रोम रोम में राम
संत फकीरा चल दिए,
तन में मन मे फाग।
समय सुहाना बीतता,
जाग सके तो जाग।।१.
देख चांदनी डूबती,
तारे हुए उदास।
पंछी कोलाहल करें,
नवल सृजन की आस।।२.
उठ राही रस्ता बना,
तन से हटा विकार।
मन मंदिर प्रीतम बसे,
हर दम रहे पुकार।।३.
सांसों की माला बना,
मनके मोती फेर।
समय सुहाना बीतता,
काहे करता देर।।४.
तन तेरा बैकुंठ है,
रोम रोम में वास।
खुद में ही गोता लगा,
मिटा जन्म की प्यास।।५.