कौन कहता है, ख़्वाबों की ताबीर नहीं होती,
कौन कहता है, ख़्वाबों की ताबीर नहीं होती,
इरादे पक्के हों और, बुलंद तामीर नहीं होती।
मुक़द्दर दीवाना है, सिर्फ़ मेहनतकश बंदों का,
पेशानी और हथेली पे लिखी तक़दीर नहीं होती।
खून पसीने से ईज़ाद होती हैं, रोज़ नई लकीरें,
जहाँ किस्मत का रोना है, वहाँ तदबीर नहीं होती।
जवां मोहब्बतों रंगतों रिश्तों रुख़सारों गेसूओं में,
गुलाबों चिनारों पहाड़ों झरनों सी नज़ीर नहीं होती।
शक्ल-ओ-सूरत से आदमी नज़र आते हैं वो भी मगर,
बुतदिलों के जिगर में, निशानी-ए-ज़मीर नहीं होती।
मोहब्बत, पाक दिल सीनों में पनपा करती है यारो,
आशिक़ी, जमाल-ओ-जिस्म की जाग़ीर नहीं होती।