काम बुता ( छत्तीसगढ़ी कविता)
काम बुता (छत्तीसगढ़ी कविता)
काम बुता करे ले जिनगी बनथे,
मेहनत के गाथा ह सूरज जइसे चमकथे।
माटी ले सोन उगथे, हाथ के गंध ले,
पसीना के मोती ह गाथा सुनाथे।
जइसे बैल ह जोतथे धरती मं,
वैसे मनखे घलो सजोथे सपन मं।
सुघ्घर सपना देखे बर, जागे बर लागथे,
काम बुता करइया ला धरती घलो सरागथे।
बिहनिया के संग संग उठ के निकरथन,
कंधा म झोला अउ बटुवा टांग के चलथन।
दिन ह कटे खेत म, बखरी म गाथे बइला,
काम म रम गे ह, मुस्कान ह फुलइला।
काम बुता म जिनगी के असली मया हे,
सबर म बूता, विश्वास म छइया हे।
जउन मन घलो करथे अपन काम लगन ले,
उनकर जिनगी म बगिया म जइसे फुल खिलथे।
✍️📜जितेश भारती