विनम्रता का ह्रास और उदंडता का महिमा मंडन!
कभी विनम्रता को, कहा जाता था आभुषण,
और नम्रता को गुणों का खजाना,
नम्र और विनम्र लोगों का किया जाता था,
अभिवादन और अभिनंदन,
समाज का हो वो कोई भी वर्ग,
अमीर गरीब हो या कोई जात धर्म,
ना ऊंच नीच का होता था कोई भेद,
ना गांव शहर का था अतिरेक
होता था सबका सम्मान विशेष!
रहता था उनके प्रति जो एक लगाव,
दिखाई देता है अब उनके लिए अलगाव,
आज ऐसा देखने को मिल रहा,
दबंगई निरंतर बढने को है,
उदंडता ने वह स्थान ग्रहण किया,
पैर पसार रहा है असहिष्णु ता,
स्वीकार्य नही है अब मत भिन्नता,
आलोचना कतई बर्दाश्त नहीं,
मतभेद मन भेद में बदल गया,
टिका टिप्पणी पर घेरा जाना,
सामान्य विवेचना पर शामत आना,
कोई कोर कसर रखि नही जात
चल पडते हैं घुंसे लात,
सिरफिरे हुडदंगियों का झुंड,
तोड आते है हाथ पैर और मुंड,
रहते हैं जो घर परिवार में,
फर्क नहीं करते बच्चे बुड्ढे और बीमार में,
मार पिट और तोडफोड,
नर्क बना कर भी नही देते छोड,
धमकाना हो गई है आम बात,
देता नहीं कोई भी साथ,
घर को कबाड मे बदल देना,
जिंदगी को दुभर कर देना,
इस असहमति के लिए ,
कितनों की,चलि गई जान,
पर हुआ क्या हासिल,
सिवाय इसके कि अब भुला दिये गये हैं,
जिनके लिए वह कुछ कह रहे थे,
वह दुबके हुए जिंदगी बिता रहे हैं,
सत्ताधीशों का रहा नही जमिर,
न्ययालय भी देता नहीं तरजीह,
जनता ने इसे नियति मान लिया,
या जनता जनता नही रह पाई,
जातिधर्म के खांचो मे बंट आई !
जो भी हो,पर यह निर्लज्जता से हो रहा है,
नम्रता और विनम्रता का ह्रास हो गया है,
और उदंडता का महिमा मंडन हो रहा है!