ये दौलत भी ले लो
डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त
ये दौलत भी ले लो
मिरि दौलत मेरे किरदार का फ़लसफ़ा बन जाएगी जिस दिन।
बरसात होगी झमाझम लिख लो छप्पर फाड़ के उस दिन।
रोटी चाहिए तो दौलत काम आएगी, कपड़ा चाहिए जो तो , तो दौलत काम आएगी, सर छुपाना है तो भी , दौलत काम आएगी।
लोग गालियां देते हैं इस को जब होती है और तरसते रहते हैं जब नहीं होती ।
होगी दौलत तो सुरूर भी होगा, उसमें किसी के पापा का हिस्सा होगा।
मिरि दौलत मेरे किरदार का फ़लसफ़ा बन जाएगी जिस दिन।
बरसात होगी झमाझम लिख लो छप्पर फाड़ के उस दिन।
तुम जो कहते हो बरखुरदार, सिर पर चढ़ गई है ये दौलत।
अरे यार है तो कद से ऊपर निकल गई है ये दौलत।
नहीं थी तो तरसता था दर दर भटकता था, ठोकरों पे रखा गया था मिलना तो बहुत दूर की बात है कोई देखता तक न था।
मिरि दौलत मेरे किरदार का फ़लसफ़ा बन जाएगी जिस दिन।
बरसात होगी झमाझम लिख लो छप्पर फाड़ के उस दिन।
तुम भी आओगे मिलने , और लल्लन टॉप भी कसीदा पड़ेगा।
न्यूज चैनल के फ्रंट पेज़ मेरा रील और शॉर्ट तो छोड़ो पूरे दिन वीडियो चलेगा।
इंटरव्यू होंगे मशहूर एंकर्स के साथ, लोग मिलने आयेंगे अप्वाइंटमेंट के बाद।
मिरि दौलत मेरे किरदार का फ़लसफ़ा बन जाएगी जिस दिन।
बरसात होगी झमाझम लिख लो छप्पर फाड़ के उस दिन।