Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 May 2025 · 1 min read

दौड़ लगाते पाँवों पर सड़कें भी हैरा करती थीं

दौड़ लगाते पाँवों पर सड़कें भी हैरा करती थीं
कहाँ गईं वो शामें जो सूरज संग पैरा करती थीं।

रब न करें ऐसी पाओ जिंदगी जो मुझको मिली
लगता है कि मैं ‘दश्त ए सहरा’ भरती थी ।

जुर्म तो मेरा पता ही नहीं जिसकी सज़ा मिली
झूठ की तख़्तों ताज में,सच अखरा करती थी।

टुकड़े-टुकड़े,बँटते-बंँटते ख़ुद के भी ना हो पाए
धज्जी-धज्जी रिश्ते देखे, खुशियांँ पहरा करती थी।

कतरा-कतरा अश्कों से समंदर सारा खारा पाया
केसर के फूलों से घाटी महका करती थी।

मंजुला श्रीवास्तवा
16/5/25

Loading...