सकल सृष्टि के मूल में
सकल सृष्टि के मूल में,बसता निश्छल प्यार।
सकल सृष्टि निर्माण में,प्यार प्रमुख आधार।।
दिव्य सोच ब्रह्मा रखी,किया सृष्टि निर्माण।
जीव जन्तु सारी धरा,पाए समुचित त्राण।।
वंश वृद्धि होती रहे,चले सृष्टि निज चाल।
दूषित हों जो तत्व फिर, हरण करे तव काल।।
नहीं कभी भी रुके यह,जन्म मरण संसार।
सकल सृष्टि निर्माण में,प्यार प्रमुख आधार।।
वंश वृद्धि करते रहें,उसका रचा विधान।
प्यार भरा सबके हृदय,दिया प्यार का ज्ञान।।
सारे जग के जीव ही,रखते इसका मान।
कैसे संतति निज बढ़े,होता सबको ज्ञान।।
ममता का आँचल दिया,मातृ शक्ति उपहार।
सकल सृष्टि निर्माण में,प्यार प्रमुख आधार।।
डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम