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9 Jun 2025 · 13 min read

मनुष्य की खोज। ~ रविकेश झा।

हम सभी प्रतिदिन जीवन जीते हैं लेकिन हमें पता नहीं चलता कि हम क्या कर रहे हैं और किस ओर चल रहे हैं। मार्ग तो हम स्वयं चुनते हैं लेकिन हमें लगता है कि हम गलत रास्ते पर जा रहे हैं फिर बाद में पछतावा होती है, कि हमने यह क्या कर दिया यह नहीं करना चाहिए लेकिन बाद में पछता के क्या होगा जी। लेकिन हम सार्थक जीवन भी जी सकते हैं और दूसरों के साथ करुणा प्रेम दिखा सकते हैं। लेकिन अभी हम करुणा प्रेम अहिंसा के मार्ग पर नहीं चल पाते हैं क्योंकि हमारे जीवन में बहुत तनाव और दुःख शामिल है जो हमें न परे जाने देता है न प्रेम करुणा करने देता है। उसका मुख्य कारण है शरीर और मन, जिसके मदद से हम रोज़ जीवन जीते हैं लेकिन मन बहुत परेशान करता रहता है कि कैसे भौतिक वस्तु या अन्य भौतिक सुख कैसे प्राप्त हो इसके लिए पूरे दिन रात परेशान रहते हैं फिर भी हम अपने आप को नहीं देखते हैं साहब। अगर हम स्वयं को देखने लग जाए और ध्यान केंद्रित करके देखने लग जाए फिर हम पहले जैसे नहीं होंगे। हम कुछ और होंगे हम परमात्मा होंगे परमानंद होंगे स्वतंत्र होंगे खिलते रहेंगे और मधुर भी रहेंगे जीवन में। और यदि हम ध्यान के माध्यम से जीवन जीते हैं फिर हम स्वयं रूपांतरण हो जायेंगे और लोगों से प्रेम करुणा भी करेंगे अभी बस अपने लिए जी रहे हैं हम सब अपना पूरा नहीं होता कर्म न फल हाथ लगता है समय पर मन विचलित रहता है ऐसे में फिर उस व्यक्ति से हम प्रेम करुणा का उम्मीद कैसे कर सकते हैं यह भी सोचना एक बार आप। हम सब यदि मनुष्य होने पर ज़ोर देते हैं फिर हम संतुष्ट जीवन जीने लगेंगे लेकिन हम मनुष्य अभी कहां है अभी बस भेड़ के तरह जीवन जी रहे हैं और कभी कभी शेर बनके हिंसा भी करने लगते हैं बस कॉपी पेस्ट में जीना है हमें, जैसा समाने वाला कर रहा है वैसे ही हमें करना है और जीना है। मनुष्य सीढ़ी के तरह है अगर जाग गया तो परे जा कर परमात्मा हो जाएगा यहां पूर्ण हो जायेगा, लेकिन यदि मूर्छा में रहा तो नर्क का द्वार स्वयं खोलेगा वह। मनुष्य सीढ़ी के तरह है चुनाव हमें करना होगा, राम के ओर बढ़ना है या काम के ओर, काम से राम के ओर बढ़ना होगा, संभावना सभी में है बस होश में आना होगा। यह बात मैंने पहले भी कहा है, या तो कर्म करते रहो सांस लेकर बाहरी कर्म में उलझे रहो जैसा शरीर मन इशारा करता है वैसे वैसे करते जाओ गुलामी के जीवन जिओ। दूसरी ओर यदि आप जागरूकता को चुनते हैं ध्यान के उपकरण को चयन करते हैं फिर आप काम से राम तक पहुंच जायेंगे राम यानी परम परमात्मा जो पूर्ण स्थिर हैं जो शून्य है जो साक्षी है जो समाधि में घटित होती है। सोचो आप एक बार कि ऐसे ही जीवन जीना है या मनुष्य होना है मनुष्य का अर्थ है शरीर मन के साथ संतुलन जिसका मन स्वयं के हिसाब से केंद्रित हो जो मन का गुलाम भी न हो और न त्यागी हो वही मनुष्य है। लेकिन यदि हम शरीर मन और आत्मा तीनों में संतुलन बना लिया फिर हम पूर्ण परमात्मा हो सकते हैं।

