परतें खोलना होगा जाग कर सब मन को निरीक्षण करना होगा। हो सकता है कि आप पूर्व जन्म में भिकारी हो या अमीर या इस जन्म में धनी व्यापारी हो और हो सकता है कि पूर्व जन्म में गरीब हो। या कोई पशु हो कोई पक्षी या कोई दूसरे योनि में हो, कुछ भी हो सकता है यहां। दूसरी बात यह मैं कहूंगा कि आप पहले से यहां अमीर है बल्कि आप पूरे ब्रह्मांड का राष्ट्रपति हैं, आपके पास शरीर है मन है आत्मा है और मनुष्य अंतिम सीढ़ी है 84 लाख योनियों का, आप स्वयं ईश्वर हैं आप दिव्य है आपके पास दिव्य दृष्टि है जब आप ध्यान में बैठेंगे तब आपको पता चलेगा कि आप स्वयं परमात्मा हैं। लेकिन फिर भी आप सफलता के पीछे यूं ही पड़े हुए हैं क्या मिलेगा सफल होकर क्या मिलेगा, नाम धन पद प्रतिष्ठा लेकिन देगा कौन और पद पर कार्यरत कौन रहेगा शरीर मन या आत्मा, यह एक बार सोचना आप। मैं पहले भी इस पर बोल चुका हूं, एक शरीर दूसरे शरीर पर निर्भर है यहां कोई हमें अच्छा कहे कोई हमें भी सफ़ल लोगों में शामिल करे।
बहुत लोग फिर भी धन पद प्रतिष्ठा नाम के पीछे भागते हैं कुछ होते हैं कोई एक होता है जो स्रोत के पीछे जाता है आखिर मैं यहां हु क्यों कहां से आया मैं और कहां को जाऊंगा मैं कौन हूं और मेरा मूल स्वरूप और मूल कर्तव्य क्या है स्वभाव क्या है लक्ष्य क्या है हम क्यों जन्म लिए हैं आत्मा है भी या बस झूठ है परमात्मा है या नहीं सत्य क्या है शुभ क्या है कर्म क्या है निष्काम क्या है। लोग मृत्यु को क्यों प्राप्त होते हैं लोग बूढ़े क्यों हो जाते हैं ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न के साथ साधक चलता है वर्षों तक अध्ययन और तपस्या करते हैं। बहुत प्रश्न उठता है शुरू में और अंत में सब प्रश्न धूमिल हो जाता है कुछ नहीं बचता है न प्रश्न न कोई उत्तर बस शून्य बस साक्षी। कोई एक होता है जो अपने और ब्रह्मांड के स्रोत के पीछे जाता है आखिर ब्रह्मांड है क्या। यही मैं कह रहा है अभी ऊपर कि हम ब्रह्मांड से भिन्न तो नहीं सब एक है जो बाहर होता है जो प्रकृति के साथ घटती है वही असर हमारे ऊपर होता है लेकिन मूर्छा के कारण हमें पता नहीं चलता। हमारे शरीर पृथ्वी तत्व से बना है बाकी जल अग्नि वायु आकाश हमारे भीतर है वैसे ही हम अग्नि को क्रोध या रौशनी और जानने में उपयोग करते हैं मन है भीतर तत्व के अनुसार बना हुआ है। बाकी हम करुणा करते हैं प्रेम में पड़ते हैं सब मन है और सब जुड़ा है ब्रह्मांड से यही सत्य है साहब। फिर भी हम जानने की कोशिश नहीं करते यहां अमृत की धारा बह रही है और आप कचरे को इकट्ठा करने मे लगे हुए हैं सब मिट्टी है नाम पद प्रतिष्ठा धन यश सब भौतिक है सब यही रह जाएगा साथ जायेगा अमृत यानी आत्मा साथ रह जाएगा जिसका मृत्यु कभी नहीं होने वाला परमात्मा साथ रह जाएगा जो कभी नहीं मिटने वाला है। अगर हम हिम्मत बढ़ाते हैं जागरूकता को चुनते हैं आत्मिक होने पर ज़ोर देते हैं फिर हम भी शून्य हो सकते हैं और पूर्ण शांत होकर स्वयं के भीतर प्रभु को देख सकते हैं अमृत पी सकते हैं अमृत ही अमृत का वर्षा हो रहा है भीतर बस हमें साहस करना है ताकि हम सब ऊपर उठ सके जाग सके।
