#मर्डर_मिस्ट्री
#मर्डर_मिस्ट्री
मेल नहीं खाती कथित प्रेमी की हिस्ट्री।
*राज कुशवाह मास्टर या मोहरा?
#प्रणय_प्रभात
(न्यूज़&व्यूज)
इंदौर के युवा ट्रांसपोर्टर राजा रघुवंशी की हत्या के मामले में राज कुशवाह नामक एक किरदार सोनम के बाद दूसरा बड़ा आरोपी बताया जा रहा है। इस वारदात के मास्टर माइंड के तौर पर राज पुलिस की हिरासत में है। पुलिस उससे घटना के एक एक पहलू से जुड़े सवाल पूछ चुकी है। आगे की बारी मेघालय पुलिस की है। मीडिया का शोर देश भर में गूंज रहा है। मीडिया चीख चीख कर राज कुशवाह को सोनम का प्रेमी बता रहा है। इस थ्योरी पर राजा के परिवार के साथ साथ आम जन भी भरोसा कर रहा है।
बावजूद इसके, मीडिया के सामने आई राज की बहन के आंसुओं और बयान ने इस थ्योरी को मोड़ देने का काम किया है। बड़ी बात यह है कि राज के बारे में उसकी बहन से पहले पड़ोस के लोग भी उसे मुसीबत का मारा एक सीधा सरल युवा और परिवार का एकमात्र सहारा बता चुके हैं। यही वो स्थिति है जो राज के पक्ष में गहन विचार के लिए प्रेरित करती है और आरोपों को कमजोर बनाती है।
राज के बारे में जो जानकारी अब तक सामने आई है, वह उसे एक आरोपी के रूप में भले ही मान्य कर ले, सोनम के आशिक के तौर पर आसानी से स्वीकार नहीं कर सकती। ऐसे में साफ साफ नज़र आता है कि राज वो वजह नहीं हो सकता, जिसके लिए सोनम जैसी लड़की राजा को मौत के घाट उतारने का निर्णय ले।
सोनम के पिता का कर्मचारी होने के नाते वारदात में राज की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, मगर उसे आसानी से इस केस का तीसरा एंगल नहीं माना जा सकता। जिसे बल देने वाले तर्क व तथ्य सबके सामने हैं। यह और बात है कि सेट के पीछे बैठ कर हर घंटे एक मनगढ़ंत कथानक रचने में माहिर उन पर गौर ही न करे।
धनाढ्य परिवार के एक सुंदर, स्वस्थ व सजीले युवक राजा और राज के बीच ऐसी कोई समानता नहीं, जो उसे सोनम की पसंद का दर्जा दिला सके। जानकारी के मुताबिक महीने भर में बमुश्किल 15 से 18 हज़ार रुपए कमाने वाले राज के साथ घर बसाने की कल्पना तक रईस खानदान की चहेती सोनम नहीं कर सकती थी। राज की बहन के इस बयान पर यक़ीन न करने की भी कोई वजह नहीं कि राज और सोनम के बीच का रिश्ता नौकर और मालकिन से अधिक कुछ नहीं था।
यही नहीं, सोनम से उम्र में छोटा राज उसे “दीदी” कहता था। इसके अलावा राज के घर सोनम का एक बार भी न आने का बहन और पड़ोसियों का दावा भी इस धारणा की हवा निकालता है कि सोनम उसके बिना रह नहीं सकती थी। यदि यह सच होता तो बीते ढाई साल में एकाध बार सोनम किसी न किसी बहाने उसके घर व उस परिवार तक ज़रूर जाती, जहां उसने बहू बन कर जाना ठान लिया था। एक पढ़ी लिखी लड़की से इस मूर्खता की भी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो थोड़े से गहनों और मामूली सी रकम के बूते नई गृहस्थी बसाने के चक्कर में विलासिता और भोगपूर्ण दुनिया को आसानी से लात मार देगी। यदि यह संभव है तो फिर इस आशंका को भी नहीं नकारा जा सकता कि सोनम के लिए “राजा” का विकल्प “राज”नहीं कोई “और” था, जो अब भी पर्दे के पीछे है और किसी का ध्यान उसकी ओर जा ही नहीं रहा है।
बात अगर दूसरे एंगल से की जाए तो यह असंभव सा लगने वाला अनुमान संभव भी हो सकता है। जिसके पीछे का आधार दिल व दिमाग के बीच की विरोधाभासी सोच को माना जा सकता है। इस तरह के अविश्वसनीय सच को बल देती है “मेरठ” की दास्तान। जिसमें बेरहम मुस्कान ने एक नशेड़ी व बेमेल आशिक की आशनाई में अंधी हो कर अपने पति को टुकड़ों में बांट कर सीमेंट के घोल से भरे नीले ड्रम में हमेशा हमेशा के लिए पैक कर दिया। यदि राजा की मर्डर मिस्ट्री की सूत्रधार “सोनम” की ज़हनियत में भी मुस्कान थी, तो फिर उन सब अटकलों पर भरोसा करने के सिवा कोई चारा नहीं, जो इस केस को रिलेशन के ट्राई एंगल से जुड़ा होने के नाम पर हवाओ में तैर रही हैं। इसके बाद उस सोच पर ख़ुद विराम लग जाएगा, जो राज नामक एक निम्न वर्गीय युवक को मर्डर मिस्ट्री का मैनेजर तो मान सकती है, सोनम का प्रेमी नहीं। यदि ऐसा है तो कोई शक नहीं कि बाप का नौकर बेटी के लिए एक मोहरा बनने पर मजबूर हो गया। वो भी अपनी मेहनत मजदूरी करने वाली मां और छोटी बहन की जिम्मेदारी को भूल कर। जी हां, वही मां और बहन, जो फूट फूट कर रोते हुए न केवल राज बल्कि उसके दोस्त आकाश और विशाल तक को गुनाहगार मानने के लिए दिल से राज़ी नहीं हैं। इसे संबंधों का लगाव ही कहा जा सकता है। जिसे #अपराध की दलदल में कूदने वाले शायद सलाखों के पीछे जाने के बाद ही ढंग से समझ सकेंगें। वो भी #लम्हों की #खता के #बरसों की #सज़ा में बदलने के बाद।।
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