डाकिया बाबू!
डाकिया बाबू!
तुम जरूर आना मेरे दरवाजे पर
अच्छे,मधुर ख्वाब लेकर
लेकर कुछ संदेश
अपनों का
जिन्हें हमने खो दिया है
इस घोर ‘मोबाइल युग’ में
जहाँ बर्दाश्त नहीं कर पाते लोग
वह मधुर इंतज़ार
मैं ढूँढता हूँ
वही पुराने स्नेहसिक्त संदेश
जो तुम लेकर आते थे
प्रतीक्षा रहती थी तुम्हारी
पल-प्रतिपल
आज भी है
डाकिया बाबू!
-अनिल मिश्र