प्रकृति हमारी मातु सम
प्रकृति हमारी मातु सम, रखें नित्य हम ध्यान।
भूले से भी भूलकर, तोड़ें नहीं विधान।।
जीवन रक्षक है प्रकृति,सकल जीव की मातु।
नभ जल थल के जीव सब,रखते इसका ज्ञान।।
मानव को प्रभु ने दिया, ज्ञान बुद्धि भण्डार।
फिर भी मानव कर रहा,अतिशय वृक्ष कटान।।
ज्ञान अहम के दर्प में,भूला उत्तम सार।
ज्ञानी ध्यानी वेद सब,कहते प्रकृति महान।।
वन उपवन नित काटता,भवन बनाता खूब।
प्राण वायु नित घट रही,किधर चला इंसान।।
डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम