समर्पित समर्थन
लेखक – डॉ अरूण कुमार शास्त्री
विषय- समर्थन
शीर्षक – चाहिए
विधा पद्य काव्य स्वच्छंद
तेरे इश्क में समर्थन भी तेरा चाहिए।
प्रेम निःशुल्क है माना लेकिन उधार नहीं चाहिए।
पूर्णता मिलेगा तब ही करूंगा स्वीकार इसको।
आधा अधूरा नहीं ये अधिकार मुझको चाहिए।
निश्चित निष्ठा, उत्कृष्ट संस्कृति साहित्य संगम,
का समागम चाहिए।
टूटा हुआ संगीत भ्रमर का आशीष तो न चाहिए।
मायाजाल से व्यथित कुंठित गीत तेरे प्रेम का, आसरा होता नहीं, पीड़ा देगा चिर काल का ।
ऐसे समर्थन को समर्पित भाव से प्रतिकार मुझको चाहिए।
तेरे इश्क में समर्थन भी तेरा चाहिए।
प्रेम निःशुल्क है माना, लेकिन उधार नहीं चाहिए।
पूर्णता से मिलेगा तब ही करूंगा स्वीकार इसको।
आधा अधूरा नहीं ये अधिकार मुझको चाहिए।
यूँ जगत में कौन विरला जिसको मिला प्यार पूरा।
सामाजिक लोकाचार के चलते ये सदा व्यवहार अधूरा।
कहा सबने दिखाया सबने माना सबने लेकिन रहा छद्म ये कार्य अधूरा।
मात्र कुल मिलाके अन्त तक सब कुछ था बिखरा ।
अनबुझी सी प्यास लेकर जीता रहा संसार पूरा।
पूर्णता से जब भी मिलेगा वो अधिकार तब ही चाहिए ।
आधा अधूरा नहीं पूरा समर्पित समर्थन भाव मुझको चाहिए।
प्रेम निःशुल्क है माना लेकिन उधार नहीं चाहिए।