स्त्री और पुरुष। ~ रविकेश झा।
हमारे जीवन में बहुत कठिनाई है हम प्रतिदिन जूझते रहते हैं अपने दुखों से अपने तनाव से परेशान रहते हैं। हम जीवन को जटिलता से भर देते हैं और सोचते भी रहते हैं कि हम ठीक कर रहे हैं अपने प्रति इससे बेहतर और हो क्या सकता है। हम अपनी गलती कभी नहीं मानते हैं बल्कि बस दूसरों पर गलती थोपते रहते हैं। नहीं ऐसे मत करो जीवन को समझने की कोशिश कीजिए आप बहुत बेहतर और सबसे अनूठा व्यक्ति है जैसे बुद्ध महावीर अन्य महापुरुष हुए हैं वैसे ही आप हैं लेकिन अभी सोए हुए हैं मूर्छा में जी रहे हैं। यही कारण है कि हम उठ नहीं पाते और जीवन को भय से भर देते हैं नहीं साहब ऐसे में जीवन में बस कठिनाई महसूस होगा और कुछ नहीं। वैसे भी एक दिन मृत्यु सब कुछ आपसे छीन लेगी बल्कि मौत किसी का मित्र नहीं हुआ आपका कैसे होगा। मृत्यु तो सत्य नहीं है लेकिन झूठ भी नहीं है शरीर की मृत्यु होती है घर गिरता है फिर नया मकान त्यार हो जाता है फिर पंक्षी डेरा खोज लेता है डाली मिल ही जाता है शरीर भी यही मिट्टी में मिल जाता है बल्कि जैसा धर्म वैसा अंत होता है मिट्टी मिट्टी में मिल जाता है यही रहता है शरीर भी यही है और आत्मा भी बस हम जल्दी के कारण मानते जाते हैं। आंख खोलकर देखते नहीं है मृत्यु तो शरीर का हुआ ठीक है लेकिन आत्मा का क्या होगा आत्मा ना तो जन्म लेगी न मरेगी। फिर मृत्यु जन्म किसका होता है भौतिक शरीर का मृत्यु होता है भौतिक का जन्म हो सकता है और मृत्यु भी लेकिन बीच में मन बच जाता है जो हम स्वप्न देखे थे जो अंतिम विचार भावना के साथ बना था जो हम सोचते हैं वही हमारा आउटपुट होता है और वही फिर जन्म लेता है चेतन अवचेतन अचेतन मन के कारण जन्म होगा ही। अगर हम अतिचेतन मन तक पहुंच जाते हैं फिर हम बिल्कुल शांत मरेंगे बल्कि संतुष्ट होकर मरेंगे। फिर जन्म पाना मुश्किल होगा सातचक्र को पार करना होगा तभी हम एक होकर मरेंगे। फिर न भाव शरीर बचेगा न सूक्ष्म शरीर ना भौतिक शरीर बस आप ब्रह्म हो जायेंगे और शून्य हो जायेंगे आत्मिक हो जायेंगे फिर आपका मृत्यु असंभव रहेगा। इस के लिए अंदर का ज्ञान होना चाहिए अभी हम बाहर घूम रहे हैं इसीलिए पता नहीं चलता है हम कुछ और हो सकते हैं हम अंदर से विराट हैं हम अद्भुत हैं। हम पुरुष भी है और स्त्री भी हम दोनों में मौजूद हैं हमें बस स्थिर होना है हर पुरुष में स्त्री गुण है और हर स्त्री में पुरुष लेकिन मन ऊर्जा के कारण हम समझ नहीं पाते पुरुष में एक गुण विशेष है उनकी मानसिक स्थिति चेतन मन में अधिक रहता है यही कारण है कि स्त्री के ओर इशारा करता है वही स्त्री में अवचेतन गुण विशेष होता है वह ठहरती है इंतज़ार करती है पुरुष को कुछ बोलती नहीं है बल्कि अपनी काम वासना को छुपाती है लेकिन अंदर से चलता रहता है। वह विश्राम मोड में अधिक रहती है यही कारण है कि पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करती है।
प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक संदर्भों में महिलाओं की भूमिका और सार आकर्षण और श्रद्धा का विषय रहा है। नरित्त्व से जुड़े रहस्यों को विभिन्न आध्यात्मिक दृष्टिकोण से खोजा जाता है, जो उनकी दिव्य प्रकृति और अंतर्निहित शक्ति के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। यह अन्वेषण अक्सर पोषण करने की प्रवृत्ति और गहन ज्ञान के बीच संतुलन को उजगार करता है। अनेक आध्यात्मिक परंपराओं में, स्त्रीत्व को जीवन, सृजन और परिवर्तन के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है। विभिन्न संस्कृतियों में देवियां इन विशेषता को अपनाती है, जो नरीत्वता की बहुमुखी प्रकृति को प्रदर्शित करती हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में दुर्गा और सरस्वती काली कैसे देवियां की पूजा की जाती है, जो क्रमश, शक्ति और ज्ञान की प्रातिनिधित्व करती हैं। ये देवता महिलाओं की आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाते हैं जो पोषणकर्ता और रक्षक के रूप में रखती हैं। इस तरह के प्रतीकात्मक इस विश्वास को रेखांखित करती है कि महिला में आध्यात्मिक क्षेत्र से गहराई से जुड़ने की जन्मजात क्षमता होती है। उनकी सहज प्रकृति को अक्सर भौतिक दुनिया और उच्च चेतना के बीच एक सेतु के रूप में देखा जाता है, जो उन्हें दूसरों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने में सक्षम बनाता है। नारीत्व का सार सदियों से विद्वानों, कलाकारों और विचारकों को आकर्षित करता रहा है। जबकि समाज ने महिलाओं की भूमिका के समझने और उनका जश्न मनाने में प्रगति की है, उनकी बहुमुखी पहचान के इर्द गिर्द रहस्य का माहौल बना हुआ है। यह अन्वेषण महिलाओं को परिभाषित करने वाली जटिलताओं और रहस्यों को जानने का प्रयास करता है, उनकी ताकत, कमजोरियों और उपलब्धि का जश्न मनाना शुरू हुआ है। पूरे इतिहास में, महिलाओं ने समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, फिर भी उनके योगदान को अक्सर पहचाना नहीं गया। प्राचीन संभ्याताओं से लेकर महिलाओं के अधिकारों को सीमित करने वाले पितृसतामत्क समाज तक, प्रत्येक युग महिलाओं की स्थिति और धारणा पर एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करता है। इन ऐतिहासिक संदर्भों को समझने से उनकी विकसित होती भूमिकाओं के इर्द गिर्द के रहस्यों को सुलझाने में मदद मिलती है। महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने वाले आंदोलनों ने अनगिनत व्यक्तियों को अपने सपनो को पूरा करने और कांच की छत को तोड़ने के लिए सशक्त बनाया है। नारीत्व के भीतर विविधता का उत्सव इस रहस्यमय पहचान में योगदान देने वाले अनुभवों की समृद्धि को उजगार करती है। मातृत्व का रहस्य मातृत्व नरीत्व के पहेली में जटिलता की एक और परत जोड़ता है। मातृत्व में संक्रमण अक्सर शारीरिक और भावनात्मक दोनो। तरह से गहरे बदलावों के साथ होता है। यह परिवर्तन यात्रा खुशी त्याग और विकास के क्षणों से भरी होती है। मां और बच्चे के बीच का बंधन मानव अनुभव में सबसे शक्तिशाली संबंधों में से एक है।
