बुद्ध पूर्णिमा एक संतुलित जीवन का संदेश
बुद्ध पूर्णिमा एक संतुलित जीवन का संदेश
— एक पावन पर्व जो करुणा, शांति और ज्ञान का संदेश देता है
बुद्ध पूर्णिमा, जिसे वैशाख पूर्णिमा भी कहा जाता है, भगवान गौतम बुद्ध की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन न केवल उनके जन्म का, बल्कि उनके ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण का भी प्रतीक है। यह त्रिविध शुभ संयोग इसे बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र पर्व बनाता है।
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
गौतम बुद्ध का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल) में एक क्षत्रिय राजा शुद्धोधन और रानी माया देवी के घर हुआ था। उनका बाल्यकाल का नाम सिद्धार्थ था। राजसी सुख-सुविधाओं के बीच पले-बढ़े सिद्धार्थ का हृदय संसार के दुखों से व्यथित हो उठा। एक दिन उन्होंने वृद्धावस्था, रोग और मृत्यु के दृश्य देखे, जिससे उनका मन संसार की असारता की ओर झुका। 29 वर्ष की आयु में उन्होंने घर-परिवार त्यागकर सत्य की खोज में संन्यास ले लिया।
ज्ञान प्राप्ति और बौद्ध धर्म की स्थापना
छः वर्षों की कठोर तपस्या के बाद बोधगया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे ‘बुद्ध’ कहलाए — अर्थात ‘बोधिसत्व’, जो जागृत हो चुका है। उन्होंने ‘मध्यम मार्ग’ का उपदेश दिया, जो न तो विलासिता है और न ही कठोर तपस्या, बल्कि जीवन का संतुलित मार्ग है।
बुद्ध ने चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया:
1. संसार दुखमय है
2. दुख का कारण तृष्णा है
3. तृष्णा का अंत संभव है
4. अष्टांगिक मार्ग के पालन से दुख का अंत संभव है
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध अनुयायी बुद्ध मंदिरों में पूजा करते हैं, धम्म प्रवचन सुनते हैं, भिक्षुओं को दान देते हैं और बोधि वृक्ष की परिक्रमा करते हैं। यह पर्व हमें आत्मनिरीक्षण, संयम और करुणा की प्रेरणा देता है।
वर्तमान सन्दर्भ में बुद्ध का संदेश
आज जब दुनिया युद्ध, हिंसा और मानसिक तनाव से जूझ रही है, बुद्ध के उपदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उनका जीवन अहिंसा, शांति और आत्मजागरण की मिसाल है। यदि हम उनके अष्टांगिक मार्ग को अपनाएं — सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि — तो हम एक शांतिपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
निष्कर्ष
बुद्ध पूर्णिमा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आत्मज्ञान और मानवता के प्रति समर्पण का पर्व है। इस दिन हमें न केवल पूजा करनी चाहिए, बल्कि बुद्ध के विचारों को आत्मसात कर उन्हें अपने जीवन में लागू करने का संकल्प लेना चाहिए।
“अप्प दीपो भव” — स्वयं प्रकाश बनो। यही बुद्ध का वास्तविक संदेश है।
संकलन
मुकेश शर्मा विदिशा