राजनीति से परे जाना होगा। ~ रविकेश झा
अंधे भी यहां ज्ञान देने लगते हैं अनुभव का कुछ पता नहीं, यहां तुम्हें दे कौन रहा है और मिल क्या रहा है और किसको। ओशो सही कहते हैं पानी पर खींची गई लकीर हो ऐसे ही आप खुश हो जाते हैं कुछ देख कर कुछ देर भी ठहरते नहीं हैं आप बस मूर्खता में शामिल हो जाते हैं और कहते रहते हैं ये मेरा है इस पर मेरा अधिकार है लेकिन गहराई से देखोगे नहीं भ्रम नष्ट हो सकता है मूर्छा गायब हो सकता है बेहोशी जा सकती है लेकिन हमें होश से भय लगता है। हम साहस नहीं जुटा पाते हम हिम्मत नहीं कर पाते बस भर दिन भोग विलास में डूबे रहते हैं बस कुछ करना है स्थिर नहीं होना है रुकना नहीं है देखना नहीं है कि हम क्यों और किसके लिए दौड़ रहे हैं और अंत तक क्या मिलेगा लेकिन हम स्थिर नहीं होना चाहते फिर क्रोध का क्या होगा हम दो हथियार लेकर चलते हैं एक कामना एक करुणा जब जो काम आ जाता है हम करने लगते हैं लेकिन अधिक हम क्रोध काम घृणा लोभ मोह ईर्ष्या में जीते हैं करुणा तो हम कामना कुछ इच्छा के लिए करते हैं ताकि बदले में कुछ हाथ आए चाहे शरीर हो या धन या कुछ अन्य भौतिक क्योंकि जिस चीज़ से हम परिचित होंगे वही और उसी के लिए दौड़ेंगे भागेंगे। जिस चीज का अभी पता ही नहीं को अज्ञात है उसे आप कैसे देखेंगे जो आप को देख रहा है चाहे आप नींद में हो या होश में चौबीस घंटे देख रहा है उसे कैसे देखोगे आंख पर तो पट्टी है कामना का जागरूकता का चश्मा कैसे लगाओगे कैसे स्वयं को भिन्न करोगे कैसे, साहब भ्रम नष्ट होने का डर हैं न हां है चाहे तुम मानो चाहे न मानो सच यही है कि हम खोज करना नहीं चाहते शरीर मन में बस अटक कर रहना चाहते हैं शून्यता आत्मा का बोध नहीं लेना चाहते बुद्ध होना नहीं चाहते अतिचेतना तक नहीं पहुंचा चाहते बस रट्टा मरना है वायरल होना है मूर्ख सबको गुरु मानना है पदमंत्री सबको आदर्श मानना है मोगली जी को भगवान मानना है लेकिन हमें कुछ मानना है।
मानना क्यों है ये तो पूछो स्वयं से क्योंकि मानना उधार है जानना अपना है अपने अनुभव का है, जब तुम दूसरे के ही विचार पर चलोगे तो उनके लिए कुछ भी करोगे मार काट भी आदर्श जो मानते हो घृणा क्रोध तो करोगे साथ देने का वादा जो दिए हो, एक गाना है आपके हिसाब से मैं संसार को देखूंगा आप जो कहेंगे वही सच मानूंगा दिन को रात रात को दिन, वादा जो लिए हो वह निभाना पड़ेगा। आप जिसे फॉलो करेंगे तो उनका हर बात आंख बंद करके मानेंगे या जिनके पास आंख होगा भी तो वह सब साथ दे ही रहे हैं तो मैं क्यों न या धर्म का सवाल है धर्म तो बस मोगली जी हो जानते हैं और मोगली जी कह रहे होंगे तो सही ही कह रहे होंगे चाहे पूर्ण स्पष्टता हो या न हो उनके है बात को मानना होगा चिराग पासवान जी के तरह या अन्य के तरह या पलटू चाचा जी के तरह 🤣😍। आपको सत्ता बचाना क्यों पड़ता है आपको खरीदना या धमकाना क्यों पड़ता है क्योंकि आप झूठ में जी रहे हैं क्रोध घृणा वासना में जी रहे हैं। आपका स्वार्थ ही आपको बांधता है कुर्सी कैसे भी रहे सत्ता कैसे भी हासिल हो हिटलर का भी मानना था अगर राज्य पर राज करना है तो झूठ बोलो बोलो की हम खतरे में है झूठा दुश्मन पैदा करो सब कुछ अपने हाथ में लो कांड भी खुद करवाओ और फैसला भी तभी न राज करोगे मूर्ख बनाओगे तब ना होगा सत्ता, झूठ बोलो की एक धर्म दूसरे धर्म को मारना चाहता है। धर्म का क्या काम है हत्या करने का लेकिन शांत भी जो होते हैं उन्हें जागने के लिए झूठ बोलना पड़ता है, और हम पूर्ण शांत नही होते नेता सबके चक्कर में आपस में लड़ने लगते हैं क्रोध हिंसा घृणा में प्रवेश करने लगते हैं बदले की आग में जीने लगते हैं बदला लेना है बस, किससे और कौन लेगा ये बदला बहुत लिए आप लोग बदला कुछ हासिल नहीं हुआ ये बार बार क्यों बार बार संशोधन क्यों, क्योंकि हम सबको अपना अपना अधिकार चाहिए हम सब बंटे हुए हैं सबको अलग अलग अपना अधिकार चाहिए और जब ही अधिकार चाहिए तो हम काम में प्रवेश करेंगे, और हमें करुणा पर विश्वास भी नहीं है क्योंकि हम पूर्ण करुणा करते भी नहीं तुरंत काम में आ जाते हैं कोई गाली दिया तुरंत गुस्सा गए थे प्रेम से बात करने उसे डील पसंद नहीं आया समझौता नहीं हुआ वह कुछ बोल दिया हम तुरंत आग बबूला हो गए गलती वह किया अपना मुंह वह खराब किया क्रोध को आमंत्रण वह दिया घृणा पर निर्भर वह हुआ स्वयं को कष्ट वह दे ही रहा है पहले से और आप साथ देने लग गए एक ही शक्ति दो शरीर के द्वारा लड़ाई हुई तो कोई एक जीतेगा एक ज़मीन पर गिरेगा जो चूक गया जो आंख बंद कर लिए जो बेहोश में हाथ उठाया कोई एक जीतेगा वह भी बस भौतिक वह भी क्षण भर के लिए और आप खुश हो जाओगे और आपको जब पता चलता है कि वह भी अपना ही है मन शरीर के कारण परेशान हैं तो आप लड़ाई करना तुरंत छोड़ दोगे जब ये पता चले कि पूर्व जन्म में हम कहां थे और अभी कहां है और आगे कहां होंगे और सेम मिट्टी पदार्थ ऊर्जा से ये शरीर घर तयार हुआ है सेम मिट्टी है चेतना भी वही है हवा भी वही हम लेते हैं प्रकाश भी जल भी भोजन भी चाहे रूप अलग अलग हो, चाहे कोई हृदय से चाहे कोई बुद्धि से काम तो सब कर रहा है। फिर यहां ज्ञानी कौन अज्ञानी कौन भेद भाव क्यों क्योंकि हम मूर्ख है पद प्रतिष्ठा चलाना है निरंतर सबको कुछ न कुछ चाहिए सबको कुछ न कुछ इच्छा है जन्म जन्म से इसीलिए भटक रहे हैं और भटकेंगे अगर ध्यान और होश के साथ कनेक्ट नहीं हुए तो। नेता सब बहुत है सबको पद में आना है चाहे करुणा करके ही चाहे गोडसे या गांधी जी विचार सबको पसंद है, कुछ न कुछ हम मानेंगे दूसरों के विचार पर हम चलेंगे और ये भी बिना जाने कि वह सत्य तक ले जायेगा या बीच में घृणा क्रोध में ले जायेगा, हो तो यही रहा है क्योंकि यहां सबको मन है शरीर है अपने फायदे के लिए अवश्य सोचेंगे चाहे गलत ही चाहे क्षण भंगुर ही सोचेंगे अवश्य। इसीलिए यहां अनेक विचार है सब अपने अपने विचार में जी रहे हैं सब उधार का विचार। ईर्ष्या भी है सबको कुछ न कुछ बनना है इसीलिए तो जन्म लेते हैं बनने के लिए और अंत तक मूर्ख बनके मरते हैं हम कुछ नहीं बनते मूर्ख के सिवा🤣।