लिंग लक्षणों का अध्ययन कई शोधकर्ता और विद्वानों के लिए एक दिलचस्प विषय रहा है। ये लक्षण, जिन्हें अक्सर पुरुष या स्त्रीलिंग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, सिर्फ़ जैविक अंतर तक सीमित नहीं है, बल्कि मनोविज्ञान सामाजिक और संस्कृतियों आयामों के व्यापक स्पेक्ट्रम को शामिल करते हैं । इन लक्षणों के प्रकट होने का तरीका एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में काफी भिन्न हो सकता है, जो पर्यावरण, पालन पोषण और व्यतिगत अनुभवों सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। परंपरागत रूप से, कुछ लक्षण पुरुषों और महिलाओं से जुड़े रहे हैं। उदाहरण के लिए, ताकत और दृढ़ता जैसे गुणों को अक्सर पुरुष से जोड़ा गया है, जबकि सहानभूति और पालन पोषण को स्त्रैण विशेषता के रूप में देखा जाता है। हालांकि, ये जुड़ाव निरपेक्ष नहीं है। आधुनिक समझ लिंग लक्षणों की अधिक तरल व्याख्या को प्रोत्साहित करती है, यह मानते हुए कि व्यक्ति दोनों का मिश्रण प्रदर्शित कर सकते हैं। लिंग लक्षणों के विकाश में जैविक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन व्यवहार और व्यक्तित्व लक्षणों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, टेस्टोस्टेरोन को अक्सर आक्रामकता और प्रभुत्व से जोड़ा गया है, जिन्हें पारंपरिक रूप से पुरुष का लक्षण माना जाता है चेतन मन से जोड़ा गया है। दूसरी ओर, एस्ट्रोजन पोषण व्यवहार से जुड़ा है अवचेतन मन से जुड़ा हुआ है। आनुवांशिक प्रवृत्ति भी लिंग लक्षणों में योगदान करती हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जीवविज्ञान समीकरण का जीवन एक हिस्सा है, और पर्यावरण कारक समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लिंग लक्षणों पर पर्यावरण प्रभाव जिस वातावरण में कई व्यक्ति बड़ा होता है, वह लिंग लक्षणों के विकास को बहुत प्रभावित करता है। पारिवारिक गतिशीलता, सांस्कृतिक मानदंड और सामाजिक अपेक्षा इस बात को आकार देती है कि व्यक्ति अपनी लिंग पहचान को कैसे समझता है और व्यक्त करता है। बच्चे अक्सर अपने माता पिता और साथियों को देखकर अपनी लिंग भूमिका सीखते हैं जानते है, उन व्यवहारों को आत्मसात करते हैं जो उन्हें अपने लिंग के लिए उपयुक्त लगते हैं। स्कूल अक्सर पाठ्यकर्म और गतिविधि के माध्यम से पारंपरिक लिंग भूमिका को सुदृढ़ करते हैं। लिंग लक्षण स्थिर नहीं होते हैं, समाज की प्रगति के साथ वे समय के साथ विकसित होते हैं। लैंगिक समानता की वकालत करने वाले आंदोलनों ने पारंपरिक रूढ़ियों को चुनौती दी है, जिससे पुरुष या स्त्री होने का की मतलब है, इसकी अधिक समावेशी समझ के बढ़ावा मिला है। लिंग की तरलता की अवधारणा को मान्यता मिली है, जिससे व्यक्ति स्वयं को उन तरीकों से व्यक्त कर सकता है जो प्रमाणिक लगते हैं।
विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं में आध्यात्मिक शिक्षाओं में जन्म की अवधारणा का गहरा महत्व है। आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण से, हम केवल एक भौतिक घटना नहीं है, बल्कि आत्मा का अस्तित्व के एक नए चरण में संक्रमण है। ईश्वर से भौतिक दुनिया की यह यात्रा एक दिव्य प्रक्रिया के रूप में देखा जाती है, जो उद्देश्य और अर्थ से भरी होती है। कई आध्यात्मिक सिद्धांत पुनर्जन्म के विचार को अपनाने हैं, जो विभिन्न जीवनकालों के माध्यम से आत्मा की चक्रीय यात्रा पर जोर देता है। इस विश्वास के अनुसार, प्रत्येक जन्म आत्मा के लिए सीखने बढ़ने और अपनी कर्म संबंधी जिम्मेदारियों को पूरा करने का एक नया अवसर है। पुनर्जन्म से पता चलता है कि हमारा वर्तमान जीवन एक अलग घटना नहीं है, बल्कि पिछले अनुभवों और सबक का सिलसिला है। यह दृष्टिकोण व्यक्तियों को जीवन को आध्यात्मिक विकास के लिए एक अनमोल अवसर के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित करता है। अपने अस्तित्व के गहरे कारणों को समझकर, हम जीवन की चुनौतियों का धैर्य और समझदारी से सामना कर सकते हैं, यह जानते हुए कि हमारी आत्मा के विकास के लिए आवश्यक है। कर्म की अवधारणा आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जन्म को समझने के लिए अभिन्न अंग है। कर्म का तात्पर्य कारण और प्रभाव के नियम से है, जहां पिछले जन्मों में हमारी वर्तमान परिस्थितियों को प्रभावित करते हैं। इन संदर्भों में, जन्म को पिछले कर्मों के संचित कर्म की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। यह समझ व्यक्तियों को यह पहचानने में मदद करता है कि उनके जीवन का उद्देश्य पिछले कर्मों के समाधान के साथ जुड़ा हुआ है। नैतिक और करुणामय जीवन जीने से, वे नकारात्मक कर्म पैटर्न को रूपांतरण कर सकते हैं, और मुक्ति या मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं। आध्यात्मिक शिक्षाएं अक्सर जन्म की प्रक्रिया में दैवीय समय के महत्व पर जोर देती है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक आत्मा ठीक सही समय पर भौतिक क्षेत्र में प्रवेश करती है, जो मानवीय समझ से परे ब्रह्मांडीय शक्तियों द्वारा निर्देशित होती है। यह समय सुनिश्चित करता है कि आत्मा अपनी अनूठी आधत्मिक यात्रा के लिए आवश्यक परिस्थितियों का समाना करे। दैव्य समय को स्वीकार करने से जीवन अनिश्चिता का सामना करते समय शांति और स्वीकृति मिल सकती है। यह ब्रह्मांड की महान योजना में विश्वास पैदा करता है, व्यक्तियों को विश्वास समर्पण के साथ अपने जीवन के पथ को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। जन्म पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी छोटी उम्र से ही आध्यात्मिक जागरूकता का पोषण करने के महत्व को उजगार करते हैं। बच्चों में करुणा विचारशीलता और कृतज्ञता जैसे मूल्यों के स्थापित करके, मातापिता उनके आध्यात्मिक विकास का समर्थन कर सकते हैं और उन्हें अपनी आत्मा के उद्देश्य से जुड़े रहने में मदद कर सकते हैं। सात चक्र बच्चे के जन्म से ही सक्रिय होता जाता है जैसे जैसे उम्र बढ़ता है वैसे ही चक्र का निर्माण होता जाता है मूलाधार से शुरू होता है और सहस्रार चक्र तक हम बढ़ते जाते हैं हर सात साल पर बढ़ता जाता है ऊर्जा और पदार्थ के कारण चक्र निर्मित होते जाते हैं फिर सक्रिय होते जाते हैं जैसे जैसे मन पर चोट लगता है सक्रिय होता जाता है। मैं पहले बात कर चुका हूं जन्म मृत्यु पर और सात चक्र पर भी दोनों अलग अलग लेख है। मैं कहता हूं मृत्यु झूठ है बस कल्पना और अंधविश्वास में जीते हैं इसीलिए हम मान लेते हैं।
नीचे हमने सोशल मीडिया पर लेख लिखे थे कुछ उपदेश दिए थे।
गुरु वही सदगुरु वही जो आपको सांत्वना नहीं बल्कि शांति और संतुष्टि का मार्ग प्रदान करें और आपको भीतर आने में मदद करे वही सच्चा गुरु है गुरु तो चुनना ही होगा गुरु कोई भी हो सकते हैं चाहे हो प्रकृति हो या प्रकृति और स्वयं को साध लेने वाले सदगुरु दो ही रास्ता है या तो स्वयं जानने के मार्ग से सबको जानते जाओ निरीक्षण और ध्यान केंद्रित करो और कोई सच्चा गुरु मिल जाए जो आपको नींद से जागने में मदद करे तो और अच्छा। मैंने प्रकृति से अधिक जाना है, प्रकृति देती है तो लेती भी है जन्म है तो मृत्यु भी है हम ही है जो शुभ अशुभ पाप पुण्य में अटके रहते हैं। कोई शास्त्र के पन्नो को पलट कर रट लिए हैं तोता हो गए हैं बस। यहां जन्म होता है पालन पोषण होता है लेकिन फिर मृत्यु भी होता है यह याद रखना तीन गुण साथ रहता है हमारे तीन तत्व से हम अधिक जुड़े हैं पृथ्वी जल अग्नि इससे अधिक जुड़े हैं हम। हम पंच तत्व से हमेशा जुड़े हुए हैं पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश सब आपके गुरु हैं और इन्हीं तत्व से आपका निर्माण हुआ है आप आत्मिक इन्हीं तत्व के कारण से है। लेकिन एक प्रश्न उठता है मन में कैसे पता चलेगा कि यह गुरु सच्चा है सदगुरु है कैसे, क्योंकि कोई भी कह सकता है कि मैंने भगवान को देखा है, कोई आस्तिक ही होगा जो जल्दी उत्तर दे देगा यह याद रखना। सदगुरु अधिक नास्तिक रहते हैं यह पहचान है लेकिन वह नास्तिकता और आस्तिकता के बीच में रहते हैं लेकिन नास्तिकता के मार्ग से अधिक गुजरते हैं। लेकिन यहां सच्चे गुरु को खोजना मुश्किल से साहब क्योंकि यहां हमें सब भ्रम में डाल देता है कोई भी गुरु बन जाता है तोता सब भरा पड़ा है मार्केट में सब स्टार्टअप खोल के रखा है मैं नाम लेने से डरता नहीं कितने का नाम ले चुका हूं। खासकर भारत में हिन्दू और सनातन धर्म के प्रचारक भागेश्वर बाबा देवकी नंदन अनुरुद्ध आचार्य प्रदीप मिश्रा और भी हैं जो कॉपी पेस्ट करते हैं।
एक भी पुस्तक नहीं लिखे और लिखे भी होंगे तो कॉपी पेस्ट भगवदगीता के ऊपर से कृष्ण ने जैसा कहा है बस उसे दोहरा रहे हैं। मुझे भय नहीं लगता है इन मुर्खो से मेरा कुछ बिगाड़ भी नहीं सकते है कुछ। वैसे मैं इस सबका नाम लेना नहीं चाहता क्योंकि यह सब बस बकवास करते रहते हैं भीतर का कोई अनुभव नहीं साहब सब तोता बने हैं मात्र कॉपी पेस्ट में पूरा जीवन बिता दिए लेकिन अभी तक न इन्हें राम मिला न कृष्ण न हनुमान जी। मिलेगा भी कैसे जो भीतर विराजमान हैं उन्हें हम बाहर खोज रहे हैं धन पद प्रतिष्ठा नाम में खोज रहे हैं सोचते हैं बड़ा नाम पद प्रतिष्ठा धन मिल जाए तो समझना भगवान हमारे साथ हैं। अगर हम पूर्ण सफ़ल हो गए तो समझना हमारे सर पर भोलेबाबा या अन्य भगवान का हाथ है जो गरीब हैं जो ठीक से पढ़ नहीं पाया जो भूखा है गरीब हैं क्या उनके सर पर मोदी जी का हाथ है यह कह भी सकते हो क्योंकि बाहरी खुशी अगर कोई देता है तो यह अच्छी बात है लेकिन भीतर का क्या होगा फिर। नहीं यह सब बस कहने की बात है सच तो यह है कि ईश्वर सबका साथ देते हैं, शिव जी राम के भी थे और रावण के भी यह याद रखना भगवान के सब बच्चे हैं हम भेद भाव कैसे कर सकते हैं। मोदी जैसा थोड़े ईश्वर है कि जात पात धर्म कर्म के हिसाब से न्याय करेगा पूंजीपति सबसे मेल और सच्चे गरीब विरोध करने वाले को जेल। यह राजा कर सकता है भगवान नहीं, फिर भगवान बुद्ध झूठे हो जायेंगे। भगवान बुद्ध ने इतने वर्ष तपस्या की बल्कि भटके वन में तरह तरह के गुरु के शरण में गए मुख्य कारण तो यही था कि कैसे प्रकृति काम करती है कैसे कोई गरीब है तो अमीर, कोई कैसे जवान है तो कोई बूढ़ा कोई कैसे मृत्यु तक पहुंच जाता है और मैं कौन हूं यह सब खोज के लिए तो सिद्धार्थ ने घर त्याग दिया क्योंकि वह ऊब चुके थे बहुत भोग लगाएं बहुत खान पान हुआ। जीवन का हर रस पिए सुंदर से सुंदर स्त्री उनके पास था यही सब कारण है आंख खुलने का। जब आप ऊब जाते हैं फिर आप कारण को खोजने लगते हैं यह स्मरण करने की बात है याद रखना।
जब आप अति से उबोगे तभी आप सभी से परे जाने में सक्षम होंगे बुद्ध के साथ भी यही हुआ। मान के चलो जब आप भोग नहीं किया स्त्री धन पद प्रतिष्ठा का फिर आपका कैसे मन भरेगा कैसे आप अति तक पहुंचोगे इसीलिए ओशो जी ने भोग को महत्व दिया और साधक के लिए जरूरी भी है यह बात को समझो लेकिन तुम ओशो को बस सेक्सगुरु तक सीमित कर लिए जो व्यक्ति हर विषय पर बोल रहा है तो सेक्स पर भी बोलेगा न वह सब कुछ सामने रख रहा है फिर सब कुछ खुल के बोलेंगे न। लेकिन हम वासना ग्रस्त लोग स्वयं के वासना को ओशो पर थोप दिया इसीलिए हम ओशो का नाम कभी कभी लेते भी है। लेकिन मैंने निष्पक्ष ध्यान लॉन्च किया जिसमें हम भोग+ध्यान को जोड़ा है या तो आप गहरा ध्यान से लेट होगा समय लगेगा लेकिन सार्थक क़दम होगा दूसरी ओर भोग में हम थोड़े जल्दी पहुंच सकते हैं अंतर यही है बस, लेकिन इसमें भी ध्यान के साथ ही किया जा सकता है नहीं तो कोई असर नहीं होने वाला इंद्रियां को ध्यान के साथ कर्म करने दो जो भी इन्द्रियां में फंसते हो बस ध्यान के साथ होने दो रोको नहीं बल्कि ध्यान के साथ होने दो सेक्स करते हो तो ध्यान होश के साथ खाना खाते हो तो होश से कुछ सुनते हो बोलते हो सूंघते हो या कुछ स्पर्श करते हो चलते हो तो होश से। दूसरी ओर मैंने निष्पक्ष ध्यान में मैंने बस देखने को कहा है कही एक जगह बैठ जाओ और पहले बाहर पूरा हो लो जितना मन हो उतना बाहर रहो लेकिन एक जगह रुको फिर बैठने पर अधिक बल दो जब बाहर मन न लगे ऊर्जा को भीतर आने दो सब ऊर्जा को समेट लो फिर मन में जो चल रहा है उसे देखते रहो या उसका अध्ययन करो निरीक्षण करो ध्यान केंद्रित करो। बाकी मैं अलग से निष्पक्ष ध्यान में बताऊंगा। भगवान बुद्ध ने बहुत वर्षों तक अध्ययन किया बल्कि हरेक गुरु के पास गए उन्हें जैसा बोला गया वह सब किए पीछे नहीं हटे सब कुछ ग्रहण किया, हम होते तो भाग जाते कौन इतना मेहनत करे भाई हम यही सब सोच के तो ध्यान नहीं करते हैं बस तोता बन जाते हैं।
गुरु वही जो साक्षी तक पहुंचा दे बल्कि पूर्ण शांत कर दे। अभी हम ऊपर बात कर रहे थे कि सफलता हो तो समझ जाना भगवान हमारे सात हैं नहीं तो नहीं है। नहीं साहब यह सब बकवास बातें हैं इसमें कोई दम नहीं बल्कि सब फालतू की बात है। एक बात समझ लो ठीक से जो व्यक्ति चेतन मन पर अधिक बल और ध्यान केंद्रित करेगा वह धनवान होगा यही सूत्र है धनवान का, लाला कामदेव यादव को देखते हो पतंजलि बाबा सूत्र चोरी करके कितना धनवान बन गया कामदेव चेतन मन पर अधिक जोर देता है यह सत्य है यही बाहरी सफलता का राज़ है। और जो गरीब है वह अवचेतन मन के कारण यह भी याद रखना जो जितना अवचेतन मन में रहेगा वह उतना कमज़ोर और गरीब रहेगा भगवान नहीं करता है कुछ अलग से बल्कि एक बार शरीर बन जाता है समय के हिसाब से मन का विस्तार होता जाता है मन और दृश्य के कारण हम फंसते जाते हैं। और सोचते हैं भगवान कर रहे हैं इसीलिए आज कल अधिक नास्तिक बच्चे पैदा होते हैं क्योंकि उनके माता पिता आज कल चेतन मन पर अधिक ज़ोर देते हैं और जैसा आपका मन होगा जिस मन में आप अधिक रहेंगे वैसा बच्चा पैदा होगा, जिस तत्व से आप अधिक जुड़े रहेंगे वही तत्व आपके बच्चे में अधिक होगा, बाकी शरीर मन का विकास के अनुसार चक्र के जागृत के अनुसार हम बदलते रहते हैं कर्म करते रहते हैं। लेकिन बाहर हम अधिक रहते हैं इसलिए पता नहीं चलता है। पुरुष और स्त्री दोनों में 46 गुणसूत्र (chromosomes) होते हैं। इन 46 गुणसूत्रों को 23 जोड़े में व्यवस्थित किया जाता है. इन 23 जोड़ों में से 22 जोड़े सभी में समान होते हैं, जबकि एक जोड़ा लिंग गुणसूत्र होता है, जो स्त्री में XX और पुरुष में XY होता है। पुरुष के पास सबसे बड़ा हथियार चेतन मन है वही उसे पुरुष बनाने में मदद करता है स्त्री अवचेतन मन में अधिक रहती है लेकिन आज कल या अतीत में भी बहुत ऐसे स्त्री हुई हैं जो चेतन मन को मज़बूत करके पुरुष जैसा कर्म की है और कर रही है। दंगल का डायलॉग याद है “मारे छोरी छोर कम है के” यह सच है उनमें पुरुष तत्व गुण का मात्रा बढ़ रहा है बल्कि स्वयं अध्ययन करके बढ़ा रही है लेकिन ऐसा बहुत कम होती है स्त्री। लेकिन आज कल तो बस ठुमका लगा रही है रील्स में और तुम लोग देखते भी हो मैं नहीं देखता ये सब ठीक है ठुमका लगाओ लेकिन भीतर का गीत तो बजने दो पहले बाहर नाच रही हो वह भी अश्लील गाने पर या बाहरी गीत पर करो मेरा क्या हानि होगा कुछ नहीं लगाओ और ठुमका। मैं तो कहूंगा कमर को उतना कष्ट नहीं दो बल्कि मेरे द्वारा निर्मित अन्वेषण किया गया खोज किया गया निष्पक्ष ध्यान को ट्राय करें और जीवन को बेहतर बनाने में स्वयं का मदद करें। आप बहुत सुंदर खोज स्वयं हो भगवान का मैं पुरुष को उतना महत्व देता भी नहीं देता हूं घृणा नहीं है लेकिन स्त्री को मैं अधिक प्रेम करता हूं स्त्री मां भी होती है जन्मदाता हैं माता पिता कष्ट सहती है बेचारी। लेकिन फिर भी हम बस सेक्स पर जोर देते हैं मैंने पहले भी कहा हे कि प्रेम हमारा स्वभाव है और काम कर्तव्य ध्यान मृत्यु लक्ष्य है हमारा।