मनुष्य अंतिम श्रेणी है और अंतिम योनि भी उसके बाद आप परमात्मा हो सकते हैं पूर्ण आनंद से भर सकते हैं। संतुष्टि भी मिलेगी आपको आप खिल उठेंगे जाग उठेंगे हंसते हंसते जीवन व्यतीत करेंगे जब तक आप जीवन जीना चाहे मृत्यु आपके वश में हो सकता है आप उत्तम हो जायेंगे। मनुष्य ही क्यों अंतिम योनि क्यों है मनुष्य के पास ऐसा क्या है जो उसे जल्दी परमात्मा मिल जाता है और पशु पक्षी को नहीं या और 84 लाख योनियों को नहीं ऐसा क्या है मनुष्य में?। मनुष्य में शालीनता भरपूर है मनुष्य के पास सात शरीर है बाकी को नहीं मनुष्य का रीढ़ सीधा है यही सबसे अलग करता है मनुष्य को, मनुष्य ऊपर देख सकता है मनुष्य में आकाश शरीर भी मौजूद है मनुष्य देख सकता है अच्छा बुरा शुभ अशुभ से अवगत हो सकता है मनुष्य के पास मन है जो उसे सबसे भिन्न रखता है मनुष्य पूर्ण है इंद्रियां है। जैसे पशु झुके हुए रहते हैं वह है रीढ़ के कारण वह आपको पृथ्वी और आकाश के बीच सेतु का काम करता है। पशु के रीढ़ झुका हुआ है जो उसे उठने नहीं देता वह चारों पैर से चल रहा है जब रीढ़ सीधा हुआ तो फिर दोनों हाथ स्वतंत्र हो गया अब वह सीधा हो सकता है खड़ा हो सकता है ऊपर देख सकता है बाकी का काम आसानी से कर सकता है। सब कुछ धीरे धीरे विकसित हुआ है जैसे जैसे समय बिता वैसे वैसे हम शरीर से दूर होते गए मन में पहुंचे और वही व्यक्ति धीरे धीरे आत्मिक होने लगा। इसीलिए मैं और ध्यानी कहते हैं कि मनुष्य ही अंतिम योनि है जिसे ज्ञान और परमात्मा प्राप्त हो सकता है। पशु रीढ़ के कारण बुद्धि तक ठीक से नहीं पहुंच पाता है वो निचले चक्र में फंसा रहता है उसमें पृथ्वी और जल तत्व अधिक होता है अग्नि अधिक नहीं रहती है उसी कारण वो समझ नहीं पाता अनुभव नहीं कर पाता आकाश तत्व नहीं होता उसी कारण स्थिर नहीं हो पाता बल्कि कर्म में हमेशा फंसा रहता है। इसीलिए मनुष्य के पास सब कुछ है मनुष्य पूर्ण है वो चाहे तो आकाश तक पहुंच सकता है या पृथ्वी में फंसा रह सकता है मनुष्य सीढ़ी के तरह काम करता है या तो आप ऊपर उठेंगे शांत रहेंगे शून्य में स्थिर रहेंगे या भोग विलास में डूबे रहेंगे गाली हिंसा क्रोध वासना में फंसे रहेंगे, या तो आप उठ कर जाग सकते हैं आत्मिक हो सकते हैं या जीवन में जटिलता को बढ़ावा दे सकते हैं। दोनों चुनाव आपका रहेगा जो आप चयन करो आप ही करोगे, इसीलिए जाग कर कर्म करो ताकि जीवन में उठ सको मुक्त हो सको इसके लिए कुछ करो आप।
