विकृत विचारों पर नियंत्रण करके स्वयं को सुधार सकते हैं
विकृत विचारों पर नियंत्रण करके स्वयं को सुधार सकते हैं
मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिंब होता है। हमारे विचार ही हमारे कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं, और यही कार्य हमारे व्यक्तित्व और भविष्य का निर्माण करते हैं। जब विचार सकारात्मक, स्वस्थ और सृजनात्मक होते हैं, तब जीवन भी संतुलित और सुखमय बनता है। परंतु जब विचार विकृत, नकारात्मक और विध्वंसात्मक हो जाते हैं, तो व्यक्ति न केवल अपने जीवन को कठिन बनाता है, बल्कि समाज में भी नकारात्मकता फैलाता है।
विकृत विचार क्या हैं?
विकृत विचार वे होते हैं जो सत्य और तर्क से परे जाकर अतिशयोक्ति, शंका, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, निराशा या हिंसा जैसे भावों को जन्म देते हैं। उदाहरण के लिए — “मुझसे कुछ अच्छा नहीं हो सकता”, “दूसरे मुझसे बेहतर हैं”, “सब मेरे खिलाफ हैं”, इत्यादि ऐसे विचार हैं जो आत्मबल को नष्ट करते हैं और आत्मविश्वास को कमजोर करते हैं।
विकृत विचारों के कारण
विकृत विचारों के कई कारण हो सकते हैं —
बचपन का आघात
नकारात्मक संगति या वातावरण
अस्वस्थ मानसिक स्थिति या अवसाद
असफलताओं का गलत आकलन
आत्मचिंतन की कमी
इन पर नियंत्रण क्यों जरूरी है?
अगर विकृत विचारों पर नियंत्रण नहीं किया जाए, तो वे धीरे-धीरे मानसिक विकारों, तनाव, चिंता और सामाजिक अलगाव को जन्म दे सकते हैं। व्यक्ति आत्मविनाश की ओर अग्रसर हो सकता है, और सामाजिक संतुलन भी प्रभावित होता है।
स्वयं को कैसे सुधारें?
1. विचारों का निरीक्षण करें
प्रतिदिन अपने विचारों पर ध्यान दें। नकारात्मक या विकृत विचार आते ही उन्हें पहचानें।
2. सकारात्मक सोच को प्रोत्साहन दें
हर नकारात्मक सोच के स्थान पर एक सकारात्मक विकल्प खोजें। जैसे — “मैं असफल हूँ” की जगह “मुझे आगे और प्रयास करना होगा”।
3. ध्यान और योग का अभ्यास करें
ध्यान और योग मानसिक स्थिरता प्रदान करते हैं और आत्मचिंतन की क्षमता बढ़ाते हैं।
4. पढ़ाई और सत्संग से जुड़ें
अच्छे साहित्य, प्रेरणादायक लोगों और संतों की संगति से मन में शांति और सकारात्मकता आती है।
5. मनोवैज्ञानिक सहायता लें
यदि विचार नियंत्रण से बाहर हों, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह लेना अत्यंत आवश्यक है।
निष्कर्ष
विकृत विचारों पर नियंत्रण पाना कठिन अवश्य हो सकता है, पर असंभव नहीं। जब व्यक्ति आत्ममंथन करता है, सजग रहता है और सकारात्मक दिशा में प्रयत्न करता है, तो न केवल उसके विचार सुधरते हैं, बल्कि उसका संपूर्ण जीवन एक नई ऊर्जा और उद्देश्य से भर जाता है। यह आत्मविकास का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
मुकेश शर्मा विदिशा