गुरु तो खोजना ही होगा गुरु बिन ज्ञान कहा यहां राम को भी गुरु मिला कृष्ण को भी बुद्ध को भी लेकिन बाहर से अंदर आने में सब हमें मदद करते हैं साधन बनते हैं अध्ययन हमें स्वयं करना पड़ता है भीतर हमें स्वयं जाना पड़ता है। वशिष्ठ जी बहुत बड़े ज्ञानी थे उस समय बहुत ऋषि मुनि थे धरती पर राम जी के समय भी और कृष्ण जी के समय भी बुद्ध के समय तो थे ही लेकिन बुद्ध के समय तक खोज करना बंद कर दिया गया था लोग उतना खोज नहीं करते हैं अतीत में जो हुए हैं उन्हीं का बस विचार को दोहराया जाता था तोता जैसे आज का फर्जी बाबा सब है। इसीलिए भगवान बुद्ध ने सभी खोखला पंडित ब्राह्मण का खण्डन किया करना भी जरूरी था इसीलिए बुद्ध को नास्तिक दार्शनिकों में नाम दर्ज कर दिया गया। बुद्ध के पास तीन हथियार था नास्तिकता आस्तिकता और तीसरा साक्षी जैसा मरीज़ मिलता था वैसा इलाज किया जाता था। लेकिन पंडित के पास ज्ञान तो था नहीं भगवान बुद्ध का विरोध किया गाली दिया हिंसा किए लेकिन फिर भी स्वयं का निरीक्षण और खोज नहीं किए। जब आप किसी की नींद से जगाते हो तो सामने वाले को क्रोध आ ही जाता है सुबह को देखते होंगे आप अपने बच्चे के साथ यह अक्सर देखने को मिलता है जब आप कोई सार्थक विचार साझा करते हैं तो समाने वाले को क्रोध घृणा आने लगता है। क्या करेंगे सब बाहर जी रहे हैं बस भीतर से कोई मतलब नहीं सब नाम धन यश पद प्रतिष्ठा के लिए जी रहा है भीतर से कोई संबंध नहीं बस तोता बनना है यहां सबको। बनो मेरा कोई लॉस नहीं भाई आपका ही हो रहा होगा अगर देखना है तो देख लो एक बार भीतर को।
अभी हम सोचते नहीं है बस दिन रात वासना को पूरा करने में लग जाते हैं दिन रात बस भौतिक सुख बस यही सब में दिन गुजर जाती है और रात स्वप्न देखने में बीत जाता है समझें अंधभक्त सब आप समझते नहीं बस राजनीति में आना है आओ करो नेतागिरी बनो सगंठन मंत्री या अन्य मंत्री या अंतिम है पदमंत्री बनो धर्म को बना ही दिए हो मोहरा चाल चलते रहो मोहरा को फंसाते रहो झूठ बोलते रहो और जनता को लुटते रहो सब। हम कुछ और हो सकते हैं भीतर आकर पूर्ण मौन हो सकते हैं उठ सकते हैं शरीर मन से परे जा सकते हैं मुक्त हो सकते हैं जन्म मृत्यु से। मैं तो चौबीस घंटे प्रभु के स्वर्ग में रहता हूं पूर्ण आंदित रहता हूं मैं तो मोक्ष पा लिया अब स्वर्ग ही स्वर्ग है मेरे पास मैं चेतना मन को स्वर्ग में ले आया अब आपकी बारी है। निष्काम में हूं साहब राम वही प्रश्न पूछ रहे हैं अपने गुरु वशिष्ठ जी से कैसे होगा निर्णय कौन सा कर्म शुभ है और कौन सा अशुभ वही गुरु समझा रहे हैं कि निष्काम में आ जाओ राम सुनो मेरी बात को और ठीक ठीक समझो तुम यदि जाग कर कर्म करो फिर फल की चिंता नहीं रहता तुम जाग जाते हो तुम्हें बस आनंद पूर्वक कर्म करना है राम तुम स्वयं जान लोगे सब कुछ अगर भीतर देखा तो। काम से परे है निष्काम काम में फल की चिंता है निष्काम में बस होश की चिंता है कहीं मूर्छा में न आ जाऊ निष्काम में अगर आप पूर्ण आ गए फिर आप फल के बारे में नहीं सोचेंगे बल्कि आप स्वयं समर्थ होंगे और सब कुछ जान सकते हैं कर्म क्या है निष्काम क्या है अकर्म क्या है विकर्म क्या है। उसके लिए ध्यान में आना होगा चिंतन करना होगा मनन विचार करना होगा मनुष्य हो तो इतना तो कर सकते हो आप सब। लेकिन हम खोज करना नहीं चाहते हैं बाद तोता बन के रहना चाहते हो रहो करो अंधभक्ति जितना करना है। आप यदि चाहो तो भीतर आ सकते हो जान सकते हो जाग सकते हो बुद्ध हो सकते हो निर्वाण प्राप्त कर सकते हो और क्या चाहिए आम लीची क्या तो जाओ बाज़ार अभी मिल रहा है खाओ खूब अगर अपना पेड़ है तो और अच्छा नहीं तो पैसा खर्च करो। अब काट के खाना है या चूस के यह मोदी से पूछना मैं इतना ही बता सकता हूं।
रोना नहीं रोने से कोई अधिक लाभ नहीं होने वाला है यहां कोई पिघलने वाला नहीं सबको अपना जीवन जीना है यहां। किसको मतलब है कौन क्या करेगा मतलब रख कर, नहीं यहां कोई नहीं किसी का सब को अपना कामना बस पूरा करना है। और वह कैसे भी कर सकता है किसी भी हद तक जा सकता है व्यक्ति यह याद रखना। कोई यहां किसी का नहीं हुआ सब को कुछ न कुछ यहां कामना पूरा करना है फिर आपका क्या होगा आपने सोचा क्या। नहीं आप नहीं सोचते यह सब बात आप तो बस दुखी होते रहो या क्रोधित दो ही रास्ता है आपके पास या तो अवचेतन मन में फंस जाओ दुखी होते रहो इंतज़ार करते रहो रोते रहो या अवचेतन चेतन मन के सहारे क्रोध करते रहो प्लानिंग करते रहो कुछ। रोना भी कैसे छोड़ दोगे अपने हाथ में तो नहीं है कि आंसू नहीं निकलेगा अब, कुछ वश में नहीं है आपके बस रोते रहो बैठ कर। मैं कहता हूं आंसू को स्वीकार करो वही आपको एकांत में लाने में मदद करेगा अभी आप अकेले हो मन शरीर है विचार भावना है, आपको परेशान करेगा आप फंसते जाओगे ऐसे में। जब रोते हो तब रोते रहो पूरा आंसू निकालो बहने दो जितना बहेगा उतना भीतर से शांत होते जाओगे। लेकिन हम रोते रहते हैं और नए विचार भाव भी तयार करते रहते हैं। दुःख परमानेंट नहीं है यह भी याद रखना दुःख अपना नई खुशी खोज लेता है कहने का अर्थ है कि दुख खिड़की खोज लेता है खुशी की प्रकाश भीतर आने लगता है दुःख निकल जाता है फिर कोई खुशी हाथ आने लगता है कोई सुख में फंसने लगते हैं। लेकिन हम फंसने लगते हैं एक स्त्री से हृदय टूटा धोका दे दिया या कई विवाह तय हो गई अब क्या होगा आशिक़ सबका यही हाल है लेकिन अतीत में हम जाए तो पता चलता है कि बहुत प्रेमी युगल हुए हैं यहां इस पृथ्वी पर कोने कोने में। लेकिन आज कल लोग प्रेम को महत्व उतना नहीं देते हैं सब सेक्सबाज़ बन गया है बस भौतिक शरीर और भौतिक सुख यानी सेक्स से मतलब है बस। लेकिन कोई एक होता है हजारों लाखों में जो प्रेम में फंस जाता है उसे उसकी कोई चीज़ पसंद आ जाता है अब उसे वही चाहिए नहीं तो मर मिटेगा या मार देगा किसी को लेकिन बहुत कम केस में मारने वाला आशिक़ मिलेगा बहुत कम मिलता है अधिक तो मरने वाले मिलेंगे या पागल हो जाते हैं, उसका कारण है अवचेतन मन जो बहुत बड़ा है सभी मन से बड़ा है अवचेतन मन उसमें हम अक्सर फंसते हैं मोह का जन्म भी यहीं से होता है साहब।