हम कुछ और हो सकते हैं ये मैं हमेशा कहता हूं और अभी भी कह रहा हू आप कुछ और हो सकते हैं। जटिलता से सरलता की ओर बढ़ सकते हैं आप आनंद पूर्वक जीवन जी सकते हैं। जीवन में संतुष्ट रह सकते हैं यह सब ध्यान जागरूकता के मदद से संभव होगा। हम अधूरे हैं कभी हम पूरे नहीं होते फिर भी हम प्रतिदिन दौड़ लगाने निकल पड़ते हैं सोचते हैं कुछ हाथ लग जाएगा तो शांत हो जाऊंगा लेकिन मन साथ नहीं देता हमारा, हम कुछ सोचते हैं होता कुछ है। मन भरता नहीं कभी कुछ न कुछ मांग भीतर चलता रहता है वही मन के कारण हम भागते चले जाते हैं बस। किसी एक चीज में बाहर से सफल होते हैं तो मन फिर आदेश दे देता है फरमाइश नहीं करता बल्कि आदेश देता है मन हमारा गुलाम थोड़े है बल्कि हम मन के गुलाम है साहब हम वही करते हैं जो मन कहता है जो शरीर का मांग रहता है हम उसे पूरा करने में लग जाते हैं। यही कारण है कि हम आज तक जान नहीं पाए कि मन क्या है। मन कहता है कि यह करो फिर कहता है कि वो करो लेकिन हम ठहरते नहीं देखते नहीं कि कह कौन रहा है आखिर आदेश कौन दे रहा है। भीतर कौन है जो मनमानी कर रहा है कभी वासना से ग्रस्त हो जाते हैं कभी क्रोध घृणा से, ऐसा क्यों होता है, दिमाग पर बल देना होगा ठहर के विचारना होगा सोचना होगा स्थिर होना होगा पहले। हम अक्सर जल्दी में रहते हैं और यही कारण है कि हम स्थिर नहीं हो पाते रुक नहीं पाते ऐसे क्यों होता है क्योंकि हम वासना के बीमारी से पीड़ित है जूझ रहे हैं हम सब खतरनाक बीमारी से जो हमें कभी नहीं उठने देता पशु बना देगा, हम सबका रीढ़ झुका जा रहा है हम दिमाग तक पहुंच नहीं पाते बस निचले हिस्से में फंसे रहते हैं। बस भोग लगाने में जुट जाते हैं सेक्स भोजन या कोई अन्य नशा जो हमें प्रीतकर लगता है हमें पसंद आता है, पसंद भी क्यों न आए सुंदर सुंदर स्त्री मन पसंद भोजन या दारू सिगरेट भांग धतूरा गांजा चरस या अन्य जिसका जो पसंद हो और जिसका मन जिस चीज़ पर अधिक रहे वही वासना बन जाता है। वासना कोई भी इन्द्रियां में हो सकता है मैं पहले भी बोल चुका हूं और फिर बोल रहा हू। लेकिन हम सुनते कहां है बस भागते रहते है और जब बाहरी असफलता हाथ लगता है फिर भाग्य को कोसने लगते हैं सोचते हैं कि भाग्य के कारण लड़की छोड़ कर भाग गई धोका दे दिया अब सुनो कुमार सानू जी का गीत या अन्य पसिंदा गायक और गीतकार या संगीतकार का गीत, फिर मन कोई दूसरा रास्ता खोज लेगा फिर कोई आएगा जीवन में या आएगी दुःख अधिक दिन तक नहीं रहता है खोज लेता है डाली पक्षी के तरह फिर घोंसला बनाने में लग जाता है एक घर टूटा दूसरा घर बना लेता है मनुष्य भी अधिक बुद्धिमान है रुकता कहां है ठहरता कहां है देखता नहीं है कि बार बार जन्म जन्म से यही कर रहे हैं और कितने दिन महीना वर्ष या कितने जन्म तक करना है यह भी जान लो पहले। अगर आप बाहरी सफल हो ही जाते हैं तो क्या होगा पहली बात तो सब कॉपी पेस्ट होगा और दूसरी बात अगर कुछ क्रिएट भी किए तो क्या होगा यही से लिए और किए कोई नई बात नहीं हुई और तीसरी बात प्रतिष्ठा कर कौन रहा है आपके ही तरह कोई मूर्ख होगा जो डिग्री और उपलब्धि देख कर फूल माला गले में टांगते होंगे। क्या होगा वो फूल माला का पागल ही तो पहना रहे हैं मन चेंज हुआ तो माथा भी तोड़ देंगे गाली क्रोध घृणा हिंसा पर आ जायेंगे क्योंकि उनके मन के कामना के अनुसार नहीं हुआ उनके मन मुताबिक फल नहीं मिला अब वो कुछ करेंगे या स्वयं करेंगे कुछ या पुलिस में केस दर्ज करेंगे, गुंडा भेजेंगे लेकिन कुछ करेंगे देखते हो न आप क्या सब होता भौतिक संसार में। सांसारिक जीवन जीना भी बहुत कठिन है साहब आप थक जाते हैं कभी कभी तो मर जाते हैं दुःखी हो जाते हैं।
