वक्त
बहुत बड़े बड़े नौसिखिए मशहूर हुए,
वक्त के हाथों फिर वो मजबूर हुए।
न कीजिए इतना गुरूर और गुमान,
समय से बड़ा है न कोई बलवान।
इसकी लाठी में आवाज नहीं होती, समय के जैसी कोई तलवार नहीं होती।
यह धीरे-धीरे काटती चली जाती है,
दर्द भी नहीं होता पर बड़ा तड़पाती है।
था गुमान जिसे अपनी खूबसूरती पर,
न जाने अब वह अपनी झुर्रियां कहां छुपाती है?
इतराती थी अपनी चमकीली त्वचा पर,
इस सच्चाई भरे समय से हार जाती है।
अगर करना है किसी पर गुमान,
तो करिए बनाकर इंसान।
यह तो चलता रहता है बनकर नदी की धार,
रुक जाए जो पल भर में मच जाए हाहाकार।
जीत भी उसी की होती है जग में,
जो चले समय के रथ पर होकर सवार।
किस्मत के आगे झुकिए नहीं,
मौके को कभी चूकिए नहीं।
जो पलट जाए किस्मत की बाजी, आपके आंगन हो खुशियों की आतिशबाजी।
वक्त से मानिए ना कभी भी हार,
पकड़ के रखिए वक्त की हर धार।
यही वह धार है जो जीवन में जीत दिलाती है,
किस्मत भी इस वक्त के आगे हार जाती है।
और इसी वक्त की कीमत,
आज दिव्यांजली आपको बताती है।
स्वरचित मौलिक रचना
दिव्यांजली वर्मा अयोध्या उत्तर प्रदेश