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21 May 2025 · 11 min read

मुहम्मद का पवित्र मल-मूत्र

13 जून, 2007 को मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट (एमईएमआरआई) ने निम्न लेख प्रकाशित किया:
मिस्र के मुफ्ती डॉ. अली जुमा ने अपनी पुस्तक धर्म और जीवन- आधुनिक दैनंदिन फतवा में लिखा कि पैगम्बर मुहम्मद के साथी उसका पेशाब पीने में खुद को धन्य समझते थे। एक हदीस के हवाले से पेशाब पीने की एक घटना का वर्णन किया गया। हदीस में कहा गया है: उम्मे-एमन ने रसूल का पेशाब पिया और रसूल ने इस औरत से कहाः ‘अब दोजख की आग में तुम्हारी अंतड़ियां नहीं खिंचेंगी, क्योंकि इस पेशाब में अल्लाह, उसके रसूल का अंश है…

अल जुमा ने फतवे में कहा, ‘यह सबाब रसूल के लार, पसीने, बाल, पेशाब या खून से भी मिल सकता है। जो भी रसूल की मुहब्बत को जानता है, वह इन सबसे घृणा नहीं करेगा। वैसे ही जैसे एक मां अपने बच्चे के पाखाने से अशुद्ध नहीं होती। ऐसे ही उस रसूल, जिसे हम अपने पिता, बेटों और बीबियों से अधिक प्यार करते हैं, की इन चीजों से कोई गंदा नहीं होता। यदि किसी को रसूल की इन चीजों में बदबू आती है तो उसे अपने विश्वास को फिर से जांचना चाहिए।

हालांकि जब हंगामा होने लगा तो जुमा अपने फतवा के बचाव में उतर आए और कहने लगे: ‘रसूल का पूरा शरीर, खुला या ढंका, शुद्ध है और इसमें और उनके मल-मूत्र में ऐसा कुछ नहीं है कि जिससे किसी को परहेज हो, परेशानी हो। उनका पसीना इत्र से अधिक महकता है। उम्मे-हरम उनके पसीने को इकट्ठा करके अल-मदीना के लोगों में बांटती थी।

डॉ जुमा ने कहा: ‘अलहुदैबिया में सुहैल बिन उमर की हदीस कहती है: ओ स्वामी, मैं फारस के सुल्तान किसरा और बाइजैन्टाइन के सुल्तान कैसर के साथ था। पर मैंने एक बार भी नहीं देखा कि उनका इस तरह महिमा मंडन हो रहा हो, जैसा कि वहां रसूल के साथी मुहम्मद के बारे में कर रहे थे। दूसरे मुहम्मद जब थूकते थे, तो सुल्तान उनके थूक को लेने के लिए लपक पड़ते थे और फिर उसे अपने चेहरे पर मलते थे।

इस तरह हजर अल-असकलानी, अल-बैहकी, अल-दार अल कुतनी और अल-हिशाम सहित अन्य आलिमों ने रसूल के पूरे शरीर को पवित्र बताया। मिस्र के धार्मिक मामलात के मंत्री डॉ. मुहम्मद हमदी जकजूक ने जुमा के इस बयान की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा: ‘इस तरह के फतवे से इस्लाम को नुकसान पहुंचता है। इस्लाम के शत्रुओं को बुराई का स्रोत मिलता है और ये लोगों को जाहिलियत और पिछड़ेपन की ओर धकेलता है। सरकारी अखबार अल-अहरम में ज़कजूक ने लिखा: ‘इस तरह का फतवा दुखद है। इससे इस्लाम व पैगम्बर का इतना नुकसान हुआ है, जितना कि डैनिश कार्टून से नहीं हुआ था। क्योंकि इस बार नुकसान इस्लाम के शत्रुओं ने नहीं किया है, बल्कि ऐसे मुस्लिम उलमा ने किया है, जो लोगों को इस्लाम के बारे में विचार देते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘हदीस की किताबों में सब दिया है। क्या हलाल है और क्या हराम, इन किताबों में बताया गया है। उन बातों में मिलावट करना या बार-बार दूषित करना, न तो इस्लाम और न ही मुसलमानों के लिए अच्छा है। मुसलमानों के दिमाग में इस तरह की दूषित बातें, अस्वस्थ विचार और सिद्ध न की जा सकने वाली आधारहीन धारणाएं डालने की कोशिश अब स्वीकार नहीं की जा सकती।

