#रिपोर्ताज
#रिपोर्ताज
बुलाई ऑर्केस्ट्रा, आया बैंड
*लाखों से सजी एक रात घंटे भर में पड़ी काली
मंच के। बजाय नीचे कोने में विराजी मां शारदा
गरिमाहीनता का शिकार हुआ गौरव दिवस
बारातियों से पहले घरातियों का बेशर्म सत्कार
(प्रणय प्रभात)
“घर के जोगी जोगड़े, आन गांव के सिद्ध।
उन्हें गरुड़ क्यों भाएंगे, जिन्हें भा रहे गिद्ध??”
मुक्तिबोध की धरती से उपजा यह दोहा सटीक साबित बैठता है उस मनोवृत्ति पर मनमानी का रूप ले चुकी है। प्रसंग में है बीते रविवार की रात श्री हजारेश्वर मेला मंच पर मनाया गया “श्योपुर गौरव दिवस” जो पूरी तरह अमर्यादित व गरिमाहीन साबित हुआ। वजह बनी ऊंची दुकान के फीके पकवान परोसने की लत, जिससे नगर पालिका बरसों बाद भी उबरने को राज़ी नहीं है। साल में एक बार होने वाले मेला रंगमंच के कार्यक्रमों के नाम पर लाखों की बर्बादी की आदी नपा परिषद 25 मई की रात को काली बनाने वाली रही।
नेता नगरी के किसी छोटे भाई की सिफारिश पर किसी न किसी बड़े बड़े भाई की अनुशंसा पर आयोजित लाखों के खर्चे वाली कथित बॉलीवुड नाइट पूरी तरह फ्लॉप शो साबित हुईं। जिसमें मुंबई के सिंगर और कंपोजर साजिद वाजिद की टीम पर “नाम बड़े और दर्शन छोटे” वाली कहावत को सही साबित किया। कानफोडू साउंड, तेज व तीखी धुनों और नए दौर के फूहड़ गीतों के त्रिकोण में फंसे इस आयोजन की बची खुची मिट्टी निकाय की अपनी आपाधापी व अलाली ने पलीद कर डाली।
अतिथि के रूप में कलेक्टर अर्पित वर्मा, पूर्व विधायक दुर्गालाल विजय, वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश नारायण गुप्ता, महावीर सिंह सिसोदिया व नपाध्यक्ष रेणु राठौर (गर्ग), उपाध्यक्ष संजय महाना व मेला अध्यक्ष नाथी बाई आदिबासी द्वारा मंच के ऊपर के बजाय मेले के इतिहास में पहली बार नीचे एक कोने में रखी गई मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलन के साथ आरंभ हुई म्यूजिकल नाइट बिना किसी स्तुति या वंदना के फिल्मी गीतों से शुरू हो गईं। जिसे एक पावन परिसर में धर्मनिष्ठ सरकार के संस्कारवान निकाय का शर्मनाक नवाचार भी माना जा सकता है।
सालों से चली आ रही बेशर्मी की परिपाटी पर अमल को लेकर कोई चूक इस बार भी नहीं हुईं। अतिथि सत्कार के बाद मंच पर मौजूद कलाकारों से पहले सीएमओ के हाथों मेला समिति अध्यक्ष व पार्षदों का स्वागत भी मालाओं से कराया गया। जो आयोजन में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष की तरह मेहमान नहीं मेज़बान थे। ऐसा लगा मानो दरवाज़े पर खड़े बारातियों से पहले घराती अपना सम्मान ख़ुद करा रहे हों। शर्म से परे इस परम्परा का इतिहास नया नहीं है। जो अगले कार्यक्रमों में भी निभाई जाएगी।
जिले के 28वें स्थापना दिवस पर आयोजित बॉलीवुड नाइट का आगाज़ जयपुर के युवा गायक वेदांत खंडेलवाल ने किया। इसके बाद माइक संभाला इंडियन आइडल फेम अंकुश भारद्वाज ने। दोनों ने मिले जुले गीतों के साथ कार्यक्रम को बेहतर शुरुआत दी। इसी क्रम में चार छह लाइनें देश व सेना को समर्पित की गई। इसके बाद शुरू हुआ नई पीढ़ी की हंगामा पसंदी को और शबाब देने का सिलसिला, जिसे गायिका मुस्कान के बाद जावेद, मोहसिन ने आगे बढ़ाया। दानिश साबरी ने दोयम दर्जे के शेरों के बूते हुड़दंगियों की खूब तालियां बटोरीं। आख़िर में मंच पर आए साजिद वाजिद फेम कंपोजर साजिद, जिन्होंने लाइव कंसर्ट के नाम पर ट्रैक साउंड व रिकॉर्डेड गीतों पर लिप्सिंग करते (केवल होंठ हिलाते) हुए लाखों के कार्यक्रम का दी एंड कर दिया। टीम को मंच छोड़ने की कितनी जल्दी थी, इसका पता इसी से चल जाता है कि ग्रुप के एक गायक तेज गिल को अपनी प्रस्तुति का एक मौका तक नहीं दिया गया।
गीत संगीत के नाम पर शोरपसंद भीड़ के एक बड़े हिस्से के लिहाज से नपा चाहे तो कार्यक्रम को सफल मान कर अपनी पीठ अपने हाथों थपथपा सकती है। जहां तक एक तिहाई संभ्रांत नागरिक व महिला वर्ग का सवाल है, सब रात काली कर मायूसी के साथ घर लौटे। घंटे भर की कवायदों को मिला कर कुल 3 घंटे के प्रोग्राम में अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों व संगीत प्रेमियों के लिए कुछ नहीं था। प्रोग्राम शुरू होने के बाद आए पुलिस कप्तान वीरेंद्र जैन व अपनी धर्मपत्नी के साथ कलेक्टर श्री वर्मा पहले घंटे में ही रवानगी डाल गए। शायद वे आयोजन के दिशाभ्रमित होने की स्थिति को भांप चुके थे।