श्रद्धा और विश्वास का भी यही से कनेक्शन है विश्वास में चेतन मन का महत्व अधिक है लेकिन अवचेतन मन के बिना अधूरा है हम कुछ मानेंगे या देख कर जांच पड़ताल करके या दूसरे के कहने पर उधार का ज्ञान जिसे हम अंधभक्त कहते हैं मोदी जी कुछ बोलते हैं वाह वाही करने लगते हैं सब कार्यकर्ता। वही दूसरी ओर लोग संदेह करते हैं वह कहते हैं कि पहले हम जानेंगे तभी मानेंगे लेकिन मानेंगे, यही विश्वास सिस्टम हमें एक नहीं होने देता उठने नहीं देता आत्मिक नहीं होने देता साहब। जो जान लिया कारण का पता लगा लिया ऐसे होता है यह मन है इस कारण हम मानते हैं या जानते हैं लेकिन जानते रहने से अंत तक जानते रहने से हमें कुछ और पता चल सकता है आत्मा का साक्षी का, लेकिन उसके लिए मन को खाली करना पड़ेगा। मन खाली होगा शरीर ऑटोमैटिक हल्का होगा शरीर हल्का होगा हम स्वयं आत्मिक हो जायेंगे। विचार को खाली करना पड़ेगा निर्विचार होंगे जब हम तभी उठ पाएंगे जब तक विचार या भावना कल्पना में अटके रहेंगे तब तक हम निचले स्तर यानी अचेतन अवचेतन या थोड़ा चेतन तक रहेंगे। निर्विचार ही हमें एक करेगा नो माइंड होना है हमें, तभी हम अतिचेतना Superconscious तक पहुंचेंगे। नहीं तो बस विचार विश्वास श्रद्धा में फंसे रहेंगे, सोचना होगा चार मंज़िल का घर है ऐसे ही अंदर सिस्टम है सबका अपना काम है। कोई ऐसे ही कर रहा है कुछ कोई कुछ मान कर कर रहा है कुछ मान रहा है श्रद्धा विश्वास में है कल्पना भी है, तीसरा जान रहा है उसे पूर्ण विश्वास है विचार है उसके भीतर वह जान रहा है बहुत खोज कर रहा है वो। चौथा बिल्कुल शांत है अब वह विचार को देख लिया है अब वह पूर्ण शांत हो गया है उसे जड़ और अंत का पता चल गया है अब वह बस साक्षी होकर देख रहा है पूर्ण संतुष्टि पर आ पहुंचा है अब वह चाहे तो समाधि में जा सकता है। हमें सब विचार स्वीकार करना है सब कुछ तभी हम परे होने में सक्षम होंगे, तभी हमारा मन खाली होगा विचार को आप छोड़ नहीं सकते जब तक आप पूर्ण नहीं जानोगे तब तक कोई न कोई विचार आता रहेगा बल्कि ध्यान और आध्यात्मिक के संबंध में विचार आएगा। कुछ करोगे आप कुछ एक्टिविटी होगी तो विचार भी आएगा आप कुछ सोचेंगे जानेंगे या तुरंत मान लेंगे विश्वास कर लेंगे यही नहीं करना है। विचार कैसे हटेगा मन कैसे खाली होगा उसका एक ही उपाय है विचार को स्वीकार करो क्योंकि आप ही विचारक हैं आपकी ही विचार है सब मन के हिसाब से निकल रहा है और जब तक शरीर मन है वह आयेगा ही। आप छोड़ भी नहीं सकते विचार होगा भी नहीं मन बकबक करने लगेगा। आपको देखना है कि विचार आ कहां से रहा है कहां है मुख्य द्वार और समाप्त कैसे होता है यह सभी चीजों को बारीकी से अध्ययन निरीक्षण करना होगा, तभी आप निर्विचार होगा और जब एक बार निर्विचार हो गए फिर आप स्वयं आत्मिक रूपांतरण होने लगेंगे और साक्षी भाव में भी आने लगेंगे। जो जान रहा है जो विचारों और भावनाओं में फंसा है बस उसे देखना है। या आप स्वयं को सबसे अलग करते जाओ दो रास्ता है या तो सबको स्वीकार करो या एक बार रमण महर्षी जी की सूत्र को देखो मैं कौन हूं पर जोर दो सब कुछ अलग करके देखो और अंत में देखो कि हाथ क्या लगता है क्या बचता है आत्मा बचा बस या भौतिक शरीर से अटके हुए हैं। यह सबके लिए नहीं है इसके लिए चेतन मन मज़बूत रहना चाहिए कुछ ज्ञान रहना चाहिए कुछ समझ होना चाहिए, तभी वह आत्मा को खोज सकेगा जो भीतर चौबीस घंटे प्रभु विराजमान हैं तुरंत वह देख सकता है।
लेकिन हम ध्यान नहीं देते हैं हम सोचते हैं कि हम बस एक शरीर हैं, मात्र भौतिक शरीर और बस भौतिक सुख प्राप्त करना है नाम पद प्रतिष्ठा धन यश,स्त्री भोग, सब बाहरी है भौतिक है आंतरिक नहीं आंतरिक क्या है, आंतरिक है हम स्वयं हम कर क्यों रहे हैं कब से कर रहे हैं हमारा स्रोत क्या है और हम कौन हैं बस शरीर हैं हम या सुक्ष्म भी है कुछ, हमारा कर्तव्य क्या है हमारा स्वभाव क्या है हमारा लक्ष्य क्या है यह सब देखना होगा। लेकिन हम सब बस बाहर से सफल होना चाहते हैं कुछ बाहरी ज्ञान कुछ धन पैसा बंगला और कार सुंदर स्त्री इसी को हम सफ़लता कहते हैं। वाह भाई आपकी सफ़लता आपको ही मुबारक हो, लेकिन कर कौन रहा है किसके लिए शरीर मन आत्मा किसके लिए यह भी तो जानो। या बस आंख बंद करके निकल गए ऑफिस जाओ करो जो करना है। मुक्ति के लिए फिर ऊपर आवेदन देना कि साहब कर दो मुक्ति दे दो मोक्ष, फिर आना नीचे गिर कर फिर भटकना लेकिन मनुष्य के जीवन में आना ही होगा आपको यह याद रखना। जिसको आप सफ़लता कहते हैं वह सब कचरा है मिट्टी है सब यही रह जाएगा सब पर मौत पानी फेर देगा आप को मौत कंगाल कर देगा चाहे वो भाजपा के मंत्री हो चाहे कांग्रेस या आरजेडी जेडीयू या कोई भी हो सबको मृत्यु अंधेरा कर देगा। फिर हाथ क्या लगेगा मृत्यु बस फिर नए कामना फिर नए जन्म, आप कहते हो जब तक जीवन है तब तक तो भोग लूं मृत्यु के बाद किसने देखा है क्या होता है बाबा सब ऐसे ही गप देते हैं। भोगों जी लेकिन जीवन को तो जान लो मैंने कब कहां कि मृत्यु अंत में आता है या एक दिन आता है हम प्रतिपल मर रहे हैं और प्रतिपल जी रहे हैं जीवन को तो जान लो एक बार, जीवन क्या है क्यों पर ध्यान केंद्रित करो स्रोत का तो पता लगाओ, मत मानो मेरी बात मैं कहता भी नहीं कि मेरी बात मान लो। स्वयं विचार करो स्वयं जानो पहले जानो फिर मानो मैं तो कहता हूं कि जानते ही रहो अंत तक जानने वाले को को भी जानो, तभी आज्ञा चक्र खुलेगा और आप एक हो जाओगे, आत्मिक होने लगोगे, आत्मा से परिचय हो सकता है सोच लो या भोगते रहो दोनों में मैं प्रसन्न हूं। आपका जीवन है जैसा जिओ।