लेकिन अभी हम मनुष्य भी नहीं है अभी हम बस भेड़ बकरी के तरह जीवन जी रहे हैं जैसा मन इशारा करता है वैसे हम शरीर के स्वप्न के हिसाब से भोग विलास करते रहते हैं और सोचते भी है यह अपने आपको पता नहीं चलने देते हैं कि हम कुछ गलती कर रहे हैं लेकिन हम तो खुश हो जाते हैं। बहुत खुश रहते हैं कि आज हमने यह काम किया यह वासना को पूरा किया, वासना का अर्थ है कोई भी इन्द्रियां में जल्दीबाज़ी कैसे भी भोग हो कैसे भी और जल्दी में वह काम पूरा हो वही वासना है, वासना कोई भी इन्द्रियां में हो सकता है। यह बात मैंने बहुत बार बोला है क्योंकि नए मित्र और नए फॉलोवर्स को पता चल जाए इसीलिए बोलता हूं लिखता हूं। वैसे मैंने वासना और प्रेम पर बोल चुका हूं। हम प्रतिदिन सुबह से रात तक बस वासना में रहते हैं कोई भी काम हो काम काम है आप कुछ भी करो लेकिन वासना न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। इसीलिए मैं कहता हूं आप पहले मनुष्य होने पर जोर दो ध्यान केंद्रित करो। मनुष्य चाहे तो काम में उलझे रहकर जीवन पूरा ऐसे ही बीता दे या काम को समझ कर राम की ओर बढ़ने लग जाए परमात्मा हो जाए पूर्ण ज्ञानी हो जाए, उसके लिए अज्ञानता को स्वीकार करना होगा। हम स्वीकार नहीं करते जब तक हम घृणा क्रोध करेंगे अपने कर्म से तब तक हम परमात्मा से दूर होते जायेंगे यह याद रखना। परमात्मा यानी पूर्ण मृत्यु शरीर मन का मृत्यु के बाद ही प्राप्त होता है झलक दिखाई देने लगता है पूर्ण होश में हम होने लगते हैं शरीर से अलग खड़े रहते हैं आप अलग शरीर अलग। लेकिन हमारे धर्म ग्रंथ हमें न मनुष्य होने देता है न ही परमात्मा। उसका मुख्य कारण है कामना किसी एक धर्म को पकड़ने में लगे रहो हमारे साधु संत फ़कीर पोप सब कहते हैं कि धर्म को मानो लेकिन मानेगा कौन और क्यों यह कोई नहीं कहता है। जितना हिंसा धर्म के कारण हुआ है इतने सर काटे गए हैं इतना खून बहाया गया है पूरे पृथ्वी को लाल कर दिया अब तो आकाश से गोले दागे जाते हैं अब कुछ हथियार नवीन हो गए हैं परमाणु हथियार और अन्य मौजूद है। कृष्ण के समय भी हुआ और भारत और अन्य देश में भी हुआ। आपको पता है कृष्ण जी की भी हत्या हुई हत्या ही बोला जायेगा वैसे भी कृष्ण को श्राप भी लगा था, गांधारी की और भी स्त्री ने उन्हें मन से बहुत श्राप दिया। कुरुक्षेत्र में इतना खून बहा सब कृष्ण को श्राप देने लग गए, या तो आप युद्ध करोगे शरीर से लड़ोगे या मन में कुछ बोलोगे गाली दोगे या श्राप। पूरे जीवन निष्काम में जीने वाले को भी अंत समय में हत्या ही हुए। कृष्ण वन में एक होकर ध्यान मुद्रा में विश्राम कर रहे थे, लेकिन एक शिकारी ने उनके पैर में तिर मार दिया, वही कारण रहा होगा कृष्ण जी की मृत्यु का और कोई कारण मुझे नहीं लगता है। पूरे द्वारका में हिंसा बढ़ गया था, जैसे सिख हिंसा हुआ था भारत में वैसे ही सब सर कलम करने लग गए थे पूरा नदी लाल हो गया था बहुत अधिक हिंसा हुए कृष्ण को लेकर।

