जिन्दगी थोड़ा रुक - रुक कर चलना,
जिन्दगी थोड़ा रुक – रुक कर चलना,
अभी तो मेरे बहुत फर्ज, निभाना बाकी है।
अभी अभी तो मेने शुरू किया चलना,
वो सारे सुख – दुःख के कर्ज, चुकाना बाकी है।
अपने तो कुछ घेरों को अपना बनाना,
मेरे उन सभी रिश्तों का दर्द, छिपाना बाकी हैं।
ये जीवन भर सभी को अपना बताना,
अभी तो यह मेरा सारा भर्म, मिटाना बाकी हैं।
अनिल चौबीसा चित्तौड़गढ़