दूसरे को जो देखते हैं हम भी वही करने लगते हैं कॉपी पेस्ट भीड़ में शामिल हो जाते हैं भेड़ बकरी के तरह आकाश के तरफ नहीं देखते देखते भी है तो सोचते हैं ऊपर कोई बैठे हैं और वह कुछ कर रहे हैं इसीलिए हम प्रश्न भी उठाते खोज करना बंद कर देते हैं, बस सेक्स में रुचि भोजन में बॉडी बिल्डर बनने में देख रहे हो दुनिया में कितना जनसंख्या वृद्धि हुई है और जो रहा है हमें quality पर ध्यान देना होगा ना कि quantity पर गुण सब में है गुण को विकसित करने का समय है न कि मात्रा पर। जिसका चेतना का स्तर नीचे गिरा होगा वही मात्रा पर ध्यान देगा भोग पर वासना पर, वासना का अर्थ होता है अधिक काम हम वही करते हैं बस कामना ऊपर से हम काम पर निर्भर भी है जैसा शरीर मन इशारा करता है तुरंत हम कूद पड़ते हैं या मन में ऊपर नीचे होते रहते हैं सांसों को ऊपर नीचे करने में लगे रहते हैं कुछ पकड़ कर रखते हैं ताकि रुचि ले सके जी सके चाहे मूर्छा में हीं क्यों न हो बस हो बस सत्ता हो नाम के लिए ही सही चाहे अर्थ हो न हो कुर्सी है न लोग देख रहा है न कि मैं कुर्सी पर हूं पद पर प्रतिष्ठा पर विरोध करने से नेतागिरी थोड़े छोड़ दूंगा लोग ऐसे ही चिल्लाते हैं फिर कुछ देख कर दूसरे काम में फंस जाते हैं और हम भी भ्रमण पर निकल जाता है या विरोध होगा या विश्वास मैं क्यों घबराऊ कुर्सी कैसे छोड़ दू जब तक यू व्यर्थ न लगने लगे रस ना आने लगे कैसे छोड़ दू। इसीलिए मैं पद मंत्री और प्रधानमंत्री दो बोला पद के लिए जी रहे हैं तो पदमंत्री देश के लिए सब के लिए प्रेम करुणा शांति विज्ञान जागरूकता ध्यान को लेकर चल रहे हैं तो प्रधानमंत्री भी होंगे राजा होंगे जो प्रजा में भेद न करे लेकिन ऐसा होता कहां है देश है तो चलाने वाला भी हो लेकिन बिका हुआ न खुद के साथ। प्रतिष्ठा पद नाम पर निर्भर ना हो न प्रसंशा स्पर्श करे न निंदा, लेकिन हम तो घृणा करने लगते हैं विरोध नहीं क्रोध बेईमान होने लगते हैं। ये हर पोस्ट पर बैठता है चाहे जॉब हो या व्यवसाय या अन्य फील्ड। हम सब अंदर से एक है और बाहर से भी लेकिन हम भौतिक में बंटे हुए हैं ये मेरा ये आपका ये मैं करूंगा ये आप करो ये हराम है ये सही है ये गलत है मैं जो करूं सही है शास्त्र में लिखा ही नहीं है हम क्यों उसे मित्र मानू क्यों साथ दूं और जो अपने विचार या किसी अन्य के विचार मोटिवेशन ज्ञान देकर साथ देने लगते हैं दुसरे के अनुभव के उठाए गए शब्द को दोहराने लगते हैं लेकिन फिर भी दुःख दर्द क्रोध घृणा होता ही है वह है काम, काम के कारण इच्छा के कारण मान्यता के कारण इसीलिए कहता हूं दूसरे के अनुभव को सच मत मानो स्वयं खोज करो नहीं तो पत्ते कुछ दिन के बदल जायेंगे या टूट जायेंगे लेकिन फिर काम के अनुसार जन्म ले लेंगे तुम ही हो ना बदल जाओगे फिर पत्ता जन्म ले लेगा तुम्हारे गुरु पत्ते पर पानी दे रहे हैं