अल-अजहर के इस्लामिक रिसर्च अकादमी ने शेख डॉ. मुहम्मद सईद तंतावी की अध्यक्षता में जुमा के फतवा पर सख्त ऐतराज जताया गया। अकादमी ने कहा कि आज की परिस्थिति में यह फतवा बिलकुल उचित नहीं है। जुमा के फतवे को लेकर और भी इस्लामिक विद्वानों और जनता ने विरोध प्रकट किया। अटार्नी नबी अल-वहश ने प्रासीक्यूटर जनरल के यहां जुमा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई शिकायत में कहा गया कि जुमा के इस फतवे से सामाजिक स्थिरता को खतरा पैदा हो गया है और यह अपमानजनक है। इससे रसूल और उनके साथियों का भी अपमान हुआ है।

अल-अहरम के संपादक ओसामा सराया ने तर्क दिया कि भले ही जुमा के फतवे का आधार मजहबी किताबें अथवा स्रोत हों, पर आज के मुसलमानों के लिए यह प्रासंगिक नहीं है। मजहबी कानून की किताबों में बहुत से सवाल और मुद्दे खड़े होते हैं। इन किताबों की कई ऐसी बातों को छोड़ दिया गया है, जिनका आज के मुसलमानों की जिंदगी की हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है और जो केवल सैद्धांतिक या दार्शनिक अथवा विवादास्पद हैं।

अतीत में मजहबी उपदेशकों ने कहा है कि आवश्यक नहीं है कि जो कुछ पता हो, वह सब प्रकट ही कर दिया जाए। यह मान्य तथ्य है कि बहुत से ऐसे मसले हैं, जिन पर कभी मौलवी माथापच्ची करते थे, पर आज के समय में ये मसले अप्रासंगिक हो चुके हैं। क्योंकि ये विषय अब उस तरह से जनजीवन से जुड़े भी नहीं हैं और लोकव्यवस्था में गड़बड़ी भी कर सकते हैं। मजहबी कानूनों के विद्यार्थी इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं। सरकारी अखबार अल-जम्हूरियाह के स्तंभकार याला जबल्लाह लिखते हैं: ‘उम्मै एमन का किस्सा सच हो या झूठ, पर यदि कोई पूछे भी तो भी किसी मुफ्ती को इसे नहीं बताना चाहिए। इस कहानी को जानने का भला कोई फायदा है? गौरवशाली अतीत, प्रतिष्ठित खून और पवित्र मूत्र धारण करने वाले रसूल अब हमारे बीच नहीं हैं। इसलिए अब इन बेकार के विषयों पर चर्चा की गुंजाइश नहीं है। इन विषयों को दोबारा छेड़ने से जनता को नुकसान हो सकता है और इस्लाम को क्षति होगी।

अल-अखबार के स्तंभकार अहमद रागिब ने जुमा के फतवे पर तंज कसते हुए लिखा: ‘मुफ्ती साहब, आपके फतवे के प्रति पूरा सम्मान… पर जरा यह समझाएं, पेशाब पीना कैसे मुमकिन है ? क्योंकि मूत्र विसर्जन तो सार्वजनिक रूप से किया नहीं जाता है, इसके लिए तो कोने में कहीं एक निर्जन स्थान तय रहता है? क्या रसूल के साथी हाथ में बरतन लेकर उनके पेशाब करने का इंतजार किया करते थे। क्या कोई समझदार इंसान यह मानेगा कि रसूल उन्हें अपना पेशाब इकट्ठा करने देते थे।

इन बातों में आशा की किरण दिखती है कि एक दिन मुसलमानों को उनकी मूर्खता का अहसास कराया जा सकता है। ये घटनाएं बताती हैं कि मुसलमानों को एक सीमा तक ही बेवकूफ बनाया जा सकता है और इसके बाद मुसलमान स्वयं सवाल उठाने लगेंगे। मेरी धारणा है कि यदि मुसलमानों को इस्लाम के नंगा सच से अवगत कराया जाए और उनकी मूर्खतापूर्ण हरकतों को उजागर किया जाए तो बड़ी संख्या में मुसलमानों में अक्ल आएगी और वे इस्लाम को छोड़ देंगे।

मुहम्मद ने निर्जल उपवास की उसी परंपरा को फिर से जीवित किया, जो मूर्तिपूजकों में प्रचलित थी। हालांकि मुहम्मद को सुबह से रात तक अन्न व जल के बिना रहना मुश्किल लगने लगा, इसलिए रोजे के दौरान भी जब उसकी इच्छा होती, वह कुछ खा लेता।