सब दो भाग में बट गए कृष्ण राजनीतिक चाल भी खेलते थे कई राजाओं को पराजित किया और बहुत को जीवनदान भी वह अपने हिसाब से जीवन जीते थे। बहुत हिंसा हुए बहुत हत्या हुई। सांप को अपने हाथ पर नहीं रखना चाहिए वह काट लेगा डस लेगा, लेकिन कृष्ण समझते हैं कि कैसे हैंडल करना है वह डिप्लोमेट थे वह निष्काम में थे वह जानते थे कि सांप को कैसे बचाया जाता है कैसे करुणा किया जाता है और जब डसना शुरू करे या सोचे भी तो उसकी हत्या कर दो यह कृष्ण का राजनीतिक विचार था। वह मन के बात को सुनते थे समझते थे, वह साक्षी को कम महत्व दिए वह कर्म को अधिक महत्व दिए उसका कारण है कि आप का अब जन्म हो गया है और आप कितने देर साक्षी रहेंगे या तो आप शरीर को छोड़ दो समाधि ले लो या कुछ देर के लिए कुछ दिन के लिए समाधि ले लो। भोजन तो करना ही होगा या कुछ तरल पदार्थों का सेवन करना ही होगा। इसीलिए कृष्ण ने कहा है कि कर्म करो अब जन्म ले ही लिए हो आ ही गए हो मनुष्य हो गए हो फिर कर्म करो और तपस्या भी सब जाग कर करो, कर्म करो लेकिन जाग कर। ठीक है कृष्ण सही कह रहे हैं लेकिन साक्षी का भी अपना अलग ही महत्व है। कृष्ण बहुत अद्भुत हैं महान हैं, कृष्ण के सभी नगरी सागर में समा गया। लेकिन हम सब आज कल बस भक्तियोग पर जिंदा है, शरीर की पूजा करते हैं मेरी शरण में आ जाओ यानी मैंने जाना है तुम जान सकते हो अर्जुन मेरे पास आओ मैं तुम्हें रास्ता मार्ग बताता हूं दिखता हूं। लेकिन हम सब आज कल कीर्तन भजन तोता के तरह दोहराते रहते हैं और दिन खींचते रहते हैं कैसे भी।मनुष्य होने में सबसे बड़ा रुकावट धर्म है, अब इस धर्म या घर में जन्म लिए हो अब वस्त्र अलग भौतिक चीजें अलग गले में तख्ती आईडी कार्ड लटका दिया जाता है या कुछ शरीर में बदलाव करने लग जाते हैं। सोचते हैं कि हम हिंदू हैं मुस्लिम हैं या ईसाई बौद्ध सिख धर्म के लोग हैं हम। यह सब बात जन्म से सीखा दिया जाता है और यह भी दोहराने के लिए बोला जाता है कि परमात्मा भीतर है हृदय के पास है। सब कॉपी पेस्ट में जीने लगता है। बचपन से ही सीखा दिया जाता है कि जो मैंने बोला है वही बोलना ताकि धर्म बचा रहे गिनती में बढ़ोतरी हो। दूसरी ओर अगर बुद्ध के तरह कोई व्यक्ति खोजकर्ता निकले फिर वह सभी बाधाओं को तोड़ देगा और कुछ जान कर ही रहेगा नास्तिक हो जायेगा क्योंकि उसे कोई दूसरा भगवान नहीं मिलेगा कोई और नहीं जो है जो वही स्वयं है। उसके ऊपर निर्भर है कि वह ईश्वर को मानता है या नहीं। बुद्ध भी यही बात जीवन भर कहते रह गए कभी कहते हैं परमात्मा हैं कभी नहीं जैसा व्यक्ति वैसा उत्तर। कोई कह रहा है नास्तिक पहुंच गया और बोलने लग गया कि परमात्मा नहीं है मैंने देख लिया तर्क से सब कुछ गिर गया मुझे नहीं लगता है कि परमात्मा हैं। अब बुद्ध या तो उत्तर देंगे या मौन रहेंगे लेकिन उत्तर देना भी आवश्यक है अगर उत्तर नहीं भी