हम अधिक फायदा उठाने में लगे रहते हैं और यही कारण है कि हम आगे नहीं बढ़ पाते पीछे के ओर भागते चले जाते हैं बल्कि पशु बन जाते हैं। हमें जीने की कला को देखना होगा हम कैसे जीते हैं कैसे चलते हैं कैसे बैठते हैं कैसे बोलते है कैसे सुनते हैं सभी पर आंखें दौड़ाना होगा बारीकी से अध्ययन निरीक्षण करना होगा। हमें ध्यान केंद्रित करना होगा हम चौबीस घंटे क्या करते हैं जागते है काम करते हैं भोजन या अन्य काम करते हैं या अंत में सोते हैं सब को होश पूर्वक घटने देना है आप चौंक जाएंगे परिणाम देखकर साहब आप सच में चौंक उठोगे और सोचोगे कि ये चीज़ मैने पहले क्यों न की। अगर सफ़ल जीवन जीना है तो पहले स्रोत का पीछा करो आखिर हम आए हैं कहां से जो प्रश्न का उत्तर नहीं पता चला आज तक उस सब प्रश्न का एक सूची बनाएं और उसके अनुसार खोज करें। लेकिन पहले स्वयं का खोज करना होगा बाकी सब उत्तर मिल जायेगा आप स्वयं सब कुछ जानने में सक्षम हो जायेंगे और भीतर से खिलने लगेंगे। हम सब कुछ न कुछ प्रतिदिन स्वप्न देखते हैं और उसे पूरा करने में लग जाते हैं बहुत का होता भी है लेकिन बहुत मन शरीर के कारण चूक जाता है बाहर से असफल हो जाते हैं दुःखी होते हैं बल्कि मरने के लिए भी बहुत आतुर हो जाते हैं, या लोग सगे संबंधी भाई परिवार माता पिता के कारण रुक जाता है फिर कोई डाल खोज लेता है फिर सुबह होती है उनके जीवन में कहा था ना दुःख अधिक दिन तक नहीं रहता है कोई कोना खोज ही लेता है। ठीक है सपने को पूरा करो लेकिन थोड़ा रुक कर देखो भी पीछे भी देखो क्या किया और ध्यान को जोड़ दो अपने कर्म में फिर आप पहले जैसे नहीं रहेंगे बल्कि आप पूर्ण रूप से समृद्ध और आनंदित रहेंगे और खुश भी रहेंगे। तो आपका जीवन है आप ही देखो समझो सुनो सबका करो अपने मन का साहब। आपको आंतरिक सफलता के और बढ़ना होगा आपको भीतर खोज करना होगा आप भीतर से सफल हैं बस स्रोत को खोजना है सीढ़ी का उपयोग करना है ध्यान के माध्यम से जानना है। बल्कि खोजना है स्वयं को आप आखिर हैं कौन आपका वजूद क्या है वास्तव में आप हैं कौन सभी बातों को खोजना है वही आपका साथ रहेगा बाकी बाहरी सफलता सब यही रह जाएगा इसीलिए आपको मन शरीर को जानना होगा तभी आप उस आत्मा तक पहुंच सकते हैं फिर आप स्वयं परमात्मा हो सकते हैं वो भी पूर्ण।
हमें बुद्ध पुरुष सबको पढ़ना चाहिए स्वतंत्र होकर देखना चाहिए उनकी जीवन की कहानी और संघर्ष आपको जीवंत कर देगा साहब। बुद्ध अद्भुत हैं महान विचारक और भगवान हैं। उन्होंने जितना संघर्ष किए उतना हम नहीं कर सकते उनके जीवन में उल्लेख है कि उन्हें बहुत परेशान किया गया ताकि वह विचार व्यक्त करना छोड़ दे और उन्हें मारने की भी बहुत बार प्रयत्न किया गया बल्कि पागल हाथी पीछे छोड़ा गया ज़हर दिया गया कई बार मारने की कोशिश की गई चट्टान हिलाया गया ताकि उनके देह पर पत्थर गिर पड़े और उनका हत्या हो जाए और हम लोग फिर से मूर्छा में जीते रहे। बहुत बार तो उनके चचेरे भाई ने कोशिश की तो कई बार उनके विरोधी जिसमें उस समय के तथाकथित ब्राह्मण थे जो शास्त्र को लेकर चलते थे बस, वह स्वयं के भीतर खोज करना बंद कर दिए थे बल्कि बस तोता हो गए थे। वह बुद्ध को बर्दास्त नहीं कर पाते थे क्योंकि बुद्ध धर्म को जड़ से उखाड़ना चाहते थे जात पात से परे उठने के लिए बोल रहे थे शांति संतुष्टि और पूर्ण मौन के बारे में शिक्षा देते थे। क्योंकि धार्मिक व्यक्ति बहुत खतरानक है वह कभी न चाहेगा कि कोई दूसरा धर्म श्रेष्ठ हो सब मेरे धर्म को माने और वो उसके लिए तलवार उठा सकते हैं। और होता रहा है यही सब रामायण हो या महाभारत या विश्वयुद्ध या भारत में हुए हो युद्ध या अन्य देश में लोग तलवार या न्यूक्लियर पावर या अन्य हथियार परमाणु हथियार आज कल उद्जन हथियार बहुत अधिक है। आज कल तो अधिक हथियार पर खर्चा किया जाता है। हम या तो युद्ध करते हैं या युद्ध की तयारी करते रहते हैं मन में, हम करते क्या है या तो भौतिक लड़ाई करते हैं आमने सामने लड़ते हैं या मानसिक तनाव में रहते हैं सोचते रहते हैं युद्ध की तयारी करते रहते हैं। यह पहले भी होता था और आज भी हो रहा है और आगे भी होता रहेगा अगर हम बुद्धत्व को प्राप्त नहीं होते तब तक हम बस लड़ते रहेंगे। आज अगर देखो तो ईरान और इजराइल में युद्ध हो रहा है या तो भूमि या ज़मीन या कुछ भौतिक चीज़ के लिए लड़ाई होगी या धर्म के लिए धर्म बहुत बड़ा नेटवर्क है इंसान उसी के लिए लड़ रहा है। सब आज कल युद्ध कर रहा है कोई कह रहा है इस्लाम धर्म ख़तरा में है तो कोई कहता है ईसाई धर्म कोई हिंदू धर्म सब को भय लगता है कोई देश हमारे देश पर कब्ज़ा न कर दे, यह भी बड़ा कारण है युद्ध का।
बुद्ध ने इसीलिए ध्यान को चुना आत्मचिंतन को चुना शांति अहिंसा को चुना, बुद्ध कायर नहीं थे बल्कि महान योद्धा होने के बाबजूद वह अहिंसा को चुना बल्कि जीवन भर शांति का पाठ करते हुए वन वन भटकते रहे। लेकिन भारत ने उन्हें नहीं चुना बल्कि बुद्ध को उखाड़ फेंक दिया सब मिलकर। क्योंकि बुद्ध योद्धा के लिए घातक सिद्ध होते थे वह युद्ध हिंसा के विरोध में थे ढोंगी पंडित के विरोध में थे। क्योंकि भगवान बुद्ध जानते थे कि युद्ध से कुछ हाथ नहीं लगने वाला बेकार में रक्त बहाया जायेगा और क्षणभंगुर सुख में रुचि नहीं लेते थे वो, बल्कि वह पूर्ण आनंद में रहते थे शून्य में स्थिर रहते थे। वो जानते थे बाहरी यानी भौतिक सुख से कुछ देर के लिए खुशी देगा मन फिर कोई रास्ता खोज लेगा इच्छा का। जब हम अंदर से विराट हैं हम ईश्वर हैं सबके भीतर वही ऊर्जा पदार्थ और चैतन्य महाप्रभु है फिर बाहर इतना दौड़ के क्या मिलेगा। वह भीतर को अधिक संतुलित रखने के लिए प्रोत्साहित करते थे, वह भली भांति परिचित थे भीतर से कई वर्ष इसीलिए तो जीवन दांव पर लगाएं ताकि परमात्मा और कई प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो। अब जब सब कुछ जान लिए शून्य हो गए तो वह यही चाहेंगे और पूर्ण ध्यानी सब यही चाहते हैं कि सब को शून्य प्राप्त हो जैसे मुझे मिला है वैसे ही सबको मिलना चाहिए। मुक्ति हमारा लक्ष्य है इस बात को लेकर बुद्ध चलते थे मानना नहीं है जब तक पूर्ण जान न ले। जो व्यक्ति पूर्ण जान लेगा वह मानेगा क्यों क्योंकि वह दोनों को देख लिया मानने वाले को भी believers को भी और जानने वाले को भी those who know, तभी आप बस हो सकते हैं just to be, तभी आप शुन्य होंगे अभी श्रद्धा विश्वास में आप सब जी रहे हैं यही कारण है कि आपको परे नहीं उठने देता ऊपर आकाश के ओर देखने नहीं देता है।
अगर हम पूर्ण जागरूक हुए तभी हम अहिंसा के साथ कनेक्ट होंगे और पूर्ण संतुष्टि के साथ पूर्ण आनंदित भी होंगे हम। ध्यान से हम ब्रह्मांड के साथ जुड़ जाते हैं सारी ऊर्जा और शक्ति से परिचित हो जाते हैं हम उड़ने लग जाते हैं आकाश में शून्य होकर देखते भी रहते हैं अपने ही मन विचार को मात्र साक्षी होश ही आपको जीवंत कर देता है भीतर से। बुद्ध ने कई वर्ष तपस्या की बल्कि शरीर जान दांव पर लगा दिए शरीर सुख गया था बुद्ध का जब उन्हें किसी गुरु ने उन्हें भोजन कम करने को कहा वह एक दो चावल पर आ गए थे जैसा गुरु ने आदेश दिया वैसे वैसे करते गए। शुरू में प्रश्न नहीं उठाया बस जाग कर देखते रहते थे आज यह किया कल यह किया लेकिन मिला क्या, क्या प्रश्न के सारे दीवार गिर पड़े क्या मन हल्का हुआ क्या कोई प्रश्न बचा अब, इसीलिए वह बुद्धत्व को प्राप्त हुए अगर मान लिए होते तो आज बुद्ध भी तोता पंडित होते। लेकिन उन्होंने सभी अनुष्ठान विधि विधान से पूरा किया जैसे गुरु ने कहा वैसे करते गए। लेकिन अंत में सभी गुरु को छोड़ दिया, जब वह निरंजना नदी पार कर रहे थे तो बिल्कुल शरीर से अस्वस्थ थे चल नहीं सकते थे ठीक से बहुत संघर्ष किया बहुत सोचे विचारे। लेकिन एक बात था कि बुद्ध सोचते विचारते थे मानते नहीं जाते थे सब बातों को ध्यान से निरीक्षण करते थे। वह सोचे जब ये छोटी सी नदी, नदी छोटा ही था जल अधिक नहीं था बल्कि बच्चे भी आसान से पार कर जाए ऐसा जल था नदी में, जब ये नदी पार नहीं कर पा रहा हू तो भव सागर कैसे पार करूंगा वह तो लंबा सफर है और उसे इस शरीर से तय नहीं कर पाऊंगा ऐसे में मेरी जान जा सकती है शरीर से मांस गायब होता जा राजा बस हड्डी दिखाई देता था। लेकिन फिर भी बुद्ध ने तपस्या की और वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या पूर्ण की उससे पूर्व संकल्प लिया ताकि बीच से ध्यान नहीं हट पाए। बुद्ध जब बैठे तो शांत हो कर बैठ गए आंख बंद करके भीतर देखने लग गए।