बैठक व्यवस्था व कानून व्यवस्था के साथ भव्यता और चमक दमक के लिहाज से ज़रूर अच्छा कहा जा सकता था, बशर्ते नगर पालिका की हड़बड़ी समापन को और विकृत न बनातीं। आलम था कि तमाम नाज़ नखरों के बाद जैसे तैसे स्मृति चिह्न लेने मंच पर लौटे कलाकारों को थमाने के लिए प्रतीक चिह्न ढूंढ कर मंगवाने पड़े। एक स्थिति ऐसी भी आई जब अध्यक्ष प्रतिनिधि (पति) को प्रतीक चिह्न मेला अधिकारी के हाथ से छीनना पड़ा।
मंच सहित मंच प्रांगण के लगभग ख़ाली हो जाने के बाद कथित गौरव दिवस की बेहद सस्ती खानापूर्ति का ख्याल नपा को आया। इसके बाद आमंत्रित कलाकारों को गायकी में टक्कर देने का माद्दा रखने वाले स्थानीय युवा कलाकारो को मेहमान कलाकार साजिद के साथ नपा अध्यक्ष ने स्मृति चिह्न भेंट किए। इनमें बॉलीवुड नाइट की एंकरिंग करने वाले गीतकार, गायक व कंपोजर प्रख्यात भटनागर सहित युवा गायक इल्तिमाश खान, अतुल राय, हितेश मित्तल, शुभम जाट, तबला वादिका नवोनीता गांगुली व संगीत शिक्षक सुरेश राय के प्रतिनिधि शामिल थें।
बेहतर होता यदि इस प्रक्रिया को म्यूजिकल नाइट से पहले गरिमा के साथ संपन्न कराने के सुझाव को गंभीरता से लेते हुए परिषद खुले हृदय, साफ मन और उदार भाव से जिले के असली गौरव युवाओं को सम्मानित व प्रोत्साहित करती। साथ ही मुम्बईया कलाकारों से पहले उतना सा वक़्त उक्त कलाकारों को अपनी प्रतिभा प्रकट करने के लिए देती, जितना पार्षदों के माल्यार्पण में ज़ाया हुआ। परिषद को नहीं भूलना चाहिए कि मेला मंच पर मुंह अंधेरे तक चलने वाले कार्यक्रमों की परिपाटी रही है और नगर के पारखी कलाप्रेमियों ने बरसों तक एक से बढ़ कर एक ऑर्केस्ट्रा टीमो का रात रात भर आनंद लिया है। जिनके आगे उनका बुलाया लाखों का बैंड पासंग में भी नहीं रहा।
यह और बात है कि प्रधानमंत्री जी के “मन की बात” कान लगा कर सुनने का ढोंग करने वाले परिषद के ठेकेदार व उनके मार्गदर्शक पीएम के “वोकल फॉर लोकल” के महामंत्र को एक ख़ास दिन भी याद नहीं रख पाए। शायद रख पाते, बशर्ते सियासत से अलग क्षेत्र में अपनी मेहनत व योग्यता से देश प्रदेश में पहचान बनाने वाला नौजवान किसी नेता का भाई भतीजा या चहेता होता। विडंबना की बात यह है कि 50 साल पुरानी प्रोसिडिंग के आधार पर मनने वाले 15 अगस्त व 26 जनवरी के ज़िला स्तरीय आयोजन के अंतिम चरण का हश्र सालों साल से मूक दर्शक बन कर देखते आ रहे गणमान्य नेता अपनी परिषद को सड़ी गली सोच व कार्यप्रणाली में थोड़ा सा सुधार और बदलाव करने की प्रेरणा नहीं दे पाए। नतीजतन, ज़िले के गौरव से जुडा साल का एक ख़ास दिन ख़ुद पर शर्मसार हो कर रह गया और महाकवि मुक्तिबोध की नगरी से दो पंक्तियां और जन्म पा गईं।
“जलते दीपों के नीचे हैं, अंधियारे के डेरे।
घर के पूत कुंवारे डोलें, पाड़ोसी के फेरे।।”
फिलहाल, दुआ की जानी चाहिए दलाली और ठेका प्रणाली पर टिके अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और कुल हिंद मुशायरे की अस्मिता व अस्मत के लिए, जिसके पीछे अड़ोस पड़ोस के छोटे मोटे मंचीय ठेकेदार हाथ मुंह धो कर पड़े हुए हैं। सूत्रों की मानें तो उक्त दोनों आयोजनों के लिए घिसे पिटे नामों का पैनल बनाने का काम जारी है। जिसमें आयोजन का लगातार बंटाधार करते आ रहे सूत्रधार जी जान से जुटे हुए हैं, जिनकी जी हुजूरी करने वाले दिन भर मोबाइल खटखटा रहे हैं। साथ ही ऊपरी स्तर से उन सियासी योद्धाओं की सिफारिशें भी आ रही हैं, जिनकी सात पीढ़ियों का। न साहित्य से कोई सरोकार है, न अदब से दूर दूर तक कोई वास्ता।।
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#निवेदन
इस आयोजन का दूसरा पहलू आपको कल के अंक में लाभार्थी, आकांक्षी व उपकृत पत्रकार बंधु पढ़ाएंगे। ज़रूर पढ़ें। 😃😃
संपादक
न्यूज़&व्यूज
(मध्यप्रदेश)