इब्ने-साद लिखता है: ‘अल्लाह के रसूल कहा करते थे, ‘हम पैगम्बरों को सुबह का खाना दूसरे लोगों के बाद खाना चाहिए और शाम को जल्दी रोजा तोड़ना चाहिए।

ये कुछ उदाहरण हैं, जिनसे साबित होता है कि मुहम्मद अपनी खुशी के लिए ही कोई काम करता था और वह अपने काल्पनिक अल्लाह से अपने मनमानी कार्यों की अनुमति दिलवाता था।

युवा और संवेदनशील आयशा को मुहम्मद की मनमानी समझ में आ गई थी। इसलिए उसने या तो तंज कसते हुए अथवा अनजाने में उससे कहा, ‘मुझे लगता है कि तुम्हारा अल्लाह तुम्हारी तमन्ना और अरमानों को पूरा करने की जल्दबाजी में रहता है। आयशा ने यह तब कहा, जब मुहम्मद ने अपने अल्लाह से अपनी बहू जैनब को बीबी बनाने की अनुमति दिलवाई। किसी भी जंग में मुहम्मद ने अपनी जिंदगी दांव पर नहीं लगाई। वह अपनी फौज के पीछे खड़ा रहता था और उसके पास द्विस्तरीय श्रृंखलाबद्ध कवच होता था। यह द्विस्तरीय कवच इतना भारी होता था कि उसे खड़े होने या चलने के लिए किसी के सहारे की जरूरत पड़ती थी। इस स्थिति में वह अपने आदमियों को जंग में जीतने पर जन्नत में 72 कुंवारी व खूबसूरत कन्याओं और दिव्य भोजन का लालच देते हुए अपने आगे खड़ी फौज को चिल्लाकर उत्साह दिलाता था और कहता था कि मौत से डरे बिना बहादुरी से लड़ो। कभी-कभी वह मुट्ठी में रेत भर कर दुश्मन की ओर फेंकता था और उन्हें कोसता था।

अपनी फौज के खर्चे के लिए अल्लाह का यह रसूल अपने अनुयायियों पर धन देने का दबाव बनाता था। वह अनुयायियों से कहता कि वे उसकी सेवा करें और उसमें विश्वास बनाए रखें। वह अपनी चापलूसी को प्रोत्साहन देता था और किसी भी तरह के असंतोष पर उसकी त्यौरियां चढ़ जाती थीं। कुरैशों की ओर से वार्ताकार उरवा हुदैबियाह में मुहम्मद से मिलने गया तो उसने देखा कि मुहम्मद के चेले उस पानी को लेने के लिए दौड़ पड़ते थे, जो उसके नहाने के बाद बच जाता था। यही नहीं यदि मुहम्मद खंखारता या थूकता था तो वे उसे लेने के लिए दौड़ पड़ते और यदि उसका कोई बाल गिर रहा होता था तो वे उस पर झपट पड़ते थे। इतिहासकार सर विलियम म्यूर का मानना है कि इन बातों को यह मानकर खारिज नहीं किया जा सकता कि बाद के वर्षों में इन चीजों को अतिरंजित रूप से प्रस्तुत किया गया। दूसरे संप्रदाय के नेताओं की तरह मुहम्मद ने भी अपने व्यक्तित्व को केंद्र में रखकर एक संप्रदाय गढ़ा। आज भी हम इस तरह की व्यक्ति पूजा वाले संप्रदायों को देख सकते हैं। वास्तव में एक नार्सिसिस्ट अर्थात मनोरोगी इसी तरह का व्यवहार पसंद करता है। मुहम्मद स्वयं को कानून से ऊपर मानता था। जब भी आवश्यकता पड़ी तो उसने नैतिक व सैद्धांतिक नीति-नियमों को तोड़ा और इसे सही ठहराने के लिए उसने अपने अल्लाह के माध्यम से एक आयत कही।

अरबी लोग रेगिस्तान के सीधे-साधे इंसान थे, पर वे अपने पराक्रम पर गर्व करते थे। वर्ष में कुछ मास ऐसे होते थे, जिनमें वे आपस में नहीं लड़ते थे। इन मास में लोग तीर्थयात्रा पर जाते थे, इसलिए ये पवित्र माने जाते थे। इन्हीं पवित्र महीनों में मुहम्मद ने हमलावरों का एक दस्ता खजूर के पेड़ों के लिए मशहूर नखला भेजा और किशमिश, मक्खन, शराब व अन्य पकवान लेकर तायफ़ से मक्का जा रहे तीर्थयात्रियों के कारवां को लूटने का आदेश दिया। वर्ष के इन मास में लड़ना या हत्या करना पाप माना जाता था।