अभी आप प्रेम नहीं करते प्रेम करते तो सामने वाले को दुखी नहीं करते बल्कि उसे स्वतंत्र छोड़ते। लेकिन हम बेचैन हो जाते हैं मरने लगते हैं कैसे हम खुश होंगे जिससे हम बस प्रेम करते थे उसे अब कोई और कैसे प्रेम कर रहा है। बर्दास्त नहीं होता, लेकिन ये अचेतन और चेतन मन का मामला है, अवचेतन में तो इतना विचार नहीं आता अतीत की बात को याद करके हम रोते रहते हैं उदासी अक्सर पीछा करता रहता है, उसको बस देखते रहते हैं याद करते रहते हैं यह प्रेम है, लेकिन उसमें स्वयं को भूखा प्यासा रखना यह मूर्खता है। हम प्रेमिका को सज़ा नहीं देंगे लेकिन स्वयं को तबाह कर लेंगे पियेंगे कुमार सानू जी का सॉन्ग सुनेंगे। आप अपने शरीर को दुःख दो या सामने वाले को बात बराबर है याद रखना ये बात। इसीलिए मैं महात्मा गांधी जी से पूर्ण सहमत नहीं होता होता हूं लेकिन पूर्ण नहीं , मैं हिंसा नहीं करूंगा किसी के साथ लेकिन पेट को दुःख दूंगा। मैं पहले भी बोल चुका हूं कि हम प्रतिपल हिंसा कर रहे हैं हिंसा के बिना हम रह भी नहीं सकते है। दूसरी ओर एक वासना ग्रस्त रहता है आज कल अधिक दिखता है आज कल प्रेम नहीं होता है सब चेतन मन में आ गया है सब पढ़ लिख लिया है उसके लिए अतीत को धन्यवाद देना चाहिए। अब धमकी देने लगते हैं मार देंगे तुम्हें भी और प्रेमी को भी उठाने की धमकी विवाह नहीं होने देने की धमकी, अब बताओ आप कि अगर सामने वाले को आप खुशी नहीं दोगे स्वतंत्रता नहीं दोगे फिर प्रेम कैसा भाई। प्रेम का अर्थ है स्वतंत्रता देना लेकिन आप बंधन में बांधना चाहते हो सिर्फ़ मेरी रहो कोई और न देखें आपको बहुत तेज़ बुद्धिमान हो आप लोग। हम बस अपना अधिक लाभ चाहते हैं वह खुश है किसी के साथ रहने दो जीवन है चार दिन की काहे झगड़ा लड़ाई करना भाई कौन यहां परमानेंट रहेगा मोदी जी को छोड़कर कौन रहेगा आप ही बताओ।😍, नहीं भाई आप लोग ही सही होगे हमारे पास अधिक बुद्धि भी नहीं है न हम चाहते हैं चेतन मन से अधिक अवचेतन मन का महत्व है प्रेम का जो हमारा स्वभाव है। अगर हम जागरूकता से देखेंगे जीवन को फिर हम एक होने लगेंगे अभी हम बिखरे पड़े हैं अलग अलग हुए हैं कैसे एक होगे अपने ही अंग से घृणा क्रोध करने लग जाते हो फिर स्वयं को बुद्धिमान भी कहते हो। कहो मुझे क्या फ़र्क पड़ेगा कुछ नहीं आपका जीवन है जैसे जिओ भाई, मेरा काम है प्रेम देना रास्ता मार्ग बताना चलना तो आपको ही होगा फिर रुकना भी आपको ही होगा, थोड़ा ठहरना भी होगा बहुत भाग लिए अब रुक भी जाओ जन्म जन्म से भाग रहे हो अब भी भागना ही है भागो।
साहब सब आज कल यहां गुंडे बदमाश बनना चाहता है सबको हिंसा करना है, गौतम बुद्ध महावीर चाणक्य आर्यभट और भी कितने महापुरुष बुद्ध पुरुष ने जन्म लिया है लेकिन हम सब गुंडे बदमाश रेप चोरी हत्या लूट में लगे हुए हैं। सोचते हैं कुछ हाथ लग जाए बाहरी खुशी के लिए मरे जा रहे हैं हम सब, सोचते हैं कि कुछ भौतिक सुख भोग लेंगे कुछ हाथ लग जाएगा सब पानी पर खींची गई लकीर है और कुछ नहीं यहां कुछ हाथ नहीं लगने वाला सब क्षणभंगुर है ऐसा ही प्रकृति है साहब। लेकिन हम सोचते हैं कि हम कर रहे हैं आप कर भी नहीं सकते कुछ साक्षी क्या करेगा आत्मा क्या करेगा जी कुछ नहीं बस देह भोग भोगता है शरीर को इच्छा होता है मन जैसा कहता है वैसे हम आतुर हो जाते हैं, सब ऊर्जा पदार्थ का खेला है, जिसमें जो तत्व अधिक होगा वैसे वह क्रिया में उतरेगा वैसे वो देखेगा सामने वाले को मैं पहले भी बोला हुं कि या तो आप कामना करेंगे कुछ या करुणा आपमें जो तत्व अधिक मात्रा में रहेगा वैसे आप करेंगे वैसे वैसे आप भौतिक सुख में रुचि लेंगे।
गौतम बुद्ध ने कितने वर्ष तपस्या की कितने वर्ष तक साधना में रहे तब जाकर उन्हें परमात्मा प्राप्त हुआ ज्ञान प्रकट हुआ, तो हम क्यों नहीं उस रास्ते चलते हैं, या तो बुद्ध पुरुष सब मूर्ख थे जो इतने साल तपस्या किए या आप लोग सही हो जो भौतिक शरीर और भौतिक सुख को सत्य मानते हैं कोई एक सत्य कह रहा है या आप या बुद्ध पुरुष। सोचना आप एक बार कि आप वास्तव में करते क्या हैं दिन भर क्या करते हैं बैग 💻 लैपटॉप या अन्य उपकरण उठाए और दौड़ लगाने निकल पड़ते हैं ऑफिस या अन्य काम पर, रोज़ वही काम फिर से यह भी एक कारण है स्वप्न में रहने का, क्योंकि हम सब रूटीन के हिसाब से चलते हैं मानते चले जाते हैं यह काम स्वप्न में ही संभव होता है स्वप्न अवचेतन मन आपको पूर्ण चेतन नहीं होने देता है फंसा देता है आपको। दूसरी ओर रात को जब आप थके हुए घर आते हैं फिर आप धीरे धीरे अचेतन मन में पहुंचने लगते हैं फिर वही भोजन किए फिर वही अन्य भोग में उतरने लगते हैं, इसी लिए तो जॉब्स या व्यवसाय करते हैं ताकि कुछ देर आराम की नींद हाथ लग जाए, लेकिन आप सोते कहां है सोता तो शरीर है आप तो वही गहरी नींद या स्वप्न में उतरने लगते हैं दो ही रास्ता है रात को अगर मन भरा है तो गहरी नींद होगी और मन कुछ करने पर है कुछ हाथ और लग जाय मिशन पर ध्यान केंद्रित है फिर आप अधिक स्वप्न देखोगे। फिर प्रकृति का भी अपना नियम है ब्रह्म मुहूर्त से पहले तक लगभग 3,4 बजे रात को गहरी नींद होती है लेकिन जो स्वप्न अधिक देखते हैं जिनका ध्यान बाहरी काम पर अधिक रहता है वह स्वप्न देखेंगे ही, फिर उन्हें सुबह सुबह ताज़ी हवा की आवश्कता अधिक होती है उन्हें नींद भी पूरा नहीं होता है। नींद की चार अवस्था मैं पहले ही बताया था। चार अवस्था होती है जिसमें जागृत स्वप्न गहरी नींद और चौथा है तुरीय अवस्था, लेकिन आम आदमी स्वप्न अवस्था और गहरी नींद में अधिक रहते हैं और जिनका चेतन मन बहुत मज़बूत है वह जागृत में रहते हैं लेकिन आम आदमी बहुत कम रहते हैं जागृत अवस्था में साहब। लोग स्वप्न में अधिक रहते हैं रात का सपना को अगर आप अभी तक खींच रहे हैं फिर आप स्वप्न में ही हैं अभी तक या कुछ मान लिए हैं