नव पाहुन
‘सावन’ सन के कनिया लागैयै सुहाअन,
‘भादव’ सन के घोघ दैवा मारैयै जान।
‘आशिन’ हे सखि आश लगौने,
कनिया आऔति घोघ उठौने,
आवि गेल ‘कातिक’ बन कें विहान,
कि कहु मित दुःख के बयान।
‘अगहन’ दूई-चारि सखी सब आएल,
लुक-छुप, लुक-छुप कनिया देखाएल।
किछे क्षण में सासु एलि ‘पुस’ समान,
कयऽ लियऽ पाहुन किछु जलपान।
‘माघ’ सरहोइज मुस्कैत एलि,
कहु पाहुन कहु ननैद केहन लगलि।
कि कहु भौजी दुःख के बयान,
केहन दैवा देलक कनिया भैल नै भान।
धैरज राखु,
नवका पाहुन धैरज राखु।
नेह पिया कें, अंक समेति,
‘फागुआ’ रंग में विलसैत एति।
चैत कोना बीतल सखि हे,
मंद बयार शीतल गति हे।
‘बैशाख’ रुनझुन पायल बाजल,
धरणी-गगन में हर्ष समायल।
जेठ हे सखि नेह महीना,
स्नेहकऽ बूॅंद,बनल नगिना।
‘अखारकऽ’ वर्षा झहरल तान,
धनि-पिया रखला कुल मान।
‘सावन’ सन के कनिया लागैयै सुहाअन,
भादव सन के घोघ दैवा मारैयै जान।
उमा झा 🙏🏻🙏🏻