"कौन ये कहता है ज़िंदगी फ़िर मुस्कुराएगी"
कौन ये कहता है ज़िंदगी फ़िर मुस्कुराएगी,
क्या टूटे दिल की ख़ामोशी फ़िर लौट आएगी
हर मोड़ पर एक जख्म़ नया दिल को मिला,
किस उम्मीद पर अब राहें खिलखिलाएगी
आसमान भी कभी झुकता है ज़मीं की तरह,
किससे कहें ये, कि कब तक बारिशें बहाएगी
ख़्वाबों की चादर में थीं उम्मीदें बुनती,
अब बिखरी रूह, क्या दोबारा सज पाएगी
जो था पास, वो पलकों से बिखर गया है दूर,
क्या अधूरी दुआ कभी फ़िर वही रंग लाएगी
धड़कनों में तो अब सन्नाटा बसा है बस,
क्या कोई धुन अब इनको फ़िर सुनाएगी
रास्तों पर बिछी हैं हरसम्त कांटों की कलियाँ
किस मोड़ पर अब मंजिल हमें पास बुलाएगी
अश्कों के साये में बिछड़े लम्हों का सफ़र,
क्या कोई रात फ़िर सुबह का पैग़ाम लाएगी
साथ छूटा जब अपनों का दर्द में डूबकर,
क्या परछाइयाँ फ़िर से वो हंसीं लौटाएगी
जो बेमक़सद रह गए थे अरमान अधूरे,
क्या कभी ज़िन्दगी वो क़िस्सा दुहराएगी
“रईस” ये कहता है ज़िंदगी फ़िर मुस्कुराएगी,
यूँ वक़्त की रहमतें किस क़दर बहलाएगी
©️🖊️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)