देते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उस नास्तिक को मौन भी करना है ताकि वह मौन का स्वाद चख सके। वह बोलते हैं कि परमात्मा हैं वही तो कर रहे हैं सब कुछ हम कौन होते हैं सब कुछ भगवान वह ईश्वर करता है। वही तुम्हें तर्क करवा रहा है वही तुम में विचार बनके आते हैं वही कल्पना करते हैं वही देख रहे हैं वही तुम्हें प्रेमी बना देता है तो वही हिंसक बना देता है। यही बात रामकृष्ण परमहंस जी के जीवन में उल्लेख मिलता है कि एक तार्किक व्यक्ति जो तर्क से सबको पराजित कर चुका था वह सोचा रामकृष्ण गांव का मूर्ख पंडित होगा हारा देंगे लेकिन रामकृष्ण ने मुंह बंद कर दिया। वही बुद्ध के तरह बोलने लगे बल्कि प्रशंसा करने लग गए बोले मुझे भी विश्वास नहीं था कि परमात्मा हैं यहां लेकिन आज आपको देखा इतना तर्क तो जरूर वही इतना तर्क करवा सकता है वही हैं जो आपको भारी भारी शब्द बुलवा रहा है लेकिन एक बार उस द्रष्टा का खोज कर लो जी भीतर देख रहा है। चौबीस घंटे देखता रहता है कौन तर्क कर रहा है उसका तो पता करो।

हिंदू मुस्लमान मत बनाओ आदमी होने दो मनुष्य होना काफ़ी है लेकिन अहंकार धर्म के चलते हम नीचे गिरते जाते हैं स्तर नीचे ही जा रहा है। कोई हथियार उठा रहा है कोई तलवार क्यों, इतना भय क्यों इतना आतंक क्यों क्यों होता है क्यों हम एक दुसरे को मारने पर उतारू हो जाते हैं कब हम एक होंगे कब हम परे उठेंगे। हिंदू मुस्लमान मत बनाओ मात्र आदमी होने दो पूर्ण होने दो पूर्णता और शून्यता तक सबको जाने दो सबको आनंदित होने दो आनंद पर सबका अधिकार है खुशी में अंतर हो सकता है लेकिन आनंद सबके हिस्सा में शामिल है। हमें परे जाना होगा मृत्यु समय न इस्लाम धर्म काम देगा न हिंदू ऊपर सबको जाना है कोई नहीं बचेगा फिर उतना गंभीर जीवन क्यों, हथियार क्यों प्रेम करुणा ही उत्तम जब है जब हम प्रेम से रह सकते हैं फिर जीवन में तनाव क्यों। खुशी से परे आनंद है जो कभी नहीं कम होता हमेशा एक रहता है उसका नशा आनंदमय है जो कभी खत्म नहीं होने वाला जिसका कोई अंत नहीं। आनंद के तरफ़ बढ़ना होगा खुशी कुछ पल के लिए है खुशी के लिए हमें एक दूसरे पर निर्भर होना होगा चाहे भौतिक वस्तु हो चाहे भौतिक अन्य सुख। इसीलिए हमें ध्यान के ओर बढ़ना चाहिए ताकि जीवन में स्वयं का पूर्ण रूपांतरण हो जाए और हम आनंदित जीवन जिए फिर हम एक दूसरे से भी प्रेम कर सकते हैं सब जगह बस परमात्मा ही दिखने लगेगा अगर हम ध्यान को चुनते हैं तब हम पहले जैसे नहीं रहेंगे ये सत्य बात है। आप अक्सर जीवन में स्वयं के प्रति तनाव दुःख हिंसा देखते हैं लेकिन आपका वास्तविक स्वरूप कुछ और है साहब आप जल्दी यानी वासना के कारण क्रिया और प्रतिक्रिया कर बैठते हैं और फिर पछतावा भी होता है लेकिन सब मन के भाग है आप फंसते चले जाते हैं ऐसे में आप किसी एक चक्र या मन में फंसने लगते हैं कामना और करुणा साथ साथ चलता रहता है कभी खुशी कभी गम कभी हिंसा कभी अहिंसा कभी क्रोध कभी करुणा या घृणा प्रेम बस यही सब तो आप करते हैं जीवन में लेकिन फिर भी स्वयं के मूल स्वरूप और उनके कारणों को नहीं समझ पाते नहीं जान पाते है। ध्यान यही सब को देखता है पार्टिकुलरी देखता है बारीकी से शरीर मन के सभी भागों को ध्यान से देखता है विचार भावना सभी को देखता है देखते चले जाता है सीढ़ी बाय सीढ़ी चढ़ता रहता है फिर उसके लिए आकाश का द्वार खुल जाता है वह आत्मा से परिचित हो जाता है वह ध्यान करने वाले को भी देख लेता है वह होश से कनेक्ट हो जाता है वह सभी चीजों से अवगत हो जाता है फिर आकाश के तरह एक हो जाता है सबके लिए सबमें खो जाता है। वह रहता भी है और पूर्ण देखने से दृश्य भी चला जाता है फिर बचता है बस दृष्टा देखने वाला परमात्मा को भी देखने वाला बस देखने वाला साक्षी बच जाता है बस स्थिर एक।मूल से अंत तक का सफ़र ध्यान से करना है सीढ़ी का उपयोग करना है देखते चले जाना है चाहे वह विचार हो भावना सबके प्रति होश रखना अनिवार्य है। तभी हम पूर्णता प्राप्त करेंगे पूर्ण होंगे आनंदित होंगे साहब। हमें न बदलने पर ध्यान देना है न कोई त्याग पर बस शुरू में ध्यान पर ध्यान देना है बस। मनुष्य होना काफ़ी है यहां क्यों इतना शोर करना है साहब, जब हाथ कुछ नहीं लगने वाला। मनुष्य होने पर ध्यान दो मनुष्य से ही आप परमात्मा तक पहुंच सकते हैं मनुष्य सीढ़ी है आपको एक एक करके चढ़ना है फिर आप पूर्ण रहेंगे।

आध्यात्मिक अन्वेषण एक व्यक्तिगत यात्रा है जिसमें किसी व्यक्ति की मान्यताओं, मूल्यों और उद्देश्य की गहराई में जाना होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को भौतिक दुनिया से परे देखने और स्वयं और ब्रह्मांड के साथ एक गहरा संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह अन्वेषण किसी विशिष्ट धर्म या विश्वास प्रणाली तक सीमित नहीं है, इसके बजाय, यह एक अनूठी खोज है जो हर व्यक्ति में अलग अलग होती है। अंतिम लक्ष्य दुनिया में अपने स्थान की बेहतर समझ हासिल करना और आंतरिक शांति विकसित करना है। मनुष्य अन्वेषण का एक प्राथमिक उद्देश्य जीवन में अर्थ और उद्देश्य खोजना है। विकर्षण और चुनौतियों से भरी दुनिया में, जो वास्तव में मायने रखता है उसे नज़र अंदाज़ करना आसान हो सकता है अगर आप करना चाहे तो। आध्यात्मिक अन्वेषण में संलग्न होकर, व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों और आकांक्षा के बारे में स्पष्टता प्राप्त कर सकते हैं। यह यात्रा अक्सर अधिक पूर्ण और संतुष्ट जीवन की ओर ले जाता है, क्योंकि यह लोगों को अपने कार्यों को अपने मूल मूल्यों के साथ सारेंखित करने में मदद करती है। एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य आत्म खोज की खोज है। ध्यान, प्राथना या चिंतन जैसी आध्यात्मिक प्रथाओं के माध्यम से, व्यक्ति स्वयं के छिपे हुए पहलुओं को उजगार कर सकते हैं। यह आत्म जागरूकता व्यक्तिगत विकास और विकास को बढ़ावा देती है, जिससे लोग स्वयं का सर्वश्रेष्ठ संस्करण बन सकते