उसने अपने गिरोह के 8 सदस्यों को नखला कूच करने को कहा और इन आदमियों को अपने मिशन के बारे में नहीं बताया। उसने इस दल के मुखिया को एक बंद चिट्ठी दी और यह निर्देश भी दिया कि गंतव्य पर पहुंचकर ही इसे खोलें। जब उन्होंने चिट्ठी खोली तो पता चला कि मुहम्मद ने इस पवित्र मास में कारवां पर हमला करने का आदेश दिया है। दल के दो सदस्यों का ऊंट रेगिस्तान में गुम हो गया तो वे उसे ढूंढने में लग गए। बाकी छह लोगों ने विचारोपरांत निर्णय किया कि भले ही यह कार्य अनुचित, अनैतिक और पाप है, लेकिन चूंकि मुहम्मद का हुक्म है, इसलिए इसे पूरा किया जाना चाहिए। कारवां पर घात लगाने से पहले इन लोगों ने अपने सिर मुंडवाए, ताकि कारवां के लोग उन्हें भी तीर्थयात्री समझें और अपनी सुरक्षा से बेपरवाह रहें। कारवां के बीच में तीर्थयात्री के वेश में घुसकर मुहम्मद के आदमियों ने एक व्यक्ति का कत्ल कर दिया और दो लोगों को बंधक बना लिया। कारवां का एक व्यक्ति किसी तरह जान बचाकर भागने में सफल रहा। यह पहला खून खच्चर था, जिसके लिए इस्लाम जिम्मेदार था। इस्लाम ने सबसे पहले जिस इंसान का खून बहाया, वह मुसलमानों द्वारा बहाया गया गैर-मुस्लिम का खून था। मुसलमानों ने गैर-मुस्लिमों से दुश्मनी निकालनी शुरू कर दी। इन्होंने विरोधियों और आलोचकों का सिर कलम करना शुरू कर दिया। इन हत्याओं से कुरैश समुदाय सदमे में आ गया और उन्हें समझ में आ गया कि इनका विरोधी सत्ता हासिल करने के लिए किसी नियम कायदे का पालन नहीं करेगा।

बहुत से ऐसे मामले हैं, जिनमें मुहम्मद ने नीति-सिद्धांत, शिष्टाचार व नैतिकता को ताक पर रखकर प्रचलित कानूनों को तोड़ा। किसी भी समाज में व्यापारियों के कारवां को लूटना, गांवों पर हमला करना और उनकी धनसंपदा को छीनना कानून के खिलाफ होता है। मुहम्मद ने निहत्थे समूहों पर घात लगाकर हमला किया, बहुतों को मार डाला, और उनकी औरतों व बच्चों को पकड़कर दास बना लिया। उसने ये सब अपने अल्लाह का आदेश बनाकर उचित भी ठहरा दिया। उसने हमलों में गुलाम बनाई गई औरतों का बलात्कार करना जायज करार दिया और यहां तक उन महिलाओं के बलात्कार को भी सही बता दिया, जो शादीशुदा थीं (कुरान. 4:24)

अल्लाह के रसूल ने परिवार की औरतों-लड़कियों के साथ व्यभिचार से लेकर बहुविवाह, बलात्कार से लेकर बाल यौन शोषण, हत्या से लेकर नरसंहार तक सब किया और अपने अनुयायियों को भी ये सब करने को प्रेरित किया। इस्लाम शब्द का अर्थ है अधीनता। कुरान कहता है, ‘किसी भी मोमिन मर्द या औरत को उस बात की अवज्ञा करने का हक नहीं है, जिसे अल्लाह के रसूल ने कहा है।’ (कुरान 33:36) हालांकि सच्चाई यह है कि इस्लाम गैर मुस्लिमों को भी अपने तरीके से जीने की आजादी नहीं देता है। दूसरे धर्म को मानने वाले लोग या तो इस्लाम की अधीनता स्वीकार कर लें अथवा मरने के लिए तैयार रहें। मुहम्मद ने असहमति को विश्वासघात कहा था।

नार्सिसिस्ट के लिए असहमति बर्दाश्त से बाहर होती है। मुसलमानों के इस असहिष्णु रवैये को देखकर गैरमुसलमानों को भय और खतरा महसूस होता है। परित्यक्त बचपन की पीड़ादायी स्मृतियां जैसे-जैसे गहरी होती हैं, व्यक्तित्व में असंतुलन खतरनाक ढंग से बढ़ जाता है। फिर ऐसे व्यक्ति बहुत आहत महसूस करने लगते हैं और इनमें प्रतिशोध की भावना प्रबल हो उठती है। मुहम्मद उन्हें अपना शत्रु मानता था, जो उसका विरोध करते थे या उसको समर्थन नहीं देते थे। वह पागल था और हर जगह उसे साजिश दिखती थी।