और हम जड़ में तुम परिधि को सच मानते हो और हम जड़ से जुड़ना सिखाता हूं बताता हूं। लेकिन मेरी बात पर क्रोध घृणा कर रहे हो क्योंकि इन्द्रियां परेशान कर रही है कुछ बनने की तयारी चल रहा है जो देख रहे हो दूसरे को तुम भी भीड़ में फंसने के लिए शरीर से राज़ी हो जाते हो लेकिन मन तो कुछ और चाहता है तुम्हारे गुरु कहते हैं कि क्रोध मत करो ग्रीन मत करो लोभ लालच मत करो, सब बदलने की बात करते हैं रूपांतरण पर कोई ज़ोर नहीं देते रूपांतरण का अर्थ है हम समझ गए जान लिए अब एक हो लिए सब अपना है घृणा किससे क्रोध किसके साथ, लेकिन चेंज जो है बदलने की जो बात है वह उधार है मानना है तुम वही कर रहे हो कितने सत्य या कितने बदल गए शरीर में न सही तो मन में लड़ाई तो चल ही रहा है। इसीलिए कहता हूं साहब कि ध्यान करो होश के साथ कनेक्ट रहकर जियो तभी पूर्णता प्राप्त करोगे शून्यता तक पहुंच जाओगे स्वयं का दर्शन करोगे फिर निर्भरता समाप्त हो सकती है अगर हम जागरूकता के साथ रहे तब नहीं तो बस मूर्खता और मूर्छा ही हाथ लगेगा अंत तक बस।
रट्टा मारने से यही सब होता है, सही बात है अक्ल बड़ी या भैंस भैंस बड़ी है, अक्ल होता तो पूछते ही नहीं। उत्तर हैं हमारे पास हर बात का, कोई कहता है आप सही कह रहे हैं हमें भय नहीं छूता सब माया है कौन मारेगा और कौन मरेगा यहां, उत्तर हम खोज लेते हैं और तोता के तरह दोहराने लगते हैं। लेकिन जड़ तक हम नहीं पहुंचते कुछ पत्ते देख लेते हैं दूसरे पेड़ के भी पत्ते देख लेते हैं कुछ विचार ज्ञान ग्रहण कर लेते हैं और दोहराने लगते हैं झंडे गाड़ने में लग जाते हैं। ताकि लोग मानने में लग जाए,जबरदस्ती उधार का बिना जाने, इसीलिए मैं धर्म का विरोध करता हूं क्योंकि यहां अनेक धर्म है लेकिन धार्मिक कोई नहीं अगर धार्मिक हो तो धर्म की क्या जरूरत बंधने का क्या फ़ायदा एक में बंध जाओगे तो दूसरे को परेशान करोगे दूसरे को नहीं मानोगे विरोध करोगे लड़ोगे क्योंकि आंख कुछ भिन्न देखेगा तो लड़ाई शुरू होगा। कोई आकार को मानता है कोई निराकार ब्रह्म को मानता दोनों है चाहे अंदर चाहे बाहर चाहे जीवन को चाहे मृत्यु को चाहे अल्लाह को चाहे भगवान को चाहे ईश्वर को लेकिन सिर्फ अपने अपने को मानना है, मानना ही घातक है, जनता कोई नहीं और जो जानेगा वो मानेगा क्यों वह मौन हो जायेगा, क्योंकि जब ईश्वर ही कर रहा है करवा रहा है फिर बीच में बाधा क्यों क्योंकि जब ही बीच में आओगे तो कुछ काम के लिए कुछ कामना लेकर आओगे अपने लिए या कुछ लोगों लिए फिर दूसरे को परेशानी होगी वह ईश्वर को खोजने लगेगा तर्क के साथ आपके मान्यता को तोड़ सकता है, बुद्ध भगवान के तरह, फिर आप नास्तिक बोलने लगोगे, यही सब तो यहां होता है। जानना नहीं है मन है बस, जानने में भय लगता है भ्रम टूटने का डर लगता है ऐसे कैसे चलेगा साहब जीवन आप ही बताओ। भय कई प्रकार का है, सामाजिक शारीरिक मानसिक आप शरीर से फिट हो सकते हैं लेकिन मानसिक नहीं भावनात्मक नहीं समाज का भय घृणा का भय। लेकिन हम सब बहुत बात को जानते हैं लेकिन पद नाम प्रतिष्ठा चला ना जाए उस डर से हम मन में बस रुक जाते हैं तन में नहीं आने देते मुंह पर नहीं आने देते और कुछ लोग भय के कारण आत्मा तक बेच देते हैं, वह कहते हैं शरीर पहले चुनेंगे शरीर रहेगा तो देखेंगे अभी क्यों मर जाऊं विरोध करने से क्या होगा मर जायेंगे
