नवनिधि क्षणिकाएँ---
नवनिधि क्षणिकाएँ—
13/05/2025
फूलों के साथ ये काँटे
कहते अपनी कहानी
कोई नहीं सुनता इसे।
धर्म च्युत जब होने लगूँ
मुझे बचा लेना आकर
तुम प्रेरक हर जन्म के।
इच्छाओं की जंजीरें हैं
मुक्त इनसे होना चाहू्ँ
मन को ये मंजूर नहीं।
गाँठ पड़ी है छूटे नहीं
कोशिशें भी करता कौन
बहुत पीड़ा है जानो तुम।
तुम्हें देखकर लगता है ये
मैं पीछे ही न रह जाऊँ
ये आभास डराता है।
सुस्त कदमों की पदचाप
अब नहीं सुनाई देती
कोई खींच रहा है मुझको।
अपनी बरबादी लिखता है
करतूतों की कलम लिए
अब क्यों गुहार करता।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
━━✧❂✧━━✧❂✧━━✧❂✧━━