*मनः संवाद----*
मनः संवाद—-
11/05/2025
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
विपतकाल में पता चले, कौन बंध जो श्रेष्ठ है, बने कौन हकदार।
बातें करते बड़ी- बड़ी, करें बहाने लाख जब, स्वार्थ दिखे भरमार।।
आँखें खोलो तब साथी, दुनियादारी ज्ञान हो, करता मन प्रतिकार।
बहुत हुआ जब भोलापन, करतें हैं उपयोग ही, यहा सभी किरदार।।
कितने गहरे पानी हो, इतना भी तो जानिए, मंथन कर धर ध्यान।
उलझाते सब बातों में, करें प्रशंसा सामने, जैसे हों विद्वान।।
निज गुण का पहचान करो, तभी सधे यह साधना, करना है संधान।
सबकी अपनी भूख यहाँ, अलग-अलग है प्यास भी, देखे नित्य बिहान।।
असल परीक्षा आज हुई, जब आई संकट घड़ी, सत्य लिया पहचान।
ठकुरसुहाती जो कहते, वो सारे छँटने लगे, साफ हुआ मैदान।।
आँख खुली तब ये जाना, सब मतलब के यार हैं, झूठी सबकी तान।
खुद पर ही रखो भरोसा, जो कर सकते वह करो, सब स्वारथ की खान।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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