ढूढ़ती हैं नजर हर जगह पे तुम्हे
ढूढ़ती हैं नजर हर जगह पे तुम्हे
न जाने कहाँ तुम कहाँ खो गये
ऐसा लगता है तुम हो यही पे कही
ये नजरें तुम्हें देखना चाह रही
ढूढ़ती हैं नजर हर जगह पे तुम्हे
न जाने कहाँ तुम कहाँ खो गये
एक बार तो फिर से आओ कभी
अपनी मन्नू को गले से लगाओ कभी
क्या तरसती रहू उम्र भर मैं यूँही
आकर कभी तो मिल जाओ आकर कभी
ढूढ़ती हैं नजर हर जगह पे तुम्हे
न जाने कहाँ तुम कहाँ खो गये
मेरे पापा तुम्हारी मन्नू अब बड़ी हो गई
अब वो अपने आँसू दिखाती नहीं
अब वो मुस्कराहट से सबको रिझाती हैं
और अपने गमों को छिपा जाती हैं।
अब वो पहले से वो ख़िलखिलाती नहीं
देखो दुनिया को वो कुछ बताती नहीं।
ढूढ़ती हैं नजर हर जगह पे तुम्हे
न जाने कहाँ तुम कहाँ खो गये