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21 May 2025 · 1 min read

गुरतुर भाखा

गुरतुर भाखा

‌छत्तीसगढ़ी हमर महतारी भाखा ए,
‌अलग पहिचान हावय आज जी।
‌मधरस कस गुरतुर हमर भाखा,
‌गोठियाय म काके लाज जी……..

‌सुने म अड़बड़ नीक लागे,
‌दुख-पीरा के हरईया बानी।
‌साहित्य-संगीत के भंडार हे,
‌दया-मया के हेवय निशानी।।
‌सपना ल इही म संवारेन,
‌हमला तो हे बड़ गुमान जी….मधरस…

‌इही म उपजे बाढ़े हावन,
‌सुख-दुख जम्मो बितायेन।
‌रोयेन, हाँसेन, इही म गायेन,
‌इही म खुसहाली मनायेन।।
‌नोहय बोली देहाती एहर,
‌एखरो हे बड़ सम्मान जी……मधरस….

‌करमा-ददरिया म रचे बसे,
‌सुआ,जस, पंथी, संग खाप हे।
‌किस्सा हावय एखरो जुन्ना,
‌बेयाकरण के सुग्घर मिलाप हे।।
‌बिचार संग मितानी हे अड़बड़,
‌जतन कर जग बगराव जी….मधरस….

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