कुछ सोचते हैं शरीर तो मर ही जायेगा एक दिन मार के क्या फ़ायदा किसी को, लेकिन अंदर से मारने की भी बात चलता रहता है मन में, कोई साथ देगा तब न अकेले क्यों हम सभी बात को लेकर चलते रहते हैं हिंसा अहिंसा दोनों पर निर्भर हो जाते हैं, कुछ शास्त्र से बात उठा लेते हैं तो कुछ अपने अनुभव से कैसे भी जीवन को खींचते रहते हैं ताकि भोग कर सके करुणा कर सके कोई भी फील्ड में नाम बन जाए बस धन आ जाए। और कोई अभय में जीता है अब भय नहीं लग रहा है मार देंगे या मर जाऊंगा वह भी ठीक नहीं अभय का मतलब यह नहीं तलवार लेकर घूमते रहे और बोलते रहे कोई नहीं है मेरे जैसा अहंकार नहीं। न भय में रुचि न अभय में, अंधा को आंख मिल जाए तो वह खुश होगा लेकिन कितने दिन और कौन खुश होगा, निडर और डर अंधकार और प्रकाश के तरह है लेकिन उसका मतलब ये नहीं हम डरते नहीं तो सबको मारते चले पिटते रहे चर्चा करते रहे तो मृत्यु एक दिन आपको जवाब दे देगा। बोलने और मीडिया तक जाने की क्या आवश्यकता है आप जान लिए आप आत्मा से परिचित हो गए तो ढोल पीटने की क्या आवश्यकता है फिर मौन का क्या महत्व, फिर सार्थकता का क्या अर्थ रहेगा फिर मूर्ख बुद्धिमान में क्या अर्थ रह जाएगा। लेकिन हम बोलने लगते हैं कि हमें डर नहीं लगता हम अभय में विश्वास करते हैं विश्वास करते हैं। सब मन का खेल है कोई मन के दूसरे भाग में अटका है तो कोई दूसरे कोई परिवर्तन का रास्ता चुना तो कोई प्रतिशोध का। इसीलिए हमें ध्यान के साथ चलन होगा ताकि हम श्रेष्ठा को तो छू ले लेकिन श्रेष्ठा हमको न छुएं। हम बस ढोल नगाड़े पीटने न लग जाए मोगली जी के तरह फेंकने न लग जाए ताकि हमें सब मूर्खता के श्रेणी से डाल कर एंटरटेनमेंट का साधन न बना ले। मैं किसी के पक्ष में नहीं रहता फिर भी आनंदित रहता हूं सबको देखता रहता हूं, लेकिन राजनीति वाले को विशेष रूप से देखता हूं क्योंकि राजनीति में गुंडा सब रहता है, राजनेता यानी सफल गुंडा बेईमान, शब्द का लीपा पोती मोटिवेशनल कोट्स नहीं तो आध्यात्मिक सब को धंधा बना दिए हैं ताकि लोग विश्वास करें मैं अन्य नेता के तरह नहीं हूं मुझ पर विश्वास कीजिए माय बाप हम सब कुछ करेंगे बस खुशी छोड़कर सब कुछ कर दूंगा फिर आप मुझे वोट दोगे क्यों, राजनेता हूं सफल गुंडा हूं मूर्ख भी हूं लेकिन आंख भी है शरीर दिखता है पहले अपने लिए पहले बैंक में जो खाता खुला है उसको तो भर लूं पहले आंख घुमाने तो दो कहां कहां हम हो सकते हैं वहां वहां घर चाहे चांद पर हो मंगल पर चाहे सूर्य पर कूलर एसी के साथ रहेंगे पहले अपना पेट ये हर कोई करता है 🤣।