वह स्वयं को शत्रुओं के दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के पीड़ित नायक के रूप में प्रस्तुत करता था। जबकि उसके ये ‘शत्रु’ उसकी कल्पनाओं के सिवाय, कहीं और नहीं थे। मुहम्मद की सफलता का एक राज यह था कि वह उन लोगों की जासूसी करवाता था, जो उसकी आलोचना करते थे और उन पर हमला करने से पहले उनके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लेता था। मुहम्मद की सनक ऐसी थी कि वह अपने अनुयायियों को भी एक-दूसरे की जासूसी करने को कहता था । मुसलमान आज भी ऐसा ही करते हैं। रसूल की तरह वे भी खुद को पीड़ित दिखाते हैं और इस आधार पर अपने आतंकवादी कृत्यों को उचित ठहराते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया में बुरी ताकतें इस्लाम को नष्ट करने के लिए काम कर रही हैं और यहूदियों के नेतृत्व में पूरी दुनिया में इस्लाम के खिलाफ षडयंत्र चल रहा है। मुसलमानों के मन में यह बात बिठा दी गई है कि यहूदी दुनिया को नियंत्रित करते हैं और खासकर यह कि अमरीका पर यहूदियों का नियंत्रण है, जो इस रहस्यमयी और ताकतवर यहूदी साजिश के प्रभाव में मुसलमानों के खिलाफ प्रछन्न युद्ध छेड़े हुए हैं। मुसलमान अपने ही लोगों की बातों और कार्यों को लेकर चौकन्ना रहते हैं। मुसलमान इस्लामी कानूनों का पालन ठीक से हो रहा है या नहीं, यह जानने के लिए एक-दूसरे की जासूसी करते हैं। सभी इस्लामी देशों में आतंक का वातावरण निर्मित किया जाता है, ताकि कोई इस्लामी मत के खिलाफ मामूली सवाल करने का भी साहस न कर सके। इस्लामी देशों में आपका अपना बच्चा आपके खिलाफ ईशनिंदा की शिकायत दर्ज करा सकता है और यह शिकायत आपको मौत की सजा तक ले जा सकती है। मनोविकृत नार्सिसिस्टों को लगता है कि वे विशेष हैं और इसलिए वे विशिष्ट लाभ लेने के अधिकारी हैं। मुहम्मद ने कभी उन लोगों को धन्यवाद नहीं कहा, जिन्होंने उसके काम किए। इसके बजाय वह कहता था कि उन लोगों को कृतज्ञ होना चाहिए कि उन्हें अल्लाह की सेवा का अवसर मिला है।

‘ऐ मोमिनो ! खैरात देने के बाद तिरस्कार कर और मन को आहत कर अपनी खैरात को बेकार मत करो। ऐसा ही तो वो लोग करते हैं, जो अपना धन अपनी औकात दिखाने के लिए खर्च करते हैं और अल्लाह व कयामत के दिन में भरोसा नहीं करते हैं। (कुरान. 2:263)

मुहम्मद औरत, शबाब और ताकत की भूख को पूरा करने के लिए लालायित रहता था। वह औरत के प्यार के लिए तड़पता था, क्योंकि बचपन में उसके अपनों ने उसे प्यार नहीं दिया था। मुहम्मद ने प्यार की अपनी भूख को ताकत हासिल कर शांत किया। रूखा बचपन नार्सिसिज्म, तानाशाही प्रवृत्ति और मनोविकृति का मुख्य कारण होता है। उसके दादा और चाचा के अतिशय लाड़-प्यार, अनुशासन डालने में उनकी असफलता ने उसके भीतर नार्सिस्टिक लक्षणों को और बढ़ाया। मुहम्मद जब अपनी मां की कब्र पर गया तो चिल्ला-चिल्लाकर रोया, लेकिन उसके ये आंसू उसकी मां के लिए नहीं थे, बल्कि वह स्वयं पर रो रहा था। नार्सिस्टिक के मन में दूसरों के प्रति भावनाएं नहीं होतीं। ऐसा इंसान केवल अपनी भावनाओं, अपनी पीड़ा और अपनी भावनात्मक आवश्यकताओं से ही वास्ता रखता है।

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