हैं। यदि आप आध्यामिक जीवन जीते हैं इससे जुड़े कई लाभ हैं, सबसे उल्लेखनीय में से एक बेहतर मानसिक स्वास्थ्य है। आध्यात्मिक प्रथाओं में शामिल होने से शांति और शांति की भावना को बढ़ावा देकर तनाव, चिंता और अवसाद को कम किया जा सकता है। रिश्तों के मधुरता रहेगी आप उत्तम जीवन जीने लगेंगे, आध्यात्मिक अन्वेषण एक निरंतर यात्रा है जिसका कोई निश्चित अंत नहीं है। यह समय के साथ व्यक्तियों के बढ़ने और रूपांतरण के साथ विकसित होता है। इस यात्रा के खुले हृदय और दिमाग से अपनाने से गहरे बदलाव हो सकते हैं। यदि हम पूर्ण मनुष्य होना चाहते हैं फिर हमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीवन जीना ही होगा तभी हम सार्थक जीवन जीने लगेंगे।

आत्म खोज की यात्रा एक पुरानी खोज है जिसने सदियों से मनुष्यों को आकर्षित किया है। यह हमारी आंतरिक दुनिया की गहन खोज है, यह समझने का प्रयास है कि हम वास्तव में सामाजिक लेबल और भूमिका से परे कौन हैं। आत्म ज्ञान की यह खोज केवल एक दर्शनिक प्रयास नहीं है, बल्कि एक पूर्ण जीवन प्राप्त करने का एक व्यवहारिक मार्ग है। स्वयं को समझना एक परिवर्तनकारी अनुभव हो सकता है। इसमें आत्मनिरीक्षण, प्रतिबिंब और अपनी ताकत और कमजोरियों दोनों का समाना करने की इच्छा शामिल है। आज तेज़ रफ़्तार दुनिया में, अपने भीतर के आत्म को तलाशने के लिए समय निकालना अधिक स्पष्टता और उद्देश्य की ओर ले जा सकता है। आत्म प्रतिबिंब व्यक्तिगत विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है। अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहारों की जांच करके, हम अपनी प्रेरणाओं और इच्छाओं के बारे जानकारी प्राप्त करते हैं। यह प्रक्रिया हमें उन पैटर्न की पहचान करने में मदद करती है जो हमें पीछे खींच सकते हैं और हमें सचेत विकल्प बनाने के लिए सशक्त बनाती है जो हमारे सच्चे स्व के साथ सारेंखित होते हैं। आत्म ज्ञान का मार्ग अपनी चुनौतियों के बिना नहीं है। इसके लिए अपने बारे में असहज सत्य का समाना करने और अपने कार्यों की जिम्मेदारी स्वीकार करने की साहस की आवश्यकता होती है। बहुत से लोगों को बदलाव के भय या परिचित लेकिन सीमित मान्यताओं को छोड़ने की अनिच्छा के कारण इस यात्रा पर निकालना मुश्किल लगता है। हालांकि इन चुनौतियों को स्वीकार करने से महत्वपूर्ण व्यतिगत विकास और परिवर्तन हो सकता है। स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के लाभ कई गुना हैं। हम खिल सकते हैं उठ सकते हैं निरंतर ध्यान की अभ्यास से हम शरीर मन के परे जा सकते हैं। हम कुछ और हो सकते हैं यह बात याद रखना आप सभी। हम सभी मनुष्य से परमात्मा हो सकते हैं सीढ़ी पर ध्यान केंद्रित करना होगा, चक्र पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

इतना ध्यान से पढ़ने और सुनने के लिए हृदय से आभार।
धन्यवाद,
रविकेश झा, (पूर्णगुरु)
🙏❤️,

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