आप झंडा गाड़ के करोगे क्या और किसके लिए क्रोध हिंसा ईर्ष्या पैदा होगा न की शांति, अगर ऐसा होता तो आज तक कितने धर्मगुरु सदगुरु ने झंडा गाड़ दिया कुछ हासिल नहीं हुआ बस हिंसा घृणा वासना में वृद्धि हुई न की प्रेम करुणा शांति ज्ञान में जब ईश्वर का झंडा ईश्वर स्वयं सब जगह लेकर स्वयं विराजमान है फिर भौतिक क्यों भौतिक हो तो ध्यान का करो जहां से हम अपने स्वभाव और ईश्वर से पूर्ण परिचित हो और दुनियां में प्रेम करुणा शांति पूर्ण ज्ञान में वृद्धि हो लेकिन तुम हो चालू लोगों के हृदय में कैसे भी अपना नाम टाइप कर रहे हो भय से मानो या प्रेम से लेकिन मानो मेरी बात विरोध मत करो चुप चाप मानो नहीं तो जेल में डाल देंगे अगर बड़े लोग हो तो छोटे हो तो कहीं मार देंगे लापता कर देंगे। कौन करवा रहा है कौन बोल रहा है ये सब करने को आत्मा नहीं आत्मा का पता ही कहां है अभी, मन कहता होगा शरीर कहता होगा नेता और कुछ शास्त्र धारी लोग उकसाया होगा और आप सब क्रोध वासना में कुद पड़ते हैं। यहां बड़े बड़े नेता जी सबके पुत्र पौत्र पुत्री सब विदेश में पढ़ते हैं सब कब्र खोदने नहीं जाते हैं सब नहीं उनको जीवन में और रस लेना है वह जानते हैं कि हिंसा में अपने बच्चों को नहीं डालना है कार्यकर्ता सब है ही कुछ ज्ञान की ओर बढ़ रहे हैं कुछ ध्यान के ओर तो कुछ हत्या हिंसा, तुम कुछ न कुछ करोगे तो कुछ सार्थक कर लोग स्वभाव को समझने का कष्ट करो कर्तव्य स्वभाव को समझो परिवर्तन प्रतिशोध को समझो अगर ऊपर उठना है तो सिकंदर हो या हिटलर कोई नहीं बचा सब मृत्यु के गोद में सो गया कोई भी हो। अधिकार मानना और अधिकार होना में अंतर है जैसे मन आत्मा में फर्क है। लेकिन हम सब मानने में रुचि लेते हैं दो तत्व में फंस जाते हैं बिना तत्व को जाने हम मूर्खता करने लग जाते हैं। हमें उठना होगा बढ़ना होगा निरंतर ध्यान में प्रवेश करना होगा। उठो सो जाओ लेकिन फिर उठो तभी आकाश में भी रहोगे अभी बस धरती से चिपके हुए हो भौतिक को बस सत्य मानते हो अम्बर भी है शून्यता भी है बुद्धि से परे भी कुछ है ब्रह्मांड में बहुत तारें है ग्रह है कितने पृथ्वी है कितने ग्लैक्सी है क्या जानते हो आप बस बाहर से कुछ पन्ने पलट कर पढ़ लिए हो अर्धज्ञान को पूर्ण ज्ञान मान रहे हो। जागना होगा जागरूकता के साथ कनेक्ट रहकर जीना होगा अगर आनंदित होना चाहते हो तो नहीं तो मौज करो खाओ पियो भोग करो बस मैं ये नहीं कहता कि ये काम छोड़ दो वह काम करो, काम काम है जो भी करो होश पूर्वक करो ध्यान के साथ घटने दो, सुनो सबका करो अपने मन का। एक कदम जागरूकता के ओर बढ़ो।
ध्यान करते रहो साहब अगर परे जाना है तो उठना हो तो जागना हो तो बस ध्यान के साथ कनेक्ट हो जाओ सब फिर स्वयं आनंदित रहोगे किसी बात पर निर्भर नहीं स्वयं जिम्मेदार और स्वयं दोषी। ध्यान करते रहो साहब। आप लोग इतना ध्यान से पढ़ते हैं सुनते हैं उसके लिए हृदय से सबको धन्यवाद, प्रणाम,।
धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️