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28 May 2025 · 1 min read

चिल कांदा

चिल कांदा

नदिया के तीरे – तीरे चिल कांदा बोहावत राहय ,
नान- नान लइका मन
खाके मुस्कियावत राहय।
अबड़ गुरतूर अउ मिठास
लइका अऊ सियान मन के
बुझावत राहय पियास।

शिवनाथ नदिया के पानी
बोहावत राहय धारी – धारी,
तीर म परय भारी भंवारी।
गुंझियाय राहय जड़ी मन म चिल कांदा,
ओला निकाले बर लगाए रहन एक – एक से फांदा।

दिखे म चूक – चूक ले सादा,
ऐसे फंसे रहय
जइसे कंठी माला।
आंखी मुंद खावत रहेंन चील कांदा,
नदिया के पूरा म बोहाथे चील कांदा।

दिखे म साफ – सुथरा ,सुंदर अउ पौष्टिक,
जे खावे ओ बलिष्ठ।
चल संगी नदिया ल
संवारबो,
चील कांदा के फायदा ल दुनिया म बगराबो।

वरिष्ठ साहित्यकार
कविराज संतोष कुमार मिरी “विद्या वाचस्पति”
रायपुर छत्तीसगढ़

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