विजन देख लिए हैं अब मिशन पर लग गए हैं यह सब स्वप्न अवस्था के लक्षण है। जागृत अवस्था में आप होश में रहते हैं आस पास की चीजें साफ़ साफ़ दिखाई देता है आप देख रहे हैं सब कुछ लेकिन फिर आप स्वप्न में लग जाते हैं। लेकिन चौथा अवस्था है अंतिम है तुरीया अवस्था, उसमें आप पूर्ण होश में रहते हैं वर्तमान में रहते हैं आकाश के तरह एक रहते हैं सभी अवस्था को देखते रहते हैं नींद शरीर ले रहा है आप साक्षी के तरह बस देखते रहते हैं कहने का अर्थ है कि आप शरीर से अलग हो जाते हैं। गहरी नींद हो या स्वप्न या जागृत अवस्था सबको तुरीय देखता रहता है। लेकिन हमें समय कहां है यह सब देखने को हमें बस कैसे भी पद पर जाना है बड़ा नाम हो जाए पद प्रतिष्ठा धन मिल जाए लेकिन किसको होना है यह अभी तक पता नहीं अपना कुछ भौतिक नाम रख लिए हैं अब उसको बड़ा करने में पूरा दम लगा देते हैं किसी भी हद तक जा सकते हैं, बहुत तो अपना नाम ऐसे ऐसे रखते हैं जिसे देख मन प्रसन्न हो जाता है मेरा।
सब सपने में लगा हुआ है सबको कुछ सपना पूरा करना है चाहे कैसे भी हो। कोई गुंडागर्दी चोरी कार्य में उलझ जाता है कोई बड़े बड़े कर्म में सब कॉपी पेस्ट में जीने लगते हैं कैसे भी धनवान हो जाऊं बड़ा पद प्रतिष्ठा नाम बन जाए। कोई कोई तो मन्नत मांगने लग जाते हैं पूजा अर्चना व्रत यज्ञ तप करने लग जाते हैं सब पानी पर खींची गई लकीर है और कुछ नहीं। अंत में मौत हाथ लगता है और कुछ नहीं मौत अंतिम है बल्कि हम रोज मर रहे हैं जीवन चल रही है रोज़ प्रतिदिन प्रकृति अपना काम कर रहा है वैसे ही हम भी जी रहे हैं हो रहे हैं हो नहीं गए हैं हर पल हो रहे हैं सेकेंड के तरह। लेकिन हम ज्ञान को उपलब्ध नहीं होना चाहते छोटे छोटे कर्म में उलझ के सीमित रह जाते हैं और हम स्वयं को काबिल समझते हैं सोचते हैं कि हम उत्तम कार्य कर रहे हैं सब अच्छा हो रहा है लेकिन एक बात याद रखना किसी एक को नुकसान पहुंचा कर ही कोई एक खुश होगा, या तो आप अपने शरीर को खुश करेंगे या करुणा करेंगे दूसरे पर या तो आप मछली मुर्गी मांस खा कर थोड़े देर के लिए खुश होंगे लेकिन बारीकी से देखा जाए तो किसी का लॉस हुआ किसी की जान गई, अब उसे फिर जन्म लेना होगा कष्ट दिए वह अलग या आप स्त्री संग भोग करके खुश हो सकते हैं क्योंकि आपके पास शरीर है ऊर्जा है इंद्रियां है वह भोग के लिए आतुर होगा लेकिन आप फिर फूल को तोड़ दोगे यही डॉक्टर और ज्ञानी में अंतर है डॉक्टर जांच पड़ताल करेगा पदार्थ ऊर्जा का पता लगाएगा, इससे यह होगा कि उसका चेतन मन और इंद्रियां खुश होगा क्यूंकि वह कुछ जान लेगा कारण खोज लेगा कि इस कारण से फूल बना है इस कारण से पेड़ पौधे हुए हैं इस फूल में यह पदार्थ है। फूल में अनेक प्रकार के पदार्थ होते हैं जो उनकी संरचना, रंग, और कार्य के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसमें मुख्य रूप से जल, खनिज, और जैविक पदार्थ शामिल होते हैं यह सब जान लेंगे सब कुछ जान लेंगे लेकिन एक फूल और पौधा को खो देंगे। उनकी आंखें उनकी कुछ इंद्रियां खुश होगा लेकिन किसी एक को नुकसान पहुंचा कर। इसीलिए मैंने बोला है अभी कि हम खुश होंगे तो किसी एक को खो कर। चाहे वह कोई भी भोजन हो या अन्य चीज़ चाहे वह सब्ज़ी हो या फल या जीव जंतु, सब में जान होता है। लेकिन हम समझते नहीं है हम जल्दीबाज़ी के कारण गलती करते रहते हैं फिर पछताते रहते हैं सब शरीर मन का खेल है भाई और कुछ नहीं।
हम 2025 में जी रहे हैं अभी लेकिन हम सब अधिकतर मूर्छा में जी रहे हैं साल आता है चला जाता है हमें पता भी नहीं चलता कि हम क्या किए साल भर लगता है दो महीनों में बीत गया पूरा साल। या तो लगता है कि कितने वर्ष से यह वर्ष चल रहा है सब मन के ऊपर निर्भर है कि हम क्या करते हैं कहां अटकते हैं कहां फंसते हैं यह सब मन पर निर्भर है। लेकिन हम कुछ और हो सकते हैं खिल सकते हैं चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं हंस सकते हैं, लेकिन हमारा ध्यान रहता है बस वासना पर स्त्री या अन्य भोग पर। ऐसे कैसे चलेगा साहब कुछ तो शर्म करो अब कितने जन्म जन्म से भटक रहे हो अब कितना भटकोगे क्या चाहते हो यह जीवन भी मूर्छा में ही समाप्त हो जाए ताकि फिर जन्म लूं और फिर भोग लगाऊं करो जो करना है आपका जीवन है आप कुछ भी करो, मूर्छा में जिओ या होश में चुनना आपको ही होगा। या तो होश के साथ जिओ या बेहोशी में या ध्यान के साथ ध्यानी होकर भी रह सकते हैं आप सब, उसके लिए पहले होश जागरूकता से मित्रता करना होगा फिर होश को होश के साथ देखना होगा आपको। फिर एटोमैटिक आप रूपांतरण हो जाओगे लेकिन याद रखें कि ध्यान आपको प्रतिदिन जब समय मिलता है तभी आप शांत जगह देखकर कुछ देर के लिए अकेले हो जाओ लेकिन आज कल के बच्चे अकेले होना नहीं चाहते अकेले का अर्थ है शरीर मन के साथ, और एकांत का अर्थ है आत्मा के साथ साक्षी के साथ बस एक होना। लेकिन हम आज कल अकेले नहीं रहना चाहते हैं भय है अकेले होने में भय है कि कुछ छीन जायेगा और हम फिर कहीं के नहीं रहेंगे डिप्रेशन में आ जाएंगे। लेकिन यदि आप स्वयं की खोज करते हैं फिर आप को अकेले होने में रस दिखाना होगा अकेले होने के लिए राज़ी होना होगा तभी आप उठ सकेंगे सभी भौतिक चीजों से परे जा सकेंगे हम सभी। लेकिन उसके लिए आपको जागना होगा देखना होगा। पृथ्वी पर बहुत बड़े बड़े दर्शनिक और ख़ोजकर्ता हुए हैं वैज्ञानिक हुए हैं भगवान और बुद्ध पुरुष हुए हैं सबकी जीवनी पढ़ो स्वतंत्र होकर पढ़ो सबको पढ़ो आपको आसानी होगा उठने में जागने में।
इतने ध्यान से पढ़ने और सुनने के लिए आभार
धन्यवाद,
रविकेश झा, (पूर्णगुरु),
🙏❤️🌹,