बुद्ध पहले बात मान लेते थे जो बताया जाता था गुरु से वह पूरा करते थे लेकिन स्वयं से अंदर ही अंदर प्रश्न भी उठता था चिंतन मनन करते रहते थे। लेकिन हम यही वजह से फंस जाते हैं कैसे गुरु मिलेगा सच्चा कैसे पता चलेगा कि यह बुद्ध पुरुष हैं, क्योंकि सब आज कल बाबा बनके घूम रहे हैं फर्जी संत सब ज्ञान देते रहते हैं, फिर कृष्ण ने यह भी कहा है कि मुझ में समर्पण भाव रखो मेरी शरण में आ जाओ। लेकिन यहां कृष्ण सच्चे बुद्ध पुरुष हैं वह ज्ञानी है क्योंकि वह सब कुछ जाने हैं, लेकिन शिशुपाल कहेगा कि नहीं कृष्ण झूठा है रास लीला करता है स्त्री सब में लगा रहता है चोर है विरोधी तो कृष्ण के भी थे और बुद्ध के भी। इसीलिए यहां मैं कहता हूं कि सुनो सबकी करो अपनी मन की, अपने मन को लगा दो गुरु में लेकिन स्वयं भी सोचो विचारो मन में चिंतन करो। बुद्ध ने यह भी कहा है कि अपने दीपक स्वयं बनो स्वयं प्रकाश जलाओ भीतर, स्वयं देखो अपने आंख से क्योंकि परमात्मा भी तुम्हें ही मिलेगा तुम्हें ही खोजना होगा गुरु तो माध्यम होते हैं रास्ता बताते हैं लेकिन चलना तो स्वयं होता है, बुद्ध ने यह भी कहा कि मुझे छोड़ देना अगर तुम मेरे तक सीमित रहोगे फिर आकाश को मिस कर दोगे क्योंकि तुम मेरे भौतिक देह तक रुक जाओगे और तुम्हें भीतर अपने परमात्मा को देखना है इसके लिए तुम्हें गुरु को भी छोड़ना होगा। कृष्ण भी यही कह रहे हैं मेरे शरण में आ जाओ मैंने जाना है तुम्हें भी बताता हूं सत्य, लेकिन अगर हम कृष्ण के उंगली को पकड़ ले फिर हम कृष्ण के देह तक सीमित हो जायेंगे। कृष्ण कह रहे हैं मैं हूं यानी आत्मा की बात कर रहे हैं उस आत्मा को संबोधित कर रहे हैं, वह आकाश को देखने के लिए कह रहे हैं और हम बस उनके उंगली पकड़ना चाहते हैं ऐसे में कुछ नहीं हाथ लगेगा बस जटिलता और दुःख के। वही बात स्वामी विवेकानन्द जी के गुरु का हाल था, वह मां काली तक सीमित हो गए थे स्वयं से परिचित नहीं हुए थे पूर्ण काली बाधा बनती थी बीच में। उनके आखिरी गुरु तोताराम जी ने उन्हें नींद से जगाया, हमें गुरु को भी छोड़ना पड़ता है तभी हम सात चक्र यानी आखिरी दरवाज़ा तक पहुंचेंगे आकाश के साथ एक होंगे। तोताराम जी उन्हें कहा कि जब ही ध्यान के बीच काली आए तो तलवार उठाना और काट देना जो होगा सार्थक ही होगा। लेकिन रामकृष्ण परमहंस जी हिचकिचाए बहुत भय भी हुआ लेकिन आखिर समय में काट ही दिया यानी भीतर से मां काली को हटा दिया वह कल्पना में थे कुछ दृश्य देख कर खुश हो जाते थे लेकिन उन्हें शून्यता तक पहुंचना था। अंत में वह समाधि में पहुंच गए और बुद्ध हो गए। आज पूरे विश्व में बुद्ध के अनुयाइयों और शिष्य है उनके विचार पर चलने वाले हैं पूरे एशिया बहुत देश में बुद्ध के मूर्ति है बुद्ध अधिक प्रभावित करते हैं सभी को क्योंकि उन्होंने नास्तिकता को पहला क़दम सीढ़ी दिया, जो सबको पसंद करता है पढ़े लिखे शिक्षित लोग उन्हें अधिक पसंद करता है। जानने वाले लोग अधिक सुनते है पढ़ते हैं उन्हें। भारत में भी लेकिन उन्हें भी हिंदू बना कर कुछ हैं जो नास्तिक मानते है उन्हें। मैंने बुद्ध पर पहले भी लेख लिख चुका हूं आप लोग अवश्य पढ़ें और आगे बढ़ें।
आप लोग सबको पढ़ो ध्यान जागरूकता के साथ स्वतंत्र रहो ध्यान में रहो होश में रहो साहब।
इतने ध्यान से पढ़ने और सुनने के लिए आभार प्रणाम।
धन्यवाद,
रविकेश झा (पूर्णगुरु